Wednesday, November 4, 2020

दयालबाग़ सतसंग 04/11

 **राधास्वामी!! 04-11-2020- 

आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-  

                                

  (1) करूँ संतमत का मैं थोडा बयाँ। वही सत्त मत हैगा अंदर जहाँ।। अगम लोक का भारी मंडल बँधा। वही कुल्ल रचना का घेरा हुआ।।-(करें मिल कज सब ऐश आनंद सार। नहीं काल कष्ट और नहीं कर्म भार।।) (प्रेमबानी-4-मसनवी-1,पृ.सं.15,16)

                                                 

 (2) सरन मैं गुरु की पाई आज। बिसारे जग के भय और लाज।।-( कहूँ सब जीवन से संदेस। गहो गुरु सरन छोड अंदेस।।) (प्रेमबिलास-शब्द-83,पृ.सं.117)                                                                                      

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग-दूसरा-कल से आगे।।   

                      

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 04-11-2020

 आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे-( 38) 

पतंजलि मुनि ने अपने भाष्य में, जो पाणिनी मुनि की अष्टाध्यायी पर लिखा गया है और जो हिंदू -समाज का एक प्रमाणिक ग्रंथ है, यह स्पष्ट करने के लिए कि जब किसी एक शब्द के स्थान में कोई दूसरा शब्द आ जाय तो दूसरा शब्द ,जिसे संस्कृत व्याकरण में 'आदेश ' कहते हैं , स्थानिकार्य अर्थात आ जाए जो दूसरा था पहले शब्द का अर्थ धारण कर लेता है, दृष्टांत के तौर पर लिखा है:-" गुरुवदस्मिन् गुरुपुत्रे वार्तितव्यमन्यत्रोच्छिष्टभोजनित्पादोपसंग्रमच्चेति। 

यदि च गुरुपुत्रोंअपी गुरचर्भवति तदपि कर्तव्यं भगवती तथा कर्तव्य भवति"।। अर्थ-  गुरु की तरह गुरु-पुत्र के साथ भी बर्ताव करना चाहिए सब बातों में सिवाय उच्छिष्ट भोजन के और पैर छूने के । और यदि गुरु-पुत्र भी गुरु होवे तो यह भी करना चाहिए( अध्याय १, पाद १, आह्विक ८, सूत्र ५३)। 

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-

 परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

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