Friday, November 20, 2020

दयालबाग़ सतसंग 20/11

 **राधास्वामी!! 20-11-2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                 


  (1) सुन री सखी मेरे प्यारे राधास्वामी। मोहि प्यार से गोद बिठाय रहे री।। टेक।। मैं तो निच अधम नाकारा । मेहर से मोहि अपनाय रहे री।।-(परम गुरु समरथ राधास्वामी। सब पर मेहर कराय रहे री।।) (प्रेमबानी-4-शब्द 4-पृ.सं.32,33)                                                        

  (2) संत की महिमा कहूँ जनाई। पिरेमी जन सुन हर्षाई।। दया जिव निसदिन पाले संत। बहुत जिव भार उठावे संत।।-(रहूँ मैं नित उन महिमा गाय। चरन राधास्वामी हिये बसाय।।) (प्रेमबिलास-शब्द-91-पृ.सं.131,132)                                                     

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-

कल से आगे।।                              

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**राधास्वामी!!         

                                  

 आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे:-(60)

 ख्वाजा साहब अजमेरी के जीवन चरित्र के, जो मुक्ति इंतजामुल्लाह साहब ने लिखा है, पृष्ठ १३ पर लिखा है, -" एक रोज हजरत ख्वाजा अपने बाग में फसल की निगहबानी कर रहे थे। इब्राहिम कंदोजी, जो उसी कस्बा के शेख वक्त थे, उस बाग की तरफ गुजरे। हजरत ख्वाजा ने आपको ताजीम(आदर) से बिठाया। और कुछ अंगूर नजर(भेंट) किये। आप बहुत खुश हुए। हजरत इब्राहिम कंदोजी ने एक टुकड़ा खल का निकाला और दांत से कुतरकर ख्वाजा गरीबनिवाज को दिया। इस टुकड़े के खाने के बाद से खास कैफ तारी( अन्तर में गहरे प्रेम की दशा वर्तमान) हो गई।।     

                                    

( 61) क्या यह और इस प्रकार की अन्य घटनाएंँ, जिनका पहले वर्णन हो चुका है, मिथ्या ही है ? और क्या छान्दोग्य उपनिषद के रचयिता ऋषि ने, जिसका उल्लेख पीछे किया जा चुका है, अग्निहोत्र के असली भावार्थ समझने वाले पुरुष के उच्छिष्ट भोजन अर्थात जूठन की आध्यात्मिक शक्ति की व्यर्थ महिमा की है?  और मनु महाराज तथा पतंजलि मुनि को यह ध्यान न था कि जूठा खाने के संबंध में निर्देश करते समय क्या कर रहे हैं ?

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻               

   यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-

 परम गुरु हुजूर साहब जी महाराज!**

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏✌

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