शैलेन्द्र कुमार जारुहार
बिहार के कण कण में छठ बसता है , क्या भोजपुर, क्या मिथिला और क्या मगध , समूचा बिहार एक साथ , उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल भी धीरे धीरे रंग गया साथ में | छठ महापर्व आरम्भ हो गया | सूर्य की आराधना वाला यह पर्व अपने जैसा एकलौता | दुनिया में शायद ही कोई पर्व होगा जिसमे आप अपने आराध्य की अर्चना कीजिये और दर्शन तुरंत हो जाता हो | शायद यही कारण है की कोई धर्म की रीति इसे काट नहीं पाती | उर्जा और रोशनी देने वाले महामहिम सूर्य की आराधना का पर्व |
छठी मैया की महिमा को शब्दों में कहना मुश्किल है , भावना अभिव्यक्त करना कठिन है , सिर्फ यही कह सकता हूँ इनका स्मरण मात्र ही हम में से हरेक के अंदर हर्ष और उल्हास तो प्रस्फूटित तो करता ही है , आँखे भी नम हो जाती हैं | बिहार से बाहर रहने वाले बिहारियों की भी|कुछ लौटते है कम से कम साल में एक बार | जो नहीं लौट पाते रो ले ते हैं जन्मभूमि को याद कर , धीरे धीरे जहाँ है वहां ही चालु कर देते हैं , मुंबई के जुहू बीच का नजारा कुछ ऐसा ही होता है |
सब त्योहारों के बीच महापर्व तो यही है , ४ दिन तक चलने वाला, ३ दिन तक बिना पानी के व्रत , उसमे एक बार ३६ घंटे तक लगातार , कई तो कहते है हे छठी मैया तोहरा गोर लागतानी| छठी मैया भी माँ का स्वरुप , सीखा जाती है , सूर्य आराधना के साथ उस माँ की आराधना करना जिसने तुम्हे उत्तपन किया , कोई भी धर्म हो माँ का स्थान भगवान के बराबर है , साथ में| मेरे लिए तो ऊपर ही है भगवान से|
बचपन में , १ महीना पहिले चले जाते थे कुदाल , खुरपी , तगाड़ी लेके घाट बनाने पोखरा पे , हमारे लिए छठ यही था , घाट साफ़ कीजिये जैसे एक किसान खेतों को करता है , फिर उसके ऊपर बाबु जी के इनितिअल खोद दीजिए , बोका गया घाट हमारे नाम पर| कलसुप रखने के लिए जगह बनाए , शाम को कलसुप पश्चिम के तरफ रहेगा ,भोर में पूर्व दिशा में | थोड़े बड़े हुए तो दौरा उठाना , किसी का ये कहना की छठ का आधा पुण्य दौरा उठाने वाले को मिलता है | छठ के लिए लाइट लगता है, जेनेरटर भी , हर महल्ला से घाट तक , का शरीफ, का रंगबाज , का लैका, का जवान , सब समाजसेवी बन जाते हैं , सच्चे मन से | सुबह सुबह चाय का स्टाल लगते थे, शुद्ध दूध का चाय पीजिए फ्री में |
शारदा सिन्हा की आवाज जैसे छठी माई खुद गा रही हों “ दौरा घाटे पहुचा “ , ऐसे लगता है उनका गाना न हों तो सूर्य देवता उगे ही न | सही में माँ ही की आवाज है |
छठ नहीं कर पायें तो क्या , छठ देखिये , रोड साफ़ कीजिये , दौरा उठाइए , कहने का मतलब है सबके लिए मौका है छठ के रंग में रंग जाने का |
आज कल की महिलाएँ बालों में कही छुपा के सिंदूर लगाती है ताकि LS न लगे, छठ में देखिये जो नाक से सिंदूर लगता है माँग तक , कही से LS (Low Society) लगता , ऐसा लगता है सुहागन शायद आज के लिए बनी थी , सिंदूर का गर्व इसी दिन के लिए है , पति को भी गर्व का अहसास होता है |
भोर का अरघ के बाद प्रसाद मांगिये , मांग के खाते है , चाहे बिज़नसमैन हों य कलक्टर , मांग के प्रसाद नहीं खाया तो मतलब नहीं है प्रसाद का | छठ का ठेकुआ आज तक कोई दुबारा वैसा नहीं बना पाया है , कतनो मिटटी के चुल्ला लगाइए , कतनो घी डालिए , श्रद्धा नहीं आ पायेगा , प्रसाद है छठ तक रुकना परेगा |
मन ही मन छठी मैया तोहरा गोर लागतानी, माफ कर दिहा, अगला बरिस जरुर आयँगे ये माई |
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