**राधास्वामी!! 13-11-2020-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) काल ने जगत अजब भरमाया। मैं क्या क्या करूँ बखान।। पंडित भेष पेट के मारे। वे संतन पर करते तान।। -(ना साधन अधिकार न परखें। पढने का करते अभिमान।।) (सारबचन-शब्द-17,पृ.सं.204)
(2) करो गुरु सँग प्यार री। मेरी भोली सुरतिया।।टेक।। माया सँग जग माहिं फँसानी। तीन पाँच हुए यार री।। मेरी भोली सुरतिया।।-(दया मेहर ले आगे चालो। राधास्वामी चरन निहार री। मेरी भोली सुरतिया।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-75 ,पृ.स.342)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी! 13-11-2020-
आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) मेरे तपन उठत हिये भारी। गुरु प्रेम की बरषा कीजे।।टेक।।
बिरह अगिन सुलगत नित घट में। कस निरखूँ छबि तिल पट में।। मेरी उमर गई खटपट में। अब तो दरशन दीजे।।-(तुम राधास्वामी समरथ दाता। मुजको भी करो सनाथा। तुम चरनन रहूँ रस राता। मेरी सुरत सरन में लीजे।।)
(प्रेमबानी-4-शब्द-4 ,पृ.सं.24,25)
(2) सखी री मैं तो जावत हूँ पिया देश।।टेक।।
या नगरी रह सुख नहिं पाया। दुखित रही दिलरेश।।-(पढ पढ पोथी बहु थक हारीः साँचे सुख का मिला न लेश।। ) (प्रेमबिलास-शब्द-88,पृ.सं.124,125)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
कल से आगे-( 52)
कौन नहीं जानता कि श्री रामचंद्र जी ने एक भीलनी के श्रद्धा से अर्पित किए हुए झूठे बेर अत्यंत प्रसन्नता से अंगीकार किये और कृष्ण महाराज ने सुदामा भक्त के तणडुल और विदुरजी की स्त्री का अर्पित किया हुआ केले का छिलका खाना स्वीकार किया ( विदुरजी की स्त्री कृष्ण महाराज के दर्शन- रस में इतनी मग्न थी कि उन्हें यह भी सुधि न रही कि केले का छिलका फेंका जाता है और भीतर की फली खाने के लिए दी जाती है)।
रामचंद्र जी और कृष्ण महाराज की इन कार्यवाहियों को सुनकर आजकल के शुष्क ज्ञानी हँसेंगे, परंतु जिन भक्तों पर इन महापुरुषों ने यह दया फरमाई जरा उनसे उनके दिल का हाल पूछे, और यदि कृष्ण महाराज से सच्चा प्रेम है तो श्रीमद्भागवत गीता के दशम स्कंध के 23वें अध्याय का 12वाँ श्लोक पढ़े। लिखा है - "एक गोपी ने नाचने में हिल रहे कुंडल की झलक से सुशोभित अपने कोमल कपोल को कृष्ण के कपोल से मिलाया। कृष्ण ने उसके मुख में अपनी जूठी बीडी( पान की गिलोरी) दे दी"।
कृष्ण महाराज की अवस्था उस समय केवल 11 वर्ष की थी , और जैसा कि उस अध्याय के 25वें श्लोक में वर्णन हुआ है , "महाराज उस समय साधारण विषयी पुरुषों की भांति काम के वशीभूत न थे " (देखो अनुवाद पंडित रूपनारायण पाण्डेय कृत, 914 और 915 मुद्रित सन 1931 ईस्वी)
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा
- परम गुरु हुजूर साहब जी महाराज!**
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