Sunday, November 8, 2020

दयालबाग़ सुबह शाम सतसंग--08/11

**राधास्वामी!! 08-11-2020- 

 आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-    

                                 

 (1) आज गाऊँ गुरु महिमि मन उमँग जगाय।।टेक।। राधास्वामी नाम बसा मेरे हिय में। चरन गुरु रहे घट में छाय।।-( हे राधास्वामी प्यारे सतगुरु। तुम बिन और न कोउ सुहाय।।) (प्रेमबिलास-शब्द-50,पृ.सं 63,64)                                                          

(2) तजो मन यह दुख सुख का धाम। लगो तुम चढ कर सब सतनाम।।-(राधास्वामी कहत सुनाई। खोज करो निज नाम।।) (सारबचन-शब्द-9वाँ, पृ.सं. 286)                     

   सतसंग के बाद:-            

                           

(1) गुरु गहो आज मेरी बहियाँ। मैं बसू तुम्हारी छइयाँ।।-(राधास्वामी चरन समइयाँ। छिन छिन मैं लेउँ बलइयिँ।।) (सारबचन शब्द-4,पृ.सं.631,632)                           

   (2) आज घडी अति पावन भावन। राधास्वामी आये जक्त चितावन।।-(राधास्वामी शब्द मनावन। सुरत चढी देखा घट चाँदन।।) (सारबचन-शब्द-4,पृ.सं.556)                                                (3) तमन्ना यही है कि जब तक जिऊँ। चलूँ या फिरुँ या की मेहनत करुँ।। पढूँ या लिखूँ मुहँ से बोलूँ कलाम। न बन आये मुझसे कोई ऐसा काम।। जो मर्जी के तेरु के मुवाफिक न हो। रजा के तेरी कुछ मुखालिफ जो हो।।     

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 08-11-2020- 

आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-   

                                   

(1) अहो मेरे सतगुरू अहो मेरी जान। अहो मेरे प्यारे अहो मेरे प्रान।। चरन में करुँ बीनती बार बार। सुनो हे दयाल मेरी जल्दी पुकार।। दरश देके सूरत चढा दीजिये। मुझे रस भरी धुन सुना दीजिये।।-(बिरह में तपत रहूँ मैं तपत रात दिन। दरश बिन नही चैन मोहि एक खिन।। ) (प्रेमबानी-4-मसनवी-3-पृ.सं.19,20)                                                           

 (2) सतगुरु प्यारे ने जगाई। मन में प्रीति नवीनी हो।।टेक।।-(उमँग अंग ले किया अभ्यासा। फोड दिया घट नील अकासा। सुरत शब्द में दीनी हो।।) (प्रेमबिलास-शब्द-85,पृ.सं.119-120)                                                      

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।       

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**राधास्वामी!!    

                                               

   आज शाम  सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे-( 44) 

हो सकता है कि इस साखी के सत्य स्वीकार करने में किसी को संकोच हो, पर सुखमनी साहब की नीचे लिखी अष्टपदी में फरमाये हुए बचनों से तो कोई इनकार नहीं कर सकता:-                                              

चरण साध के धोय धोय पीउ।अरप साध को अपना जिउ । साध के धूर करहु अस्नान। साध ऊपर  जाइये कुरबान। साधसेवा बड़भागी पाइये। साध संग हरकीर्तन गाइये। अनेक विघन ते साधू राखे।  हर गुन गाय अमृत रस चाखे। ओट गही सन्तह दर आइया। सरब सुख नानक तेह पाइया। 

【अष्टपदी 15 (६)】   

                                            

 गुरु अर्जुन फरमाते हैं कि प्रेमीजन को चाहिए कि सच्चे साध संत के चरण धोकर पिये और अपना आपा उनके चरणों में अर्पण करें , अर्थात अपने तन, मन, धन और सुरत को उनके भेंट करें । उनके चरणों की धूलि से स्नान करके अपनी देह को पवित्र करें , और अपने को उनपर नयोछावर करें। सच्चे साध संत की सेवा बड़भागी ही को मिलती है। उनके संग में रहकर मालिक के गुणानुवाद गाने चाहिएँ। 

उनकी शरण लेने पर मनुष्य अनेक विघ्नों से बचा रहता है, और मालिक के गुणानुवाद गाकर अमृतरस चखता है । गुरु जी फरमाते हैं- " जो शख्स संतो के चरणों में हाजिर होकर उनकी ओट यानी शरण इख्तियार करता है वह हर प्रकार के सुखों को प्राप्त होता है"।

 ऐसी दशा में यह विश्वास करना कि किसी मनुष्य को सच्चे सतगुरु के चरण स्पर्श करने या उनका चरणोंदक पीने या और कोई प्रसाद ग्रहण करने से असाधारण अंतरी तजरुबे प्राप्त हो गये या अगम निगम दिखाई देने लगा, अधिक कठिन नहीं रह जाता।                           

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 

यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा- 

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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