**परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र -भाग 1
- कल से आगे-(14)
कुल अभ्यासी सत्संगियों को चाहिए कि नीचे लिखे हुए शब्द के मतलब को समझ कर जहाँ तक बन सके उसके साथ मन से मुआफिकत करें और सतगुरु राधास्वामी दयाल की मौज के अनुसार जिस कदर हो सके बर्ताव करें ।।
●●शब्द ●●
गुरु की मौज रहो तुम धार। गुरु की रजा संभालो यार।।१।।
गुरु जो करें सो हितकर जान। गुरु जो कहें सो चित धर मान।।२।।
शुकर की करना समझ बिचार। सुक्ख दुख देंगे हिकमत धार।।३।।
ताड और मार करें सोइ प्यार। भोग सब इंद्री रोग निहार।।४।।
कहूँ क्या दमदम शुक्रगुजार। बिना उन और न करनेहार।।५।।
दुखी चित से न हो दुख लार। सुखी होना नहीं सुख जार।।६।।
बिसारो मत उन्हे हर बार । दुक्ख और सुक्ख रहो उन धार।।७।।
गुरु और शब्द ये दोऊ मीत। नहीं कोई और इन धर चीत।।८।।
यही सतपुरुष यही करतार । लगावे तोहि इक दिन पार ।।९।।।
बिना उन कोई नहीं संसार । देव मन सूरत उन पर वार।।१०।।
करें वह नित्त तेरी सार। तेरे तन मन के है रखवार।।११।।
शुकर कर राख हिरदे धार । मिटावें दुक्ख सब ही झाड।।१२।।
करे क्या मन तेरा नाकार। नहीं तू छोड़ता विष धार।१३।।
भोग में गिरे बारम्बार । न माने कहन उनकी सार।।१४।।
इसी से मिले तुझको दंड। नहीं तू मानता मतिमंद।।१५।।
सहो अब पडे जैसी आय। करो फर्याद गुरु से जाय।।१६।।
पकड़ फिर उन्हीं को तू धाय। करेंगे वो ही तेरी सहाय।।१७।।
बिना उन और नहीं दरबार । रहो उन चरनन में हुशियार ।।१८।।
गुनह तुम किये दिन और रात। गुरु की कुछ नहीं न मानी बात।।१९।।
इसी से भोगते दुख घात। बचावेंगे वही फिर तात।।२०।।
रहो राधास्वामी के तुम साथ। लगे फिर शब्द अगम तुम हाथ।।२१।।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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