आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) अहो मेरे सतगुरु अहो मेरी जान। अहो मेरे प्यारे अहो मेरे प्रान।। -(चरन में करूँ बीनती बार बार। सुनो हे दयाल मेरी जल्दी पुकार।। ) (प्रेमबानी-4-मसनवी-3, पृ.सं.18)
(2) संत में यार परघट है इधर आओ यहाँ ढूँढों।। तेरे घट में छिपा बैठा इधर आओ यहाँ ढँढों।।-( कहन राधास्वामी की मानो इधर आओ यहाँ ढूँढों।।) (प्रेमबिलास-शब्द-84,पृ.सं. 118,119)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
07- 11- 2020 -आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे-( 43 )
हजरत मसीह और हजरत मुहम्मद के संबंध में जो कुछ वर्णन हुआ वह उनके मतानुयायियों को अस्वीकार नहीं। और गीता, उपनिषदों ,मनुस्मृति, महाभाष्य, सिख गुरुओं और दूसरे संतो के उपदेश इन महात्माओं से संबंध रखने वाली कथाओं से मिलाने पर अवश्य सिद्ध होता है कि महात्माओं के प्रसाद, चरणामृत आदि में अवश्य कोई असाधारण प्रभाव रहता है। कबीर साहब का बचन:-
गुरु को मानुष जानते, चरणामृत को पान(पानी)। ते नर नरके जायँगे, जनम-जनम होय स्वान(कुत्ता)।।।
प्रकटरूप से सिद्ध करता है कि कबीर साहब के सत्संग में चरणामृत की कितनी महिमा थी। भाई बाला की जनमसाखी में , जो मुफीदेआम प्रैस लाहौर में छपी है, पृष्ठ 397 पर गुरुमुखी भाषा में लिखा है- "
एक दिन श्री गुरुजी (गुरु नानक साहब) करतारपुर अपने घर में आराम से सोये हुए थे और रसोई तैयार हुई । रसोइये ने माताजी की खिदमत में अर्ज की- माताजी! रसोई तैयार है। उस वक्त माताजी किसी काम में मशरूफ थीं। उन्होंने अपनी दासी को कहा- गुरुजी को जगा लाओ । वह दासी जाकर गुरुजी को जगाने लगी और उसने गुरुजी के चरण अपनी जबान से चाटने शुरू किये।
ऐसा करते ही दासी की दिव्य दृष्टि खुल गई और उसे अगम निगम नजर आने लगा। उसने देखा कि गुरु साहब समुंदर के किनारे खड़े हैं और किसी सिक्ख का डूबता हुआ जहाज पार लगा रहे हैं "। इत्यादि ।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा -
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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