Sunday, February 7, 2021

सेवक में अभिमान ना हो

 ...........!! *श्रीराम: शरणं मम* !!/ ।श्रीरामकिंकर वचनामृत।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

प्रस्तुति -कृष्ण मेहता


      *तात्त्विक सत्य को जीवन में*

     *उतारने में कहीं ऐसा न हो कि*

      *व्यक्ति अभिमानी बन जाय।*

      °"" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" ""°

    श्री हनुमानजी लंका-विजय के बाद जब लौटे तो प्रभु श्री हनुमानजी की प्रशंसा करने लगे। श्री हनुमानजी प्रशंसा के शब्द सुनकर प्रभु का मुख देखने लगे। भगवान् श्रीराम ने मुस्कुराकर श्री हनुमानजी की ओर देखकर कहा -- "हनुमान ! चलो, तुम्हारी दृष्टि चरणों से मुख पर तो गई। यह उचित है क्योंकि तुम तो *'ज्ञानिनामग्रगण्यम्'* (ज्ञानियों में अग्रगण्य हो)। आज तुम्हारा ज्ञानी होना सार्थक सिद्ध हुआ क्योंकि चरणों में दास्य भावना है और मुख में बराबरी की। आज तुम्हारी दृष्टि मुख पर गई इसका अभिप्राय है कि बहुत दिनों तक तो तुम दास रहे पर अब ऊपर उठ गए। इसलिए तुम मुख की ओर देख रहे हो क्योंकि चरण नीचे है और मुख ऊपर है।" पर श्री हनुमानजी ने अनोखा कार्य यह किया कि वे मुख देखते-देखते अचानक पुकारने लगे-"प्रभु ! रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए।" इतना हो नहीं, रक्षा की पुकार करते-करते चरणों में गिर पड़े। जब प्रभु उठाने लगे तो उठ भी नहीं रहे हैं।

     भगवान् श्री राघवेन्द्र ने श्री हनुमानजी से पूछा, "हनुमान ! मैं तो बड़ा प्रसन्न हुआ कि चरण से तुम मुख तक तो पहुँचे, दास्य से ऊपर तो उठे लेकिन बाद में तुम फिर से चरणों में ही क्यों गिर पड़े ?" हनुमानजी ने उतर देते हुए कहा-"महाराज ! मुख मैं इसलिए देखने लगा कि आप मेरी प्रशंसा कहीं उसी प्रकार तो नहीं कर रहे हैं जैसे नारदजी की की थी।" यह सूत्र बहुत ध्यान देने योग्य है कि जब कोई प्रशंसा करे तो उसका मुख जरूर देख लेना चाहिए कि प्रशंसा करने वाला कहीं प्रशंसा व्यंग्य में कर रहा है या डर से कर रहा है या कि लोभ के मारे कर रहा है। हनुमानजी ने कहा, "नारदजी की जब आपने प्रशंसा की तो उन्हें अभिमान हुआ और आपने उन्हें बन्दर बना दिया। किन्तु प्रभु, मैं तो पहले से ही बंदर हूँ। अब मुझे क्या बनाइएगा? महाराज मैं तो यही कहूंगा कि बड़ी अच्छी आकृति थी बंदर की, जिसको देखकर माया दूर भाग गई। पर इसके साथ-साथ मेरी प्रार्थना यह भी है कि आप मेरी रक्षा कीजिए।"

      भगवान् श्रीरामभद्र ने जानना चाहा -- "हनुमान ! लंका में तुमने मुझे नहीं पुकारा, यहाँ पुकार रहे हो ?" हनुमानजी ने कहा, “महाराज! लंका के राक्षसों से मुझे डर नहीं लगा, पर प्रशंसा के राक्षस से तो मुझे भी डर लगता है। इसलिए आप कृपा करके इससे बचाइए।" प्रभु ने कहा, “अगर न बचाऊँ तो ?" हनुमानजी ने कहा --  "तब भी कोई चिन्ता इसलिए नहीं है क्योंकि प्रशंसा सुनकर व्यक्ति अभिमानी होता है और गिरता है। तो प्रभु ! गिरने के लिए मैंने अपनी ओर से ही ऐसा स्थान चुन लिया कि जहाँ गिरने पर चोट नहीं आती। इसलिए मैं आपके चरणों में गिर गया।" जब चरणों में गिर गए तो प्रभु ने उठाते हुए कहा कि "आओ हृदय से लगो। तुम दास नहीं हो, तुम तो मेरे आत्मस्वरूप हो, अभिन्न हो। मैं तो तुम्हें बहुत बड़ा तत्त्वज्ञ समझता था, पर लगता है तुममें अभी भेद-बुद्धि बनी हुई है। इसलिए तुम्हारा चरणों में रहने का इतना आग्रह है। होना तो यह चाहिए कि मैं यदि हृदय से लगाऊं तो तुम हृदय से लग जाओ, मैं तुम्हें गोद में लूं तो गोद में चले आओ।" श्री हनुमानजी ने प्रभु के चरणों को और कसकर पकड़ते हुए कहा, "प्रभु ! क्या ब्रह्म में भी छोटा-बड़ा होता है ? क्या चरण छोटा और मुख बड़ा है ? क्या यहाँ भी ऊपर-नीचे होता है ? प्रभु ! मैं तो यह समझ ही नहीं पा रहा हूँ कि जब ब्रह्म सर्वत्र समान है तो फिर आप ही क्यों कह रहे हैं कि चरण छोड़कर हृदय से लगो ? क्या चरण में आप पूर्ण विद्यमान नहीं हैं ? बल्कि में तो समझता हूं कि अगर चरण छोड़कर मैं हृदय से लग जाऊं तब तो इसका सीधा-सा अर्थ है कि मुझमें यह भेद-बुद्धि बनी हुई है कि पैर छोटा है और मुख बड़ा है।

      वस्तुतः मिश्री की डली चारों ओर एक जैसी ही होती है। उसमें कोई भाग कम या अधिक मीठा तो होता नहीं। इसलिए आपके कहने पर भी मैं नहीं छोड़ गा, क्योंकि इष्ट के रूप में आप जो कह रहे हैं उससे अधिक उपादेय तो वह है जो आपने गुरु के रूप में कहा था।" यही भक्तों की चतुराई है। इसका अभिप्राय है कि *ज्ञान के नाम पर कहीं हम अहंकारी बनकर अथवा अपनी पूजा कराने की आकांक्षा मन में लाकर दूसरों की पूजा करना बंद न कर दें।* इसलिए इसमें थोड़ा संशोधन करने की आवश्यकता है।

      भगवान् कहते हैं -- सारे संसार को ब्रह्म का रूप देखिए --

*सो अनन्य असि जाके मति न टरइ हनुमन्त।*

*मैं  सेवक  सचराचर  रूप  स्वामि  भगवंत।।*

      सेवक वही है जिसमें अभिमान का सर्वथा अभाव हो। इसका सांकेतिक अर्थ यह हुआ कि *तात्त्विक सत्य को जीवन में (व्यवहार में) उतारने में कहीं ऐसा न हो कि व्यक्ति अभिमानी बन जाय।*

         🔱 जय सियाराम 🙏

No comments:

Post a Comment

बधाई है बधाई / स्वामी प्यारी कौड़ा

  बधाई है बधाई ,बधाई है बधाई।  परमपिता और रानी मां के   शुभ विवाह की है बधाई। सारी संगत नाच रही है,  सब मिलजुल कर दे रहे बधाई।  परम मंगलमय घ...