**राधास्वामी!! 22-11-2020-
आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) सुन री सखी मेरे प्यारे राधास्वामी। आज प्रेम रंग बरसाय रहे री।।टेक।। -(मगन होय सुन नइ धुन घट में। धन धन राधास्वामी गाय रहे री।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-6-पृ.सं.33,34)
(2) मेरे प्यारे बहिन और भाई। क्यों आपस में तुम झगडो। रलमिल कर सतसंग करना।।टेक।। सहजहि देखा होत उधारा। प्रिय लागा सतसँग ब्योहारा। कुल मालिक का मिलना।।-(निसदिन तुम्हरा भाग बढावें। प्रेम प्रीति घट माहिं बसावें। सुफल करें देह धरना।।) (प्रेमबिलास-शब्द-92-पृ.सं.133,134)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे-(63)
आगे चल कर वर्णन हुआ है कि जब ऐसे खोजी को सच्चे सतगुरु मिल जायँ तो उनका प्रतिदिन दर्शन करें और तन, मन ,धन और सुरत इन चारों से सेवा करें । इसके अन्नतर निम्नलिखित विधि से तन की सेवा का वर्णन किया गया है:-
【 प्रथम तन की सेवा】
आरत सेवा नित ही करें। काम क्रोध मद चित्त हरे।।१९।।
अर्थात् उसे चाहिए कि सच्चे सतगुरु के मिल जाने पर उनकी कृपा दृष्टि और आकृष्ट करें और उसके द्वारा अपने चित्त को काम ,क्रोध और अहंकार से रहित करें।
चरण दबावे पंखा फेरे। चक्की पीसे पानी भरे।।२०।।
मोरी धो झाड़ू को धावे। खोद खदाना मिट्टी लावे।।२१।।
अपने हाथों से उनके चरण दबावे ,पंखा करें, और चक्की पीसकर उनके लिए आटा तैयार करें। और कुएँ से पानी भर कर लावे। घर की सफाई और मोरी धोने का काम भी स्वयं करें और उनके हाथ धोने के लिए बाहर खेतों से मिट्टी खोद कर लावे।
हाथ धुला दातन करवावे। काट पेड़ से दातन लावे।।२२।।
बटना मल अशनान करावें। अंग पोंछ धोती पहिनावे।।२३।।
धोती धोय अँगोछा धोवे। कंघा करें बालबल खोवे।।२४।।
वस्त्र पहिनावे तिलक लगावे करे रसोई भोग धरावे।।२५।।
जब गुरु महाराज हाथ धोना चाहें उनके हाथ धुलावे और दातुन करने के लिए पानी पेश करे और जैसे हाथ धुलाने के लिए मिट्टी लाता है ऐसे ही दातुन भी स्वयं लाया करे। फिर अवसर प्राप्त होने पर उबटन मलकर स्नान करावें और देह पोंछ कर धोती पहिनावे । पानी से धोती और अंगोछा धोवे और कंघे से बाल साफ करें। फिर वस्त्र पहनावे और माथे पर तिलक लगावे। और रसोई तैयार करके उनके सामने भोग के लिए रक्खे।
जल अचवावे हुक्का भरे। पलँग बिछावे बिनती करे।।२६।।
पीकदान ले पीक करावे। फिर सब पीक आप पी जावे।।२७।।
नाना बिधि की सेवा करे। नीच ऊँच जो जो आ पडे।।२८।।
कोई टहल में आर न लावे। जो गुरु कहे सो कार कमावें।।२९।।
भोजन कर चुकने पर पीने के लिए जल अर्पण करें और यदि गुरु महाराज हुक्का पीते हों हुक्का भरे़, और उनके आराम करने के लिए पलँग बिछावे और जब वे आराम करने लगें तो नम्रता से पूछे- " कोई और आज्ञा है?" ।
कोई आज्ञ न मिलने पर चुपचाप बैठा रहे और जब गुरु महाराज पीक फेंकना चाहें तो पीकदान पेश करें और पीकदान साफ करते समय पीक फेंकने के बजाय स्वयं उसे पी जाय। आशय यह है कि अपने शरीर से एक दीन सेवक के समान गुरु महाराज की सब सेवाएँ करें और किसी सेवा में झिझके नहीं और उनकी आज्ञाओं का जान और प्राण से पालन करें। पर जैसा कि कडी नंबर 19 में उपदेश किया गया है काम, क्रोध और अहंकार को चित्त दूर रक्खें।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा -
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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