**राधास्वामी!! 24-11-2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) चलो री सखी आज गगनपुरी। जहाँः गुरु प्यारे फाग रचाय रहे री।।टेक।।-(राधास्वामी मात पिता पति मेरे। मोहि प्यार से गोद बिठाय रहे री।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-8-पृ.सं.35,36)
(2) सुरतिया धार बहाय रही। सतगुरु का दर्शन पाय।।टेक।। जनम जनम के बिछडे प्रीतम।आज मिले मोहि आय।।-(राधास्वामी दयाल परम हितकारी। हूजे आज सहाय।।) (प्रेमबिलास-शब्द-94-पृ.सं.135)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 24-11-2020 -
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन:-
कल से आगे-(65)
यह उत्तर निवेदन करने के पश्चात यहांँ कुछ ऐतिहासिक घटनाएँ लिख देना अनुचित न होगा । स्वामीजी महाराज, जिनकी पवित्र वाणी के संबंध में इस समय विवाद चल रहा है, सन 1878 ईस्वी में गुप्त हुए ।
पोथी सारबचन छंदबंद आपने अपने गुप्त होने से कुछ वर्ष पहले रची थी। उस समय भारतवर्ष में गुरुओंकारा और देवताओं की पूजा साधारणतया प्रचलित थी और आर्य-समाज का, जो गुरु- भक्ति का ईतना विरोधी है, उस समय केवल जन्म हुआ था। जो सत्संगी उस समय स्वामी जी महाराज की शरण में आये उनका संबंध या ७७६{तो सिक्ख- मत से था या वैष्णव- धर्म से । और आगरा शहर की उस जाति और कुल में, जिसमें स्वामी जी महाराज का जन्म हुआ था , पान और हुक्के का साधारण प्रचार था।
जब हुजूर साहब ने, जो राधास्वामी-मत के दूसरे आचार्य हुए, स्वामी जी महाराज की चरण- शरण ग्रहण की तो पोस्ट मास्टर जनरली के उच्च पद पर सुशोभित होते हुए भी उन्होंने उस समय की चाल के अनुसार स्वामीजी महाराज की हर प्रकार की सेवा करना अपना धर्म बना रक्खा था और पूर्वोक्त शब्द में उन्ही सब सेवाओं का वर्णन है जो हुजूर साहब प्रतिदिन स्वयं किया करते थे।
पर अब समय ही दूसरा है। साइंस के चमत्कारों और नवीन अविष्कारों में लोगों के जीवन का रुप ही बदल दिया है। दयालबाग ही को देखिये। हर घर में बिजली का तार और पानी का नल लगा है। कौन पानी भरे ? कौन पंखा चलावे? मिट्टी और उबटन के बदले साबुन का उपयोग होता है और दातुन के बदले मंजन का। कौन मिट्टी और दातुन लावे और कौन उबटन मले? दयालबाग - निवासियों ने हुक्का तंबाकू छोड़ दिया है। सत्संग की जिम्मेदारी लिए मुझे 20 साल हो गये पर न मुझे तंबाकू पीने की आदत है न पान की जरूरत । इसलिए कौन हुक्का भरे और कौन पीकदान लेकर पीक करावे? फिर इन कड़ियों को लेकर राधास्वामी-मत पर आक्षेप करने का क्या प्रयोजन? प्रेमीजनों के सेवा करने के लिए कॉलेज ,हस्पताल और अनेक कारखाने आदि है।
जिसका जी चाहे राधास्वामी दयाल और संगत की सेवा करें। और सहस्त्रो पुरुष और स्त्रियां दिन-रात सेवा करते हैं और यही दयालबाग के विकास और उन्नति का कारण है । क्या आपने हाफिज का निम्नांकित पद सुना है?:-
मशनौ सखुने दुश्मने बदगोय खुदा रा।
बा हाफिजे मिसकीं खुदा ए दोस्त वफा कुन।
अर्थ :- हे मित्र , खुदा के वास्ते निंदा करने वाले शत्रु की बातों पर ध्यान न दो; तुम दीन हाफिज के साथ मित्रता निबाहो ।
आप सेवा के वास्तविक अभिप्राय पर दृष्टि रखिये और यह न भूलिये कि सतगुरु उस महान् आत्मा को कहते हैं जो काम क्रोध आदि की मैल से रहित हो । जिसकी दृष्टि में सोना और कंकड़ , पुरुष और स्त्री बराबर हो और जिसकी सुरत प्रबुद्ध हो और चेतनता के भंडार सच्चे कुल मालिक से एकता प्राप्त किये हो । और निंदक विरोधियों से पूछिये कि क्या वे अपनी माता के साथ पुत्र बन कर, बहिन के साथ भाई होकर और मित्रों के प्रियजनों और संबंधियों के साथ मित्र बनकर व्यवहार नहीं करते? क्या उनसे व्यवहार करते समय उनके हृदय में अनिवार्य रूप से मलिन भाव आ जाते हैं?
और यदि वे औरों के साथ निर्मल संबंध निबाह सकते हैं तो क्या किसी महान पुरुष के लिए ऐसा करना असंभव या दुष्कर है? (जिसने सेवा की वह पूज्य बना) ' हर की खिदमत कर्द ओ मखदूम शुद' प्राचीन काल में यह एक मान्य सिद्धांत रहा है, अब भी है और आगे भी रहेगा।।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा
- परम गुरु हजूर साहबजी महाराज!**
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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