**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात-
24 जनवरी 1933 -मंगलवार:-
दयालबाग पंपलेट (अंग्रेजी भाषा ) का तीसरा ऑडिशन खत्म हो गया है। सिर्फ 10 कॉपियां रह गई है। अब नया एडिशन निकालने का वक्त भी आ पहुंचा है। आज अनेक लेख लिखवाये। माह फरवरी तक जदीद एडिशन की पाण्डुलिपि तैयार करके प्रैस में दे दिया जावेगा । दयालबाग प्रेस अपने हिसाब से खूब काम कर रहा है लेकिन प्रेस में कलों की कमी है। आज ₹12000 प्रेस के विस्तार के लिए मंजूर किया गया।। एडीटर साहब प्रेम प्रचारक की दरख्वास्त पर एक संक्षिप्त मजमून बसंत नंबर नवंबर के लिए लिखा। रात के सत्संग में अव्वल दुनिया का नक्शा पेश किया गया और बाद में बसंत पंचमी के दिन ही की महिमा बयान हुई। दुनिया में एक और तो दुनिया के सामान और रोशनी, हवा वगैरह कुदरत की शक्तियाँ है और दूसरी और उनके चिन्ह और उनके भोगों के स्वादों की याद और काम क्रोध वगैरह मानसिक शक्तियाँ हैं । इनके बीचो-बीच बेचारा जीव आता है । यह चारों मिलकर जीवात्मा पर छापा मारते हैं। और जीव दिन-रात राग द्वेष के तजरुबे हासिल करता है और मरते वक्त खाली हाथ जाता है । राग द्वेष दोनों ही जिव को संसार में बाँधते हैं । और जब प्रकृति नियम उसे चुनाव करने का मौका देते हैं तो यह संसार ही की जानिब झुकता है। नतीजा यह है कि इस इंतजाम से आत्मा संसार ही का हो रहा है। और जन्मान जन्म यहाँ रह कर दुःख पाने के बावजूद आइंदा भी यहीं रहा चाहता है। राग द्वेष ने जीव के अंदर अविद्या के परदे को इतना मजबूत व गहरा कर दिया है कि उसे अपने नफा नुकसान की सुधि ही नहीं आ सकती । परम गुरु स्वामीजी महाराज ने सन 1861 ईस्वी में बसंत पंचमी के दिन सतसंग आम जारी फरमा कर दुनिया के इस धोखे की जड उखाड़ फेंकने का इंतजाम फरमाया। इसलिए बसंत पंचमी का दिन सतसंगियों के लिए खास अहमियत रखता है। हम सबको यह मुबारक भी सच्चे प्रेम व उत्साह से मनाना चाहिये। 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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