**परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र -भाग 1
- कल से आगे-
( 8 ) जो बयान कर्म की ऊपर लिखी गई है इसी को संतमत के मुआफिक शुभ कर्म समझना चाहिए। और जो करनी इसके विरुद्ध है, यानी सच्चे मालिक का खोज और उसकी भक्ति न करना और उसके दर्शनों की चाह का न होना और न उसके लिए जतन करना और न संत सतगुरु और प्रेमी जन की तलाश और उनका संग करना और न सच्चे गरीब और निर्धन जरूरतमंद की ताकत के मुआफिक मदद करना वगैरह-वगैरह, यही अशुभ कर्म है । और इसका फल यह मिलेगा कि सच्चे मालिक से दिन दिन दूर होकर जन्म मरण के साथ 84 जोन और नरको में दुख सुख भोगना पड़ेगा ।।
(9) और मतों में जो धर्म और कर्म वर्णन किये हैं, उनका मतलब सच्चे मालिक की प्राप्ति का नहीं है ।जो धर्म या कायदे वहाँ मुकर्रर किए गए हैं और जो शुभ कर्म सुख के फल की आशा करके वहाँ कराये जाते हैं, जिस किसी से वे दुरुस्ती से बन आवें, तो उनका फायदा यह होगा कि इस लोक में या ऊँचे नीचे लोक या जून में किसी कदर सुख मिलेगा, पर जन्म मरण का चक्कर दूर नहीं होगा और न सच्चे मालिक का दर्शन और उसके धाम में विश्राम मिलेगा ।।
(10 ) फिर जबकि धर्म-कर्म के बर्ताव में सब जगह थोड़ा बहुत तन मन धन जरूर खर्च करना पड़ेगा, तो हर एक सच्चे परमार्थी को, चाहे मर्द होवे या औरत, मुनासिब और जरूरी है कि जहां तक हो सके संतों के बचन के मुआफिक अपने धर्म और कर्म की सम्हाल करें तो उसका बहुत जल्द जन्म मरण से छुटकारा होना मुमकिन है, नहीं तो हमेशा माया के घेर में यानि काल देश में ऊंची नीची जोनो में दुख सुख सहता रहेगा।।
( 11) जो कोई संतों के बचन के मुआफिक कार्यवाही करेगा, उसको (सिवाय इसके कि एक दिन उसको सच्ची मुक्ति प्राप्त होगी और अजर अमर देश में आप अमर होकर सदा परम आनंद को प्राप्त होगा ) एक बड़ा फायदा यह हासिल होगा कि दिन दिन उसको थोड़ा बहुत रस और आनंद सत्संग और अभ्यास का मिलता जावेगा, और सच्चे मालिक की दया उस पर दिन दिन बढ़ती जाएगी और उसके साथ रस और आनंद भी बढ़ता जावेगा और संतों के मत के मुआफिक धर्म और कर्म यानी भक्ति और प्रेम और अभ्यास और अंतर और बाहर सेवा करने की ताकत भी बढ़ती जावेगी और एक दिन सच्चा उद्धार और जन्म मरण से हमेशा को बचाव हो जाएगा।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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