Wednesday, September 30, 2020

नाटक स्वराज्य

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-【स्वराज्य】- 

स्वराज्य कल से आगे- राज!         

                                

   राजकुमारी- पिता जी !       

                       

  एडा०- देखो! मैं एक बात कहना भूल गया- संदूक में जो कागज रक्खे हैं वे कोतवाल साहब के हवाले कर देना और मेरे मरने पर उनके पास इत्तिला भिजवा देना। मैंने अपनी सब जायदाद की वसीयत तुम्हारे नाम कर दी है- वसीयत का कागज भी उन्हीं कागजों में है।  कोतवाल साहब के पास चाबी है- वह खुद सन्दूक खोलेंगे- तुम सिर्फ इतना कर देना राजकुमारी हाथ जोड़कर इत्तिला कर देना।।       

                                    

 [ राजकुमारी हाथ जोडकर नमस्कार करती है। एडाल्फस आशीर्वाद देने के लिए हाथ उठाता है लेकिन जान निकल जाती है। दो-चार मिनट के बाद कोतवाल साहब मकान में दाखिल होते हैं] कोतवाल०-  राजकुमारी जी !क्या मैं अंदर आ सकता हूँ? राजकुमारी- तशरीफ़ लाइये, पिताजी का तो स्वर्गवास हो गया ।  कोत०-हैं!  कब? राजकुमारी- अभी दो-तीन मिनट हुए । कोतवाल- तुमसे कुछ कह गये?  राजकुमारी- इतना कहा है कि संदूक की चाबी आपके पास है और उसमें कुछ कागज है और वसीयत है। कोतवाल- बहुत अच्छा ! मैं अभी चाबी लाता हूँ नीज अपने प्यारे हमवतन की तकफीन(कफ्नाना) के लिए बंदोबस्त करता हूँ-  देखो! तुम घबराओ मत - हम सब तुम्हारी मदद पर है ।(कोतवाल जाता है और राजकुमारी दु:खी होकर रोती है)-●●[ गजल ] ●●       

 दुनिया को अपने जुल्म से चैन एक नफ्स (क्षण) नहीं है। ऐ  आसमाँ! क्या दिल में तेरे भी तरस नहीं।।१।।                                                       

मरने को मर ही जायँगे बंदे सब एक दिन। दो दम का है या खेल बरस दो बरस नहीं।।२।।         

                            

नाहक के जुल्म करके बनो तुम न रूसियाह(दोषी)। क्यों सुनते कान खोल के बाँगें(घंटे कि आवाज) जरस नहीं ।।३।।।                                              

  इस चश्मे नम से क्या तेरे हासिल भला मुझे । ऐ संगदिल(कठोर)! जो दिल में मेरा कुछ तरस नहीं।।४।।।                      

  【 पर्दा गिरता है】 क्रमशः 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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