**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
रोजाना वाकिआत-
22 फरवरी 1933 -बुधवार:
- दयालबाग पहुंच गये। मेजों पर कागजों के अम्बार लगे हैं। लेकिन 10 दिन की तातील व जंगल की सैर से तबीयत काम करने के लिए तत्पर है।।
सबसे पहला खत दीवान बहादुर हर बिलास सारदा का मिला । प्रेम प्रचारक मुद्रित 13 फरवरी में मेरी डायरी दिनांक 22 जनवरी सन 33 प्रकाशित हुई थी जिसमें जिक्र था कि अजमेर में आर्य समाज की दो पार्टियां है और इस वर्ष स्वामी दयानंद जी की मृत्यु अर्द्ध शताब्दी मनाने के लिए दोनों पार्टियां अलग-अलग इंतजाम कर रही है । दीवान बहादुर साहब लेखन फरमाते हैं कि यह खबर गलत है।
अर्द्ध शताब्दी का जलसा ढंग से मिलजुल कर ही मनाया जावेगा और वह माह अक्टूबर में होगा । माह फरवरी में आर्य समाज केसरगंज अजमेर अपनी 50 साला जुबली मनायेगी जिसका स्वामी दयानंद जी अर्द्ध शताब्दी से कोई संबंध नहीं है। अर्द्ध शताब्दी के उत्सव का इंतजाम किसी खास आर्य समाज के जिम्में नहीं है बल्कि यह सेवा परोपकारिनी सभा, आर्य सार्वदेशिक सभा और प्रदेशिक सभा मिलकर करेंगी। काश सतसंगी भाई आर्य भाइयों की इस मिसाल से सबक लें और बुजुर्गों की याद के मुतअल्लिक़ जलसे आयन्दा मिलकर मनाने का निश्चय करें।
अफसोस है असली हालात मालूम न होने से डायरु में गलत इनदराज हो गया और दीवान बहादुर हर बिलास साहब को व्यर्थ तकलीफ उठानी पड़ी।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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