**राधास्वामी!! 16-11-2020- आज सुबह शाम के सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) काल ने जगत अजब भरमाया। मैं क्या क्या करूँ बखान।। गुरु की मूरत हृदे बसाओ। चन्द्र चकोर प्रीति घट आन।।-(गुरूमुखता बिन सुरत न चढती। फूटे गगन न पावे नाम।।) (सारबचन-शब्द-17वाँ,पृ.सं.205)
(2) चरन गुरू दिन दिन बढती प्रीत।।टेक।। समझ गुरु गत मत अगम अपार। धार रही मन में दृढ परतीत।।-(राधास्वामी सरन अधारी। निज घर चाली भौजल जीत।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-1 प्रेम बहार-भाग पहला,पृ.सं.344,345)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! -/ शाम सतसंग में पढें गये पाठ:-
(1) क्यों अटक रही जग प्यारी। यामें दुख भोगे भारी।।टेक।।-(राधास्वामी सरन सम्हारोः गुरु के सँग अधर सिधारो।। लख जोत सूर और चंदा। सत अलख अगम को धारो।। हुई राधास्वामी चरन दुलारी।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-7,पृ.सं.28-29)
(2) सुरतिया बिनती करत रही। करो गुरु मेरा आज उधार।।टेक।। कोई दिन सँग में अपने रख कर। आप करे़ उस काज सँभार।।-(जल्दी करो देर नहिं लावो। हे राधास्वामी गुरु दयार।।) (प्रेमबिलास-शब्द-89,पृ.सं.126,127)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे-( 55)
आपको मालूम होगा कि जब खुदावंद ताला के फरिश्तों को हुकुम दिया कि आदम को सिजदा करें तो जिस फरिश्ते ने ऐसा करने से इनकार किया उसे खुदावंद ताला ने क्या खिताब (नाम) दिया और उसकी क्या दुर्गति हुई।
राधास्वामी- मत मनुष्य शरीर को बड़ा महत्व देता है और मानता है कि हरचंद-
मर्दाने खुदा खुदा न बाशन्द। लेकिन ज खुदा जुदा न बाशन्द।।
अर्थात मालिक के प्रेमी मालिक तो नहीं होते पर मालिक के भिन्न भी नहीं होते। इसके अतिरिक्त यह विचारने योग्य है कि जिस समय आप खुदा को सिजदा करते हैं तो अधिक से अधिक आपकी अंतरी दशा यही तो होती है कि आपके चित्त में मालिक का ध्यान रहता है और आप उसी ध्यान को सिजदा करते हैं, यह ध्यान में लाया हुआ खुदा असली खुदा नहीं है।
यह दूसरा खुदा है और केवल आपके मन की कल्पना है। यदि कुरानशरीफ किसी भी ऐसी वस्तु को, जो अल्लाह नहीं है, सिजदा करने से रोकता है तो आपके इस कल्पित खुदा को भी वर्जित ठहराता है ।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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