Friday, February 12, 2021

सतसंग सुबह RS 13/02

 **राधास्वामी!!-13-02-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                    

 (1) धुन से सुरत भई न्यारी रे। मन से बँधी कर यारी रे।।-

 (गुरु बिन नहिं और अधारी रे।

 राधास्वामी काज सुधारी रे।।)

 (सारबचन-शब्द-पहला-बचन-14-

चितावनी-पृ.सं.263,264)        

                                      

  (2) तन मन धन से भक्ति करो री।।टेक।।

कोरी भक्ति काम नहिं आवे। याते हिये में प्रेम भरो री।।-

(राधास्वामी मेहर करें जब अपनी।

भौसागर से सहज तरो री।।)

 (प्रेमबानी-2-पृ.सं.405)                               

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हुजूर मेहताजी

महाराज-भाग 1- कल से आगे:-( 27)- 3 मई 1940

को रात के सत्संग में जो बचन पढ़ा गया उसके बारे में हुजूर ने फरमाया- आज इस वक्त जो बचन पढ़ कर सुनाया गया कि जब संत सतगुरु मौजूद हों और जब वह सत्संग का सिलसिला जारी फरमावें तो उस वक्त जहाँ तक हो सके उसका ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाना चाहिए।

इसी तरह सत्संग के अलावा जो भी इंतजाम वह जारी फरमावे, जैसे जिस्मानी कसरत वगैरह उसका भी पूरा फायदा उठाना चाहिए। अगर वक्त पर पूरा फायदा नहीं उठाया जावेगा तो जिस तरह से आप आज पुराने बचनों पर अमल न करने की याद करते हैं, इसी तरह से इस कार्रवाई की भी याद करेंगे।                                  

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

[ भगवद् गीता के उपदेश]-

 कल से आगे :-

कैसे कर्म करें और कैसे अकर्म रहें- ये ऐसी बातें हैं जिनके समझने में बड़े-बड़े विद्वान् भी असमर्थ हैं । मैं तुम्हें कर्म करने का ढंग बतलाऊँगा जिसे समझ कर तुम पाप से छूट जाओगे।                                                 

 कर्म का मार्ग निहायत झीना है । इस पर भली प्रकार चलने का अधिकारी होने के लिए कर्म, विकर्म और अकर्म का फर्क जानना जरूरी है। कर्म से तात्पर्य शुभकर्म, विकर्म से अशुभकर्म और अकर्म से कर्म का न करना है। जब तक इंसान को मालूम न हो कि कौनसा कर्म शुभ है, कौन सा अशुभ और किस तरह कर्म करता हुआ इंसान का अकर्म रहता है वह कर्म के मार्ग पर कदम बढ़ाने का अधिकारी नहीं बनता।

जो कर्म में अकर्म और  अकर्म में कर्म देखता है वही अकलमंद इंसान है। उसका कर्म करते हुए भी अन्तर में तार जुड़ता रहता है । जो शख्स फल की आशा छोड़ कर अपने सब कर्म करता है और जिसके सब कर्म ज्ञान की अग्नि से भस्म हो गए हैं उसे बुद्धिमान लोग पंडित कहते हैं। वह कर्मफल के मोह से रहित, तृप्त, निराश्रय, कर्म करता हुआ भी अकर्म है।

【20】क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज

- प्रेम पत्र- भाग्-1- कल से आगे :-

और जाहिर है कि जितने औतार और संत और साध और भक्त और महात्मा पिछले वक्तों में पैदा हुए, और जिनकी पूजा आम तौर पर जगह-जगह हर एक देश में (जैसा कि ऊपर की दफा में जिक्र हो चुका है) जारी है, इनमें से कोई भी जात का ब्राह्मण नहीं था, बल्कि बहुत से नीची जात में प्रगट हुए। पर उनकी प्रसादी गुरु भाव करके उनकी मौजूदगी में, और बाद उनके चोला छोड़ने के भी सब सेवक और भाव वाले जीव लेते चले आये हैं। 

 इस जमाने में भी हर कोई औरत और मर्द अपने अपने गुरु की परसादी, चाहे वे कबीरपंथी हैं या नानकपंथी या दादूपंथी या कोई और भेष और पंथ में से हैं या गुसाँईं वगैरह, बगैर दरियाफ्त करने उनकी जात पाँत के लेते हैं, बल्कि गोकुल वाले गुसाइयों का मुँह से उगला हुआ बड़े शौक और भाव के साथ गहरी भेंट और पूजा देकर लेते हैं।

और जगन्नाथ जी में हर एक जात के यात्रियों  की जूठन खुद वहाँ के पुजारी और पंडे और सब कोई आपस में खाते हैं, और उसको प्रसाद समझ कर दूर-दूर अपने घरों में लेकर जाकर खाते हैं और अपने कुटम्बियों को बाँटते हैं।। और मथुरा वृंदावन में सब जात वाले मंदिरों में एक जगह बैठकर दाल रोटी और कढ़ी चावल और खीचडी वगैरह की परसादी खाते हैं, और सखरन ( कच्चा खाना दाल रोटी ) निखलन (पक्का खाना, पूरी वगैरह) का बिल्कुल भेद नहीं करते।

और बहुतेरे आदमियों के हाथ अपने मकान पर मँगवा लेते हैं, और कभी-कभी गुसाँईं लोग अपने आदमियों के हाथ घरों पर भिजवा देते हैं और मंदिरों से अपने घरों पर भी ले जाते हैं। क्रमशः                           

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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