शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) संत बचन हिरदे में धरना। उनसे मुख मोडन नहिं करना।।-(याते सतगुरु ओट पकडना। झूठे गुरु से काज न सरना ) (प्रेमबानी-3- अशआर सतगुरु महिमा-पृ.सं.381)
(2) या जग का ब्योहार देख मन। अचरज अधिक समाना रे।।टेक।। जा घर रहे सुख का भंडारा। और आनन्द खजाना रे।।-(राधास्वामी गुरु के चरन पकड जो। उलटी धार चढाना रे।।) (प्रेमबिलास-शब्द-61,पृ.सं.79-80)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
26 -09- 2020- आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन
-कल से आगे-( 121)
इन्होंने यदि कुछ किया है तो यह है कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता को मुक्ति मान लिया। राष्ट्रीय स्वतंत्रता की इन्जील, सुसमाचार, के उपदेश करने वालों को मसीहा, त्राणकर्ता ; राष्ट्रीय अधिकारों के संरक्षकों को पादरी या पुजारी; रक्तपात को साधन, और क्रांति को परमेश्वर।
इनके लिए संसार ही परम गति का स्थान है और वर्तमान जीवन ही प्रथम तथा अंतिम जीवन है । इनसे कोई कहे कि जो अत्याचार और अनाचार तुम धर्म के मत्थे मढते हो उनसे धर्म का कोई संबंध नहीं। उनके लिए वे लोग उत्तरदाई हैं जिन्होंने स्वार्थ की सिद्धि तथा विषय- वासनाओं की पूर्ति के लिए तुम्हारे और तुम्हारे पूर्वपुरुषों के सिर पर अत्याचार और बलात्कार का प्रयोग उचित समझा।
इन्हें कोई समझावे कि किसी धर्म का अनुयायी कहलाने से कोई व्यक्ति वास्तव में उसका अन्यायी नहीं हो जाता। इन्हें कोई बतलावे कि धर्म कदापि यह नहीं सिखलाता कि कोई व्यक्ति श्रमजीवियों के गले काट कर राजमहल निर्माण करावे या अन्य- सुख- सामग्री प्राप्त करें, अथवा अपने संबंधियों , सजातियों तथा स्वदेशवासियों को किसी अत्याचारी के अत्याचार तथा बलात्कार के वित्रस्त तथा विपद्ग्रस्त देख कर चुपचाप बैठा रहे। ईश्वर के लिए , स्वार्थपर तथा संकीर्णहृदय मनुष्यों के दुराचारो के लिए धर्म को उत्तरदायी ठहरा कर उसका निरादर मत करो। तुम्हारा वर्तमान ईश्वर और तुम्हारी वर्तमान कल्पनाएँ क्षणिक अग्निक्रीडा(आतिशबाजी का खेल) के समान है ।
जरा रुधिर की गर्मी में कमी आने पर तुम्हें अनुभव होगा कि तुम्हारा वर्तमान मसीहा, तुम्हारे वर्तमान पादरी और तुम्हारा वर्तमान ईश्वर तुम्हारे पिछले मसीहा, पादरियों और ईश्वर से किसी अंश में प्रशयस्तर नहीं है।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश -भाग पहला
परम गुरु साहबजी महाराज!**
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