**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत
- 21 फरवरी 1933- मंगलवार:-
तड़के 5:30 बजे रेलवे स्टेशन पर पहुँचे ।गाड़ी आई और वापसी का सफर शुरू हो गया। 5 घंटे इटारसी में विश्राम किया। टिमरनी के सेठ बालकिशन साहब व सोडलपुर के पटेल नंदलाल साहब सहयात्री रहे। 5:15 बजे फ्रंटियर एक्सप्रेस में सवार हो गये। आँख खुली तो आगरा छावनी का स्टेशन नजर आया।।
रास्ते में खंडवा स्टेशन पर एक साधु साहब से मुलाकात हुई। उपनिषद व दर्शन पढे हैं। 15 दिन बाद दयालबाग आने का इरादा रखते हैं । इटारसी में चतुर्वेदी जी से और होशंगाबाद स्टेशन पर मिस्टर चटर्जी से मुलाकात हुई। दोनों बड़े काबिल शख्स है और इंडस्ट्रियल मामलात से खास दिलचस्पी रखते हैं। मिस्टर चटर्जी चमारों की सहायता की फिक्र में है। वह यह सुनकर निहायत खुश हुए की दयालबाग में चमडा रंगने का काम जारी होने वाला है।
चतुर्वेदी जी ने सवाल किया- आया दयालबाग में चमडे का काम होने से गौहत्या की सहायता नहीं होती। मेरा जवाब नकारात्मक था। मैंने कहा जानवरों खालों के लिए वध नहीं होते बल्कि गोश्त के लिए्ये। और जब तक मुल्क में काफी तादाद गोश्तखोरों की है गौहत्या कभी बंद नहीं हो सकती। अगर भारत वाले खालो का इस्तेमाल ना करेंगे ।
वह अन्य देशों में चली जावेगी और वहाँ से चमड़े के बने हुए तैयार होकर यहाँ आयेंगे ।और हम उन्हे दुगने चौगुने दामों पर खरीद कर इस्तेमाल करेंगे। इसलिए हमारे खालों को काम में(न) लाने का नतीजा यह होगा कि सिर्फ गौ हत्या बंद न होगी बल्कि मुल्क की दौलत गैर मुमालिक में में जाने से अहले हिंद को निर्धनता व भुखमरी का सामना करना होगा।।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻*
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