"उसके खेल निराले" / कृष्ण मेहता
एक बार की बात है, नाथद्वारा में भगवान से उनका नित्य सेवक कहता है- "हे प्रभु ! आप एक जगह खड़े-खड़े थक गये होंगे, सो ऐसा करते हैं कि एक दिन के लिए मैं आपकी जगह मूर्ति बन कर खड़ा हो जाता हूँ, और आप मेरा रूप धारण कर नगर भ्रमण कर आइये।"
भगवान मान जाते हैं, लेकिन शर्त रख देते हैं कि "भाई ! एक बात का तुम्हें ध्यान रखना होगा वो यह कि, जो भी लोग प्रार्थना करने आयें, तुम बस उनकी प्रार्थना सुन लेना, कुछ बोलोगे नहीं। यहाँ जो भी आयेगा वो मुझे मालूम है, सो मैंने उन सभी के लिए पहले से ही व्यवस्था कर रखी है, तुम्हारे हस्तक्षेप से उसमे गड़बड़ हो सकती है।"
सेवक मान जाता है, उसने सहमति में सिर हिला दिया। फिर क्या था, श्री नाथ जी एक सामान्य वेश में नगर दर्शन को निकल गए और इधर मन्दिर में भक्त सेवक एकदम मूर्तिमय होकर श्रीनाथ जी की तरह खड़ा हो गया।
सबसे पहले मन्दिर में एक मोटा व्यापारी सेठ आता है और कहता है, "भगवान जी ! मैंने एक नयी फैक्ट्री डाली है, उसे खूब सफल करना। आप अपनी कृपा कर दो, आपके नाम से चाँदी का मुकुट चढ़ाऊँगा।" वह माथा टेकता है, तो उसका पर्स नीचे गिर जाता है। वह बिना पर्स लिये ही चला जाता है। सेवक बेचैन हो जाता है. वह सोचता है कि रोक कर उसे बताये कि पर्स गिर गया, लेकिन शर्त की वजह से वह कहता नहीं है।
इसके बाद एक गरीब आदमी आता है और श्री नाथ जी को हाथ जोड़ रोते हुए कहता है, कि "प्रभु ! घर में खाने को कुछ नहीं बच्चे भूखे हैं कल से कोई काम भी नही मिला। आप मेरी सहायता कीजिये कुछकृपा करिये।" उसने जैसे ही मत्था टेकने को सिर झुकाया वैसे ही उसकी नजर पर्स पर पड़ती है। वह उसे भगवान का कृपा प्रसाद मान खुश हो गया और बार-बार दण्डवत करते हुए धन्यवाद देते हुए पर्स लेकर चला जाता है।
फिर तीसरा व्यक्ति आता है। वह एक नाविक होता है। उसने भी आते ही हाथ जोड़ा और भगवान से कहता है कि "भगवन ! मैं कल से 15 दिनों के लिए जहाज लेकर समुद्र की यात्रा पर जा रहा हूँ। यात्रा में कोई अड़चन न आये भगवान।"
तभी पीछे से बिजनेस मैन पुलिस के साथ आता है और कहता है कि मेरे बाद ये नाविक ही आया लगता है। बस इसी ने मेरा पर्स चुरा लिया है।
पुलिस नाविक को ले जा रही होती है कि सेवक जो इन सारे घटनाक्रम को मूर्ति-रूप में देख रहा था, उससे रहा नही गया। वह बोल उठा, उसने सारी सच्चाई बता दी। अब पुलिस सेवक के कहने पर उस गरीब आदमी को जो अभी घर तक भी नही पहुँच पाया था, रास्ते से ही पकड़ कर जेल में बंद कर देती है।
रात को भगवान आते हैं, तो सेवक खुशी-खुशी पूरा किस्सा बताता है कि आज कैसे एक बेकसूर नाविक को उसने पुलिस के चंगुल से बचाया।
श्रीनाथ जी ने सारा किस्सा सुन के कहा, "सुनो सेवक भाई ! तुमने किसी का काम बनाया नहीं, बल्कि बिगाड़ा है।" सेवक बड़े आश्चर्य में पड़ गया कि भला यह कैसे ? प्रभु ने जब उसके चेहरे पर आश्चर्य मिश्रित प्रश्न चिन्ह लगा देखा तो बताना शुरू किया, "देखो ! ऐसा है कि वह व्यापारी गलत धन्धे करता है। अगर उसका पर्स गिर भी गया, तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ना था, और वह उतना ही धन था जितना उसने उस गरीब आदमी की आठ साल पहले कब्जा की हुई जमीन को बेचकर कभी पाया था। तो इससे उसके पाप ही कम होते, क्योंकि वह पर्स उसी गरीब इन्सान को मिला था जो उसका वास्तविक अधिकारी था, पर्स मिलने पर उसके बच्चे भूखों नहीं मरते और वह अपने लिए रोजगार कर लेता जिससे वह फिर उसी जमीन को खरीद लेता।
अब रही बात नाविक की, तो वह जिस यात्रा पर जा रहा था, वहाँ तूफान आनेवाला था। अगर पर्स चोरी में वह जेल में रहता, तो उसकी जान बच जाती। उसकी पत्नी विधवा होने से बच जाती। दो दिन बाद नाविक को पुलिस छोड़ देती। तुमने सब गड़बड़ कर दी।"
हमारे लिए क्या उचित है वह पहले से ही प्रभु ने सोच रखा है। हमारे साथ जो हो रहा है वह प्रभु की ही इच्छा है।
🌹 जय जय श्री राधे🌹
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
No comments:
Post a Comment