Tuesday, November 17, 2020

रोजाना वाक्यात- 18/11

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात- कल से आगे :-                          


सुबह कॉरेस्पॉन्डेंस में इस किस्म के विचार वाला एक नौजवान से वास्ता पड़ा। बहुतेरा समझाया मगर उसकी समझ में एक बात न आई। वह अपना ही राग अलापता रहा ।और अब बिल्ली के भाग से छींका टूटा । मिस्टर कृष्णमूर्ति भी यही उपदेश करते हैं। ऊँघते और ठेलने का बहाना मिल गया। अब नौजवान किसी की क्यों सुनने लगे है।  यह नौजवान कहता है कि जब मुझे कोई शख्स परमात्मा दिखला देगा तो मैं उसे गुरु मानूँगा । उस वक्त तक मैं किसी को गुरु न मानूँगा और जो बातें सभी मजहबो में अच्छी कहीं जाती है, ईश्वर की आज्ञा समझ कर करता रहूँगा।

 मैंने जवाब दिया तुम जो चाहो कर सकते हो लेकिन अगर तुम्हे मालिक के दर्शन की चाह है तो वह इस तरीके अमल से पूरी न होगी । इसके लिए तुम्हें जिज्ञासु का अंग धारण करना पड़ेगा।  रात के सतसंग में भी यही बहस जारी रही । यह तरीके-अमर बुरा नहीं है लेकिन इसमें यह है कि यह इंसान के लिए खोजबीन का दरवाजा बंद कर देता है। जब किसी को यह यकीन हो गया कि जो तरीके-अमल उसने अख्तियार किया है बिल्कुल दुरुस्त है और उससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता और उसकी मार्फत उसको गंतव्य अवश्य ही हासिल हो जाए्येगी तो उसका दिल पक्षपाती हो जाता है।

अगर गंतव्य पर पहुंच कर अपने तरीके अमल के लिए कोई शख्स पक्षपात करें दुनिया तो जायज व दुरुस्त है । लेकिन नादान बच्चे की सी हैसियत रखते हुए अपने मन के बांधत्वों में पक्षपात कायम कर लेना अपना सत्यानाश कर देना है।

जब तक आप मंजिले मकसूद पर न पहुंच जावे आप जिज्ञासु बने रहे । मसलन आपने अपनी जिंदगी का उद्देश्य मालिक का दर्शन कायम किया है, आप उस परम गति की प्राप्ति के लिए साधन करते हैं ।

आपको चाहिये साधन करने के बाद बार-बार गौर करें आया साधन आपको नस्बुलएन की जानिब ले जा रहा है या नहीं। अगर ऐसा हो रहा है तो इत्मीनान से रहें वरना कुछ अर्सा आजमाइश के बाद किसी माहिर से मशवरा लें और फिर उसके कहने के मुताबिक अमल करके देखें।   

                                   

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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