**राधास्वामी!! 09-02-2021- आज शाम सतसँग में पढे गये पाठ:-
(1) सुरतिया धूम मचाय रही।
करें गुरु क्यों नहिं दया बिचार।।-
(चाहे अपना रूप दिखाओ।
चाहे सुनाओ शब्द अपार।।)
(प्रेमबानी-4-शब्द-2-पृ.सं।104,105)
(2) सावन मास सुहागिन आया। रोम रोम अँग अँग हरषाया।।
प्रेम घटा के बदला छाये। रिमझिम रिमझिम बरषा लाये।।
नाम प्रताप की महिमा भारी। चरनप्रसाद हिये बिच धारी।।
सतगुरुप्यारी सुरत अलबेली। हुई अचिंत अब सन्तसहेली।।
-(अरब खरब का मरम पिछाना।
राधास्वामी पद को किया पयाना।
चरनअम्बु में गोता मारा। हैरत हैरत वार न पारा।।) (प्रेमबिलास-शब्द-2-पृ.सं. 2,3)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 09- 02- 2021 आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:-( 148)-
[स्त्री के लिए पति ही ईश्वर है]-
प्रश्न- हमने तो यह सुना है कि शास्त्रों में लिखा है कि स्त्री के लिए पति ही ईश्वर होता है, इसलिए उसका किसी अन्य व्यक्ति को गुरु बनाना उचित नहीं। इससे स्त्रियों को सत्संग में सम्मिलित होने की आज्ञा न होनी चाहिए?
उत्तर- यदि आप स्वयं पत्नी वाले हैं तो अपनी ही अंतरी दशा देख कर कहिये कि क्या आप ईश्वर कहलाने के अधिकारी हैं?
और आपके सिद्धांत के अनुसार तो संसार में करोड़ों ईश्वर हो गये। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति विवाह होते ही ईश्वर बन जाता है। पर उसे ईश्वर कौन बना देता है?
उसकी पत्नी? यदि यह ठीक है तो फिर तप और साधन कर करने की क्या आवश्यकता है?
बस विवाह कर लिया और ईश्वर बन गये। किंतु आगे चल कर आपकी पत्नी मर गई तो बस आपकी ईश्वरता जाती रही और आप साधरण मनुष्य रह गये।
और यदि आप मर गए तो आप की पत्नीे का ईश्वर मर गया अब उस बेचारी को समस्त जीवन ईश्वर के बिना ही व्यतीत करना पड़ेगा। नहीं, नहीं, यह सिद्धांत असंगत है।**
*( 149)- पिछले समय में स्त्रियां कैद में रखी जाती थी और जब किसी बेचारी दुखिया के हृदय में परमार्थ के लिए प्रेम उमगता था तो उसे यह सिद्धांत सुना कर चुप कर दिया जाता था।
(150 )-इसके अतिरिक्त यह तो विचार कीजिये कि जब आपके इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक साधारण पुरुष अपनी पत्नी के लिए ईश्वर माना जा सकता है तो सतगुरु को ईश्वर कहने पर क्यों इतना क्रोध कोप किया जाता है।।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!*
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