**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराजl
【 स्वराज्य】 कल से आगे:-
उग्रसेन -आपने मुझ गरीब के हाल पर बड़ी कृपा की है- मैं प्राण त्यागने का संकल्प छोड़ता हूल, मगर जहाँ आपने इतनी कृपा की है उस क्षेत्र की राह बतलाने की भी कृपा करें ।
अमरदास - यह काम धीरज का है। और सफर की तकलीफ की वजह से आपका शरीर अत्यंत क्षीण हो रहा है -थोड़ी ताकत आ जाने पर न सिर्फ उसक्षेत्र की राह बल्कि राह पर चलने की विधि भी आपको बतला दूँगा । आपको चाहिए कि सर्वथा निश्चिंत रहें- न शांति आपसे दूर है और न आत्मा को परमात्मा। संसारी लोग इन वस्तुओं को तीर्थ व मंदिरों में या वाचिक ज्ञानियों के पास तलाश करते हैं इसलिए उ कोशिश करने पर भी खाली हाथ रहते हैं। ये वस्तुएँ हमारे अपने ही अंतर में मौजूद है लेकिन उसी बड़भागी को प्राप्त होती हैं जो अपने दृष्टि अंतर्मुख करने के लिए यत्न करें और यत्न करने की विधि उसी को मालूम हो सकती है जिसे पूरे गुरु की शरण प्राप्त हो। अगर आपको मेरी बातों पर विश्वास आता है तो धीरज से काम लो- जो कुछ मैंने अपने गुरु महाराज से सीखा और पाया है वहां मैं आपको खुशी से बतला दूँगा। उग्रसेन- किसी खास आसन में बैठना होगा? अमरदास- हाँ, खास आसन में बैठना होगा- मगर वह ऐसा आसन है कि हर शख्स उस आसन में घंटों बैठ सकता है; लेकिन यह सवाल आपने क्यों किया? उग्रसेन -इसलिए कि मुझे एक ऋषि ने कृपा करके बहुत से आसन बतलाए थे जो निहायत कठिन थे। क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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