**राधास्वामी!! 08-02-2021-आज शाम सतसंग में पढे जाने वाले पाठ:-
(1) सुरतिया खेलत बाल समान। चरन में गुरु के उमँग उमंग।।-(सरन राधास्वामी दृढ करता। भाव और भक्ति हिये धरता।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-1 बचन-22-पृ.सं.104)
(2) सावन मास सुहागिन आया। रोम रोम अँग अँग हरषाया।।-( प्रेमदुलारी सुरत शिरोमन। नाम अधार रहे स्वामी चरनन) ( प्रेमबिलास-शब्द-2-पृ.सं.2)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग-दूसरा-कल से आगे।।
स्पेशल सतसँग:-
(1) देखत री दरस गुरु पूरे। चाखत रही री प्रेम रस मूरे।। (सारबचन-शब्द-6-पृ.सं.83,84)
(2) हे कोई ऐसी सुरत शिरोमन अटल सुहाग जिन पान है।।टेक।।-(परस चरन प्रीतम राधास्वामी। बहुरि जनम नहिं पाना है।। (प्रेमबिलास-शब्द-62-पृ.सं.80,81)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!08- 02- 2021- आज शाम सत्संग में पढा गया बचन-कल से आगे:-
( 147 )- श्री ग्रंथ साहब से दो और शब्द अवलोकनार्थ उपस्थित कियज जाते हैं। देखे उन्हें पढ़ कर भी आक्षेपक महाशय के विचार पूर्ववत बने रहते हैं या उनमें कोई परिवर्तन हो जाता है।
सीराग, महल्ला ३ चोपदे
मन्मुख करम कमावणें ज्यों दोहागिण तन सिंगार।
सेजे कंत न आवई नित नि होय ख्वार।
पीर का महल न पावई ना दीसे घर बार।। ★ ★
गुरमुखसदा सोहागिन पिर राख्या उर धार।
मिट्ठा बोलहि निव चलहि सेजे रवे भतार।
शोभावन्ती सोहागनी जिन गुरु का हेत अपार।
अर्थ:- मन्मुख लोग अपनी ओर से शुभ कर्म करके जन्म सफल किया चाहते हैं किंतु उनकी यह करतूत ऐसी ही निष्फल है जैसे किसी विधवा स्त्री का तन का श्रंगार होता है। ऐसे श्रृंगार से क्या लाभ जबकि उन्हें कंत से मिलाप न होगा और नित नित अनादर और तिरस्कार सहना पड़ेगा?
उनका प्रीतम के महल में दखल न होगा (सच्चे मालिक के चरणो की समीपता प्राप्त होगी) और ना निजदेश (मालिक के धाम अर्थात निर्मल चेतन देश ) की गति प्राप्त होगी। जिन लोगों को सतगुरु की चरण- शरण प्राप्त है वे ही सोहागिन सुरतें हैं । सच्चा प्रीतम उनके हृदय में सदैव निवास करता है । वह मीठा बोलती हैं और दीनता से बर्ताव करती हैं और उन्हें सदा भर्तार अर्थात सच्चे पति से एकता प्राप्त रहती है। वे सुहागिन स्त्रियां (सुरतें) शोभा वाली होती हैं जिनके हृदय में सतगुरु के लिए बेअन्त प्रेम रहता है।
राग मल्हार, महल्ला ५, घर का पहला ।
जब प्रिय आए बसे गह्य आसन। तब हम मंगल गाया।
मीत साजन मेरे भये सुहेले। प्रभु पूरा गुरु मिलाया।
सखी सहेली भये आनन्दा । गुरु कारज हमरे पूरे।
कह नानाक वर मिलिया सुखदाता।
छोड़ न जाई दूरे।
इस शब्द में गुरु महाराज ने अपने को स्त्री और उस सतगुरु को 'प्रिय' और 'वर' शब्दों से संबोधित किया है। 'प्रिय' का अर्थ प्यारा और 'वर' का अर्थ दुल्हा पति है।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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