**राधास्वामी!! 12-01-2021- आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-
(1) सतगुरु खोजो री प्यारी। जगत में दुर्लभ रतन यही।।
शब्द बिना सारा जग अंधा।
बिन सतगुरू सब भर्ममई।।-
(कहना था सोई कह डाला। राधास्वामी खूब कही।।)
(सारबचन-शब्द-चौथा-पृ.सं.262,263)
(2) नाम रँग घट में लागा री।।टेक।।
सुनत गुरु प्यारे के बचना। सोवत मनुआँ जागा री।।
-(चरन में राधास्वामी पहुँची धाय।
जगा मेरा अचरज भागा री।।)
(प्रेमबानी-2-शब्द-56,पृ.सं.404,405)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर मेहता जी महाराज
- भाग 1- कल से आगे:-
बुद्धिमानी इसी में है कि किसी बात के बारे में पहले मालूम हो जाने पर हम अपने व संबंधियों के लिये समय से पहले मुनासिब प्रबंध करें ।
अगर हुजूर साहबजी महाराज ने इतने अर्से पहले इस बारे में तमाम संगत को सूचित किया था तो ऐसा करने में उन दयाल की यही गरज थी कि संगत कि तमाम व्यक्ति पहले से ही मुसीबत व खतरा सामने आने पर उसका मुकाबिला करने के लिए बखूबी तैयार हो जावें और इस तरह से अपने को उससे सुरक्षित रख सकें।
इस वक्त जो बचन' सतसंग के उपदेश' से पढ़ा गया उसका भी विषय यही है। इसमें यह साफ हिदायत है कि जब कोई मुसीबत सिर पर आवे तो मालिक के चरणों का ध्यान करके जो मुनासिब उपाय यह तदबीर समझ में आवे उस पर अमल किया जाय।मुसीबत को देखकर घबराना नहीं चाहिए, निर्णय शक्ति से काम लेना चाहिए।
इसके बाद मौज से शब्द निकला:-
घर आग लगावे सखी, सोई सीतल समुँद समावे।
( सारबचन- बचन-13 शब्द-2)
- हुजूर ने फरमाया- जो बात मैंने अभी आपके सामने पेश की उससे मेरा मतलब यह नहीं था कि आप मुसीबत और खतरे का ख्याल करके डर जायँ बल्कि अगर कहीं खतरा या कोई आफत यकायक आ जावे तो आपके हाथ पैर ढीले न पड़ जायँ। मेरा मशवरा आप साहिबान के लिए यही है कि जब कभी कोई खतरा या मुसीबत सामने आवे तो पहले दीनता व अजिजी से हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में सहायता व मदद के वास्ते प्रार्थना करें और फिर सत्य विचार से काम लेकर और मामले को अपनी अक्ल और समझ के मुताबिक तोड़कर जो तरीका दुरुस्त मालूम हो उस पर अमल करें।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-[ भगवद् गीता के उपदेश]
- कल से आगे:
- और मेरा कायदा है कि लोग जिस तरह यानी जिस गरज से मेरी तरफ आते हैं यानी मेरी शरण लेते हैं मैं उसी तरह उनका स्वागत करता हूँ, क्योंकि जो रास्ते वे इख्तियार करते हैं मेरे ही हैं यानी मेरी ही तरफ लेजाने वाले हैं।
अलबत्ता जो लोग संसार के कामों में कामयाबी चाहते हैं वे देवताओं की यज्ञ कर्म से पूजा करते हैं क्योंकि इस पर मनुष्यलोक में कर्म का फल जल्द ही मिल जाता है। दुनिया में गुण और कर्म के फर्क आधार पर मैंने चार वर्ण रचे हैं ।
Hलेकिन बावजूद यह इन्तिजाम करने के मुझको अकर्ता और अविनाशी समझो, क्योंकि न तो मुझ पर कर्मों का असर होता है और न ही मुझे कर्मफल की इच्छा होती है और जो मुझे ऐसे ही जानता है उस पर भी कर्मों का जोर नहीं चलता।
हमारे पूर्वज इस रहस्य से वाकिफ होकर मोक्ष की तलाश में कर्म करते थे और तुम पर भी फर्ज है कि उनकी नीति पर चल कर कर्म करो।
【 15】 क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज -
प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:-(2)-
दूसरा प्रसादी देने और लेने पर ऐतराज जाहिर है कि रस्म गुरु की प्रसादी लेने की सब मतों में प्राचीन काल से जारी है और उसी मुआफिक मंदिरों में प्रसादी और चरणामृत बांटने का दस्तूर जारी है अब समझना चाहिए कि जिस वक्त से महात्मा जिन की मूर्ति मंदिर में स्थापित की गई है मौजूद होंगे तो उस वक्त भोग लगाकर यानी झूठा करके प्रसाद सेवको और श्रद्धा वालों को बाँटते होंगे, क्योंकि वे अपने वक्त के गुरु और मालिक से मिलने का रास्ता बताने वाले थे।
इसी तरह से हर एक स्थान,जहाँ पर महात्मा और भक्तों की समाधि या कोई निशान मौजूद है और उसके दर्शन और पूजा के वास्ते सैकड़ों कोसों से लोग आते हैं, तो वहाँ पर भी प्रसाद बदस्तूर बाँटा जाता है और पहले बाँटने से ध्यान करके उन महात्माओं को भोग लगाया जाता है, तो अब विचारना चाहिए कि जिस वक्त के महात्मा जिंदा थे, उस वक्त उनके भाव वाले पहले उनको खिला कर प्रसादी लेते होंगे और महात्मा की जात पाँत का ख्याल कोई नहीं करता होगा।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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