**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
【 शरणाश्रम का सपूत】
कल से आगे:
- भोंडी- मुए, मैंने तुझको गली में खेलने के लिए भेजा था?
(घर में दाखिल होते है, भोंडी बच्चों को खूब पीटती है। दोनों जमीन पर अधमुए होकर गिर जाते हैं)
शिवराम-( खाँसता हुआ चारपाई से उठकर ) अरे! बस रहने दे। बहुतेरी मार पड़ गई है। क्या जान ही से मार डालेगी, (खावँ ,खावँ) आखिर हमारी ही औलाद है। बस छोड़ दे।
भोंडी-हट दफा हो। होगी तेरी औलाद। सत्यानास जाय तेरा, और तेरी औलाद का।
(शिवराम को धक्का देती है, बूढ़ा गिर कर मर जाता है। थोड़ी देर बाद भोंडी शिवराम को चुप देखकर फिकरमन्द होती है और टटोल कर देखती है। उसे मुर्दा पाकर रोना चिल्लाना शुरू करती है और बच्चों को घसीट कर कोठरी में फेंकती है)
भोंडी- हाय रे! मैं लुट गई, हाय रे! मैं मर गई । हाय !हाय!! आइयो रे लोगो- आइयो रे- मेरे स्वामी को क्या हो गया हाय -मेरा बेड़ा गर्क हो गया- हाय! हाय !मैं लुट गई रे लोगों- मैं मर गई रे - हाय हाय! हाय री अम्मा- हाय रे!
( रोना सुनकर पड़ोसी आ जाते हैं और शिवराम को मुर्दा देखकर अफसोस करते हैं। भोंडी रह-रहकर चिल्लाती रहती है)
एक पड़ोसिन- जुल्म हुआ-भोंडी! तेरे साथ जुल्म हुआ।
दूसरी पड़ोसिन- डारियों रे राम तें- बडा जुल्म हुआ।
पहली पडोसिन- बेचारी ने बूढ़े का कुछ भी तो सुख नहीं देखा।
भोंडी-हार रे मैं लुट गई ! हाय रे लोगों ! (सिर पीटती है)
पहली पड़ोसिन- जो किस्मत में लिखा है सो हो कर ही रहता है।
भोंडी! अब रो मत, सबर कर ।
दूसरी पड़ोसिन- भई जिसके चोट लगे उसे रोना आता ही है -लाख समझाओ।
प्रेमलाल- भोंडी! रोने पीटने के लिए तो सारी उम्र पड़ी है। तुम अब बच्चों को सँभालो और उन्हें छाती से लगाओ । मालिक की मरजी से मेल मिलाओ। एक दिन हर किसी को चल देना है ।
(भोंडी चिल्लाती है ) प्रेमलाल- अरी तेरे बच्चे कहाँ हैं ? तू बतला तो,हम बच्चों को संभाल ले , फिर बुड्ढे के दाहकर्म का इंतिजाम करेंगे।
भोंडी- यहीं कहीं पडे होंगे। मैं बच्चों का क्या करूँगी । जब मेरा स्वामी मर गया, मेरे लिए सब मर गये।कोठरी में देखो ।
(प्रेम लाल कोठरी में बच्चों को बेहोश पाता है। पानी छिड़क कर होश में लाता है। बच्चे रोने लगते हैं। प्रेमलाल उठाकर उन्हे बाहर लाता है । सब पडोसी रोने लगते हैं। प्रेमलाल के आँसू आ जाते हैं)
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
No comments:
Post a Comment