**राधास्वामी!!- 25-11-2020 आज शाम सतसंग में पढे जाने पाठ:-
(1) अचरज आरत गुरु की धारुँ। उमँग नई हिये छाय रहे री।।टेक।। सतसंगी सब हरषत आये। सतसंगिन उंमगाय रहे री।।-(राधास्वामी मेहर से हिये में सबके। छिन छिन प्रेम बढाय रहे री।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-9-पृ.सं.36,37)
(2) दरस आज दीजिये। मेरे राधास्वामी प्यारे हो।।टेक।। मेहर अब कीजिये। मेरे राधास्वामी प्यारे हो।-(पन न बिसारिये। मेरे राधास्वामी प्यारे हो।।) (प्रेमबिलास-शब्द-95-पृ.सं.136,137)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
25-11- 2020
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन
- कल से आगे-( 66)
प्रश्न- कुछ आर्य और सनातनी आक्षेपको ने जो लेख इस मत के विरुद्ध प्रकाशित किये हैं उनमें उनकी समालोचना पढ़ने से तो यह ज्ञात होता है कि ये सेवाएँ केवल स्त्रियों के लिए विशिष्ट थीं।
उत्तर - यदि ऐसा किसी ने लिखा है तो यह उसके चित्त की मलिनता और नीचता का प्रकट प्रमाण है। आप जरा पोथी सारबचन छन्दबन्द से बचन नंबर( 13 ) पढ़कर देखिए तो आपको ज्ञात होगा कि जैसा कि ऊपर वर्णन हुआ है जैसे भाई अनुरागियों अर्थात मालिक के दर्शन की प्राप्ति के अभिलाषीयों के लिए नियत की गई है।' स्त्री' शब्द का कहीं भी प्रयोग नहीं हुआ है।
शब्द के शीर्षक और कड़ियों में पुर्लिंग का प्रयोग हुआ है । शब्द का शीर्षक है 'पहचान परमार्थी की'। चौथी कड़ी में 'अनुरागी जो जीव ' शब्द आये हैं और नवीं कडी में 'खोजत फिरे साध गुरु जागा' लिखा है । यदि यह उपदेश स्त्रियों के लिए विशिष्ट होता तो 'जागा' के स्थान में 'जागी' शब्द लिखा होता ।
इसके अतिरिक्त विचार करना चाहिए कि भारतवर्ष में स्त्रियों को आज्ञा और अवसर ही कहाँ है कि सतगुरु की खोज में घर से निकले? बेचारी स्त्रियाँ साधारणतया अपने संबंधी पुरुषों के पीछे चलती है अर्थात् जो विचार घर में पुरुषों के होते हैं उन्हीं को वे ग्रहण कर लेती है। पुरुष ही जिज्ञासु बनकर साध संत की खोज करने के लिए स्थान स्थान पर जाते हैं। उपदेश के भावार्थ को बिगाड़ कर महात्माओं को कलंकित करना भद्र पुरुषों काम नहीं है।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-
परम गुरु हजूर साहबजी महाराज!**
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