Thursday, September 30, 2021
जितिया व्रत का महत्व
#जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत शुरू, जानिए पूजा विधि और व्रत पारण कब होगा?*
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*हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखने का विधान है।*
*जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया या जिउतिया व्रत भी कहते हैं। यह व्रत सप्तमी से शुरू होकर नवमी तिथि तक चलता है। जितिया व्रत को महिलाएं संतान की लंबी आयु की कामना के लिए रखती हैं। इस साल यह व्रत 28 सितंबर से शुरू होकर 30 सितंबर तक रहेगा।*
*जितिया व्रत का महत्व*
*जितिया व्रत संतान की लंबी आयु, निरोगी जीवन और खुशहाली के लिए रखा जाता है। तीन दिनों तक चलने वाला यह व्रत नहाए खाए के साथ शुरू होता है। दूसरे दिन निर्जला व्रत और तीसरे दिन व्रत का पारण करना चाहिए।। इस साल 28 सितंबर को नहाए खाए, 29 सितंबर को निर्जला व्रत और 30 सितंबर को व्रत का पारण किया जाएगा।*
*जितिया व्रत शुभ मुहूर्त-*
*28 सितंबर की शाम 06 बजकर 16 मिनट से आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि शुरू होगी। यह 29 सितंबर की रात 8 बजकर 29 मिनट तक रहेगी। अष्टमी तिथि के साथ व्रत समाप्त नहीं होगा। व्रत का पारण 30 सितंबर को किया जाएगा।*
*जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा विधि-*
सुबह स्नान करने के बाद व्रती प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को लीपकर साफ कर लें।
इसके बाद वहां एक छोटा सा तालाब बना लें।
तालाब के पास एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ाकर कर दें।
अब शालिवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति जल के पात्र में स्थापित करें।
अब उन्हें दीप, धूप, अक्षत, रोली और लाल और पीली रूई से सजाएं।
अब उन्हें भोग लगाएं।
अब मिट्टी या गोबर से मादा चील और मादा सियार की प्रतिमा बनाएं।
दोनों को लाल सिंदूर अर्पित करें।
अब पुत्र की प्रगति और कुशलता की कामना करें।
इसके बाद व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
*व्रत पारण का समय*
*जीवित्पुत्रिका व्रत रखने वाली माताएं 30 सितंबर को सूर्योदय के बाद दोपहर 12 बजे तक पारण करेंगी। मान्यता है कि जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण दोपहर 12 बजे तक कर लेना चाहिए।*
अप्रतिम भक्त मोरध्वज
#राजा #मोरध्वज की #कथा!!!!!!!
महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद अर्जुन को वहम हो गया की वो श्रीकृष्ण के सर्वश्रेष्ठ भक्त है, अर्जुन सोचते की कन्हैया ने मेरा रथ चलाया, मेरे साथ रहे इसलिए में भगवान का सर्वश्रेष्ठ भक्त हूँ। अर्जुन को क्या पता था की वो केवल भगवान के धर्म की स्थापना का जरिया था। फिर भगवान ने उसका गर्व तोड़ने के लिए उसे एक परीक्षा का गवाह बनाने के लिए अपने साथ ले गए।
श्रीकृष्ण और अर्जुन ने जोगियों का वेश बनाया और वन से एक शेर पकड़ा और पहुँच जाते है भगवान विष्णु के परम-भक्त राजा मोरध्वज के द्वार पर। राजा मोरध्वज बहुत ही दानी और आवभगत वाले थे अपने दर पे आये किसी को भी वो खाली हाथ और बिना भोज के जाने नहीं देते थे।
दो साधु एक सिंह के साथ दर पर आये है, ये जानकर राजा नंगे पांव दौड़के द्वार पर गए और भगवान के तेज से नतमस्तक हो आतिथ्य स्वीकार करने के लिए कहा। भगवान कृष्ण ने मोरध्वज से कहा की हम मेजबानी तब ही स्वीकार करेंगे जब राजा उनकी शर्त मानें, राजा ने जोश से कहा आप जो भी कहेंगे मैं तैयार हूँ।
भगवान कृष्ण ने कहा, हम तो ब्राह्मण है कुछ भी खिला देना पर ये सिंह नरभक्षी है, तुम अगर अपने इकलौते बेटे को अपने हाथों से मारकर इसे खिला सको तो ही हम तुम्हारा आतिथ्य स्वीकार करेंगे। भगवान की शर्त सुन मोरध्वज के होश उड़ गए, फिर भी राजा अपना आतिथ्य-धर्म नहीं छोडना चाहता था। उसने भगवान से कहा प्रभु ! मुझे मंजूर है पर एक बार में अपनी पत्नी से पूछ लूँ ।
भगवान से आज्ञा पाकर राजा महल में गया तो राजा का उतरा हुआ मुख देख कर पतिव्रता रानी ने राजा से कारण पूछा। राजा ने जब सारा हाल बताया तो रानी के आँखों से अश्रु बह निकले। फिर भी वो अभिमान से राजा से बोली की आपकी आन पर मैं अपने सैंकड़ों पुत्र कुर्बान कर सकती हूँ। आप साधुओ को आदरपूर्वक अंदर ले आइये।
अर्जुन ने भगवान से पूछा- माधव ! ये क्या माजरा है ? आप ने ये क्या मांग लिया ? कृष्ण बोले -अर्जुन तुम देखते जाओ और चुप रहो।
राजा तीनो को अंदर ले आये और भोजन की तैयारी शुरू की। भगवान को छप्पन भोग परोसा गया पर अर्जुन के गले से उत्तर नहीं रहा था। राजा ने स्वयं जाकर पुत्र को तैयार किया। पुत्र भी तीन साल का था नाम था रतन कँवर, वो भी मात पिता का भक्त था, उसने भी हँसते हँसते अपने प्राण दे दिए परंतु उफ़ ना की ।
राजा रानी ने अपने हाथो में आरी लेकर पुत्र के दो टुकड़े किये और सिंह को परोस दिया। भगवान ने भोजन ग्रहण किया पर जब रानी ने पुत्र का आधा शरीर देखा तो वो आंसू रोक न पाई। भगवान इस बात पर गुस्सा हो गए की लड़के का एक फाड़ कैसे बच गया? भगवान रुष्ट होकर जाने लगे तो राजा रानी रुकने की मिन्नतें करने लगे।
अर्जुन को अहसास हो गया था की भगवान मेरे ही गर्व को तोड़ने के लिए ये सब कर रहे है। वो स्वयं भगवान के पैरों में गिरकर विनती करने लगा और कहने लगा की आप ने मेरे झूठे मान को तोड़ दिया है। राजा रानी के बेटे को उनके ही हाथो से मरवा दिया और अब रूठ के जा रहे हो, ये उचित नही है। प्रभु ! मुझे माफ़ करो और भक्त का कल्याण करो।
तब केशव ने अर्जुन का घमंड टूटा जान रानी से कहा की वो अपने पुत्र को आवाज दे। रानी ने सोचा पुत्र तो मर चुका है, अब इसका क्या मतलब !! पर साधुओं की आज्ञा मानकर उसने पुत्र रतन कंवर को आवाज लगाई।
कुछ ही क्षणों में चमत्कार हो गया । मृत रतन कंवर जिसका शरीर शेर ने खा लिया था, वो हँसते हुए आकर अपनी माँ से लिपट गया। भगवान ने मोरध्वज और रानी को अपने विराट स्वरुप का दर्शन कराया। पूरे दरबार में वासुदेव कृष्ण की जय जय कार गूंजने लगी।
भगवान के दर्शन पाकर अपनी भक्ति सार्थक जान मोरध्वज की ऑंखें भर आई और वो बुरी तरह बिलखने लगे। भगवान ने वरदान मांगने को कहा तो राजा रानी ने कहा !
भगवान एक ही वर दो की अपने भक्त की ऐसी कठोर परीक्षा न ले, जैसी आप ने हमारी ली है।
तथास्तु कहकर भगवान ने उसको आशीर्वाद दिया और पूरे परिवार को मोक्ष दिया।
जहां भूख से दुबले हो जाते हैं श्रीकृष्ण*/ कृष्ण मेहता
*ऐसा मंदिर जहां भूख से दुबले हो जाते हैं श्रीकृष्ण*
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यह विश्व का ऐसा अनोखा मंदिर है जो 24 घंटे में मात्र दो मिनट के लिए बंद होता है। यहां तक कि ग्रहण काल में भी मंदिर बंद नहीं किया जाता है। कारण यह कि यहां विराजमान भगवान कृष्ण को हमेशा तीव्र भूख लगती है। भोग नहीं लगाया जाए तो उनका शरीर सूख जाता है। अतः उन्हें हमेशा भोग लगाया जाता है, ताकि उन्हें निरंतर भोजन मिलता रहे। साथ ही यहां आने वाले हर भक्त को भी प्रसादम् (प्रसाद) दिया जाता है। बिना प्रसाद लिये भक्त को यहां से जाने की अनुमति नहीं है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इसका प्रसाद जीभ पर रख लेता है, उसे जीवन भर भूखा नहीं रहना पड़ता है। श्रीकृष्ण हमेशा उसकी देखरेख करते हैं।
डेढ़ हजार वर्ष पुराना मंदिर
केरल के कोट्टायम जिले के तिरुवरप्पु में स्थित यह मंदिर लगभग डेढ़ हजार साल पुराना है। लोक मान्यता के अनुसार कंस वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण बुरी तरह से थक गए थे। भूख भी बहुत अधिक लगी हुई थी। उनका वही विग्रह इस मंदिर में है। इसलिए मंदिर सालों भर हर दिन मात्र खुला रहता है। मंदिर बंद करने का समय दिन में 11.58 बजे है। उसे दो मिनट बाद ही ठीक 12 बजे खोल दिया जाता है। पुजारी को मंदिर के ताले की चाबी के साथ कुल्हाड़ी भी दी गई है। उसे निर्देश है कि ताला खुलने में विलंब हो तो उसे कुल्हाड़ी से तोड़ दिया जाए। ताकि भगवान को भोग लगने में तनिक भी विलंब न हो। चूंकि यहां मौजूद भगवान के विग्रह को भूख बर्दाश्त नहीं है, इसलिए उनके भोग की विशेष व्यवस्था की गई है। उनको 10 बार नैवेद्यम (प्रसाद) अर्पित किया जाता है।
मंदिर खोलने की व्यवस्था आदि शंकराचार्य की
ऐसा मंदिर जहां श्रीकृष्ण से भूख बर्दाश्त नहीं होता है। पहले यह आम मंदिरों की तरह बंद होता था। विशेष रूप से ग्रहण काल में इसे बंद रखा जाता था। तब ग्रहण खत्म होते-होते भूख से उनका विग्रह रूप पूरी तरह सूख जाता था। कमर की पट्टी नीचे खिसक जाती थी। एक बार उसी दौरान आदि शंकराचार्य मंदिर आए। उन्होंने भी यह स्थिति देखी। तब उन्होंने व्यवस्था दी कि ग्रहण काल में भी मंदिर को बंद नहीं किया जाए। तब से मंदिर बंद करने की परंपरा समाप्त हो गई। भूख और भगवान के विग्रह के संबंध को हर दिन अभिषेकम के दौरान देखा जा सकता है। अभिषेकम में थोड़ा समय लगता है। उस दौरान उन्हें नैवेद्य नहीं चढ़ाया जा सकता है। अतः नित्य उस समय विग्रह का पहले सिर और फिर पूरा शरीर सूख जाता है। यह दृश्य अद्भुत और अकल्पनीय सा प्रतीत होता है लेकिन है पूर्णतः सत्य।
प्रसादम् लेने वालों के भोजन की चिंता भी श्रीकृष्ण करते हैं
इस मंदिर के साथ एक और मान्यता जुड़ी हुई है कि जो भक्त यहां पर प्रसादम चख लेता है, फिर जीवन भर श्रीकृष्ण उसके भोजन की चिंता करते हैं। यही नहीं उसकी अन्य आवश्यकताओं का भी ध्यान रखते हैं। प्राचीन शैली के इस मंदिर के बंद होने से ठीक पहले 11.57 बजे प्रसादम् के लिए पुजारी जोर से आवाज लगाते हैं। इसका कारण मात्र यही है कि यहां आने वाला कोई भक्त प्रसाद से वंचित न हो जाए। यह अत्यंत रोचक है कि भूख से विह्वल भगवान अपने भक्तों के भोजन की जीवन भर चिंता करते हैं। उनके अपनी भूख की यह हालत है कि उसे देखते हुए मंदिर को नित्य दो मिनट बंद रखा जाता है। इसका कारण भगवान को सोने का समय देना है। अर्थात इस मंदिर में वे मात्र दो मिनट सोते हैं।
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Wednesday, September 29, 2021
नैनो का जादू / स्वामी प्यारी कौड़ा
तेरे नैनो की छुअन का नशा यों छा गया।
विस्मृत कर मुझे जग से न्यारा बना गया।
उन नैनो में था प्यार, ममत्व और दया का सागर।
पाकर उसकी एक झलक जीवन मेरा संवर गया।
संसार के झमेलों से उलझ कर थक चुकी थी मैं।
पल भर का दीदार तेरा सबसे सहज छुड़ा गया ।
ना सुबह की फिक्र है, ना रात ही की चिंता।
तेरा दीदार पल भर में अपना बना गया।
काल माया ने घेरा था हर पल कसकर मुझे।
तेरे नैनो का जादू मुझे उनसे बचा गया।
डॉक्टर स्वामी प्यारी कौड़ा
4/64 विद्युत नगर,
दयालबाग, आगरा
29-9-2021
सतसंग पाठ ME / 290921
राधास्वामी / 29-09-2021-
आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:- सुन सुन महिमा गुरु प्यारे की हुई
मैं दरस दिवानी रे ॥१॥
धाय धाय चरनन में धाई ।
परघट रूप दिखानी रे ॥२॥
मोहित हुई अचरज छवि निरखत।
तन मन सुद्ध भुलानी रे ॥३॥
बार बार बल जाउँ चरन पर ।
कस गुन गाउँ बखानी रे ॥४॥
राधास्वामी जान जान के जानाँ ।
उन चरनन लिपटानी रे ॥५॥
(प्रेमबानी-3-शब्द-4-पृ.सं.178)**
**राधास्वामी! / 29-09-2021-
आज शाम सतसंग में पढे जाने वाला दूसरा पाठ:-
आरत गावे सेवक प्यारा ।
सतगुरु चरनन प्रीति सम्हारा ॥१॥
प्रीति सहित नित दरशन करता ।
बंदगी कर परशादी लेता ॥२॥
उमँग उमँग गुरु सेवा धावत । राधास्वामी २ छिन २ गावत ॥ ३॥
गुरु आज्ञा हित चित से माने ।
गुरु सम दूसर और न जाने ॥४॥
राधास्वामी चरनन प्रीति बढ़ाता । आरत कर राधास्वामी रिझाता ॥५॥
निस दिन खेलत सतगुरु पासा ।
बिन गुरुचरन और नहिं आसा ॥६॥
दया मेहर गुरु कीनी भारी ।
मैं भी उन चरनन बलिहारी ॥७।। °°°°
°कल से आगे°°°°°
प्रेम आनंद बिलास नवीना ।
निस दिन देखू रहूँ अधीना ॥ ८॥
गुरु परताप रहा घट छाई ।
छिन छिन चरन कँवल लौ लाई ॥ ९॥
नाम सुधा रस निस दिन पीना ।
घंटा संख बजे धुन बीना ॥१०॥
गरज गरज मिरदंग सुनाई ।
सारँग मुरली बजे सुहाई ॥११॥
अलख अगम की धुन सुन पाई । राधास्वामी चरन धियाई ॥१२॥
भाग जगे सतगुरु सँग पाया ।
सहज सरूप अनूप दिखाया ॥१३॥
दया मेहर कुछ बरनी न जाई ।
चरन सरन मैं निज कर पाई ॥१४॥ महिमा राधास्वामी कहाँ लग भाखूँ । धनधन धनधन राधास्वामी आखूँ ।
१५॥(प्रेमबानी-1-शब्द-27-पृ.सं.172,173,174)**
सभी महिलाओ के लिए
, मैं हूँ । मैं ही रहूँगी।
मैं, मैं हूँ । मैं ही रहूँगी।
मै , *राधा*नहीं बनूंगी,
मेरी प्रेम कहानी में,
किसी और का पति हो,
रुक्मिनी की आँख की
किरकिरी मैं क्यों बनूंगी
मैं राधा नहीं बनूँगी।
मै *सीता* नहीं बनूँगी,
मै अपनी पवित्रता का,
प्रमाणपत्र नहीं दूँगी
आग पे नहीं चलूंगी
वो क्या मुझे छोड़ देगा
मै ही उसे छोड़ दूँगी,
मै सीता नहीं बनूँगी
ना मैं *मीरा* ही बनूंगी,
किसी मूरत के मोह मे,
घर संसार त्याग कर,
साधुओं के संग फिरूं
एक तारा हाथ लेकर,
छोड़ ज़िम्मेदारियाँ
मैं नहीं मीरा बनूंगी।
*यशोधरा* मैं नहीं बनूंगी
छोड़कर जो चला गया
कर्तव्य सारे त्यागकर
ख़ुद भगवान बन गया,
ज्ञान कितना ही पा गया,
ऐसे पति के लिये
मै पतिव्रता नहीं बनूंगी
यशोधरा मैं नहीं बनूंगी।
*उर्मिला* भी नहीं बनूँगी
पत्नी के साथ का
जिसे न अहसास हो
पत्नी की पीड़ा का ज़रा भी
जिसे ना आभास हो
छोड़ वर्षों के लिये
भाई संग जो हो लिया
मैं उसे नहीं वरूंगी
उर्मिला मैं नहीं बनूँगी।
मैं *गाँधारी* नहीं बनूंगी
नेत्रहीन पति की आँखे बनूंगी
अपनी आँखे मूंदलू
अंधेरों को चूमलू
ऐसा अर्थहीन त्याग
मै नहीं करूंगी
मेरी आँखो से वो देखे
ऐसे प्रयत्न करती रहूँगी
मैं गाँधारी नहीं बनूँगी।
*मै उसीके संग जियूंगी, जिसको मन से वरूँगी,*
पर उसकी ज़्यादती
मैं नहीं कभी संहूंगी
*कर्तव्य सब निभाऊँगी लेकिन, बलिदान के नाम पर मैं यातना नहीं सहूँगी*
*मैं मैं हूँ, *और मैं ही रहुँगी*
👉सभी महिला साथियों को समर्पित💐
Tuesday, September 28, 2021
परम पुरुष हुज़ूर डॉ सत्संगी साहब के बचन
*परम पूज्य हुज़ूर प्रो. प्रेम सरन सतसंगी साहब द्वारा*
*सेन्ट्रल सतसंग हॉल, दयालबाग़, आगरा में*
*प्रीतिभोज के दौरान फ़रमाया गया अमृत बचन*
( *31 अगस्त, 2021 को शाम 7.30 बजे राजाबरारी से वापस आने के तत्काल बाद* )
राधास्वामी,
मेरे जूते पूर्णतः सुरक्षित हैं। फिर भी सतसंग शिष्टाचार के अनुपालन में, मैं जूते उतारने के पश्चात् ही सेंट्रल सतसंग हॉल में प्रवेश करता हूँ। *राजाबरारी एस्टेट में, इसका अपवाद रहा क्योंकि मैं इस प्रकार की किसी विशेष कुर्सी पर नहीं बैठा था बल्कि साधारण कुर्सी पर विराजमान हुआ जिससे कि मैं एडवाइज़री कमेटी ऑन एजुकेशन (ACE) जो कि एक ग़ैर वैधानिक संस्था है, उसके चेयरमैन के रूप में, समस्या एवं इसका आँकलन समझ सकूँ।* दयालबाग़ में एग्रीकल्चर फ़ील्ड्स में कार्य करते हुए तथा पूरे भारत में और यह ही नहीं विदेश में भी ‘धर्मार्थ एवं परोपकारी कार्यों’ (Religious and Charitable actions) के संबंध में, चाहे व्यक्तिगत उपस्थिति अथवा वर्चुअल रियेल्टी मोड में हो, मैं पूरी तरह से सुरक्षित महसूस करता हूँ। राधास्वामी सेन्ट्रल सतंसग दयालबाग़ में 106 वर्षों से जूते उतार कर आने की परम्परा रही है जिसका मैंने अनुपालन किया। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि अभी हम राधास्वामी संवत 204 में हैं, 5 फ़रवरी 2022 को बसंत पंचमी के दिन दयालबाग़ 107 वर्ष पूरे करेगा और दयालबाग़ सतसंग सभा तथा दयालबाग़ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट दोनों संस्थाओं की स्थापना को चिह्नांकित करेगा (प्रारम्भिक अवस्था में डी.ई.आई. प्राइमरी स्कूल के रूप में प्रारम्भ हुआ था): पावन कुआँ जैसा कि हम सभी जानते हैं- यह हमारे विनम्र उद्भव का प्रतीक है और परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज के अवतरण से जुड़ा है जो जीवों के स्थाई परमानन्द के स्त्रोत का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके सभी उत्ताराधिकारी ‘‘वक़्त संत सतगुरु’’ के रूप में उनके निजधाम के नीचे के क्षेत्रों से क्रमानुसार आए जैसे अगमलोक, अलखलोक, अनामीलोक। मैक्रोकॉस्म (Macrocosm) में science of consciousness, परम सत्य के स्तर तक आधुनिक वैज्ञानिक पहुँच सकते हैं जो कि अनामीलोक की परिधि में आते हैं और अनामी पुरुष इसको नियंत्रित करते हैं, ऐसा आप कह सकते हैं। राजाबरारी की घटनाओं का संक्षिप्त विवरण देते हुए यह बताना चाहता हूँ कि 14 नवम्बर, 1919 को परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज ने राजाबरारी एस्टेट को ख़रीदा था और वर्ष 1924 में मौखिक रूप से इसे राधास्वामी सतसंग सभा को भेंट कर दिया तथा 28 जुलाई,1927 को उपहार विलेख (Gift Deed) के माध्यम से राधास्वामी सतसंग सभा को इस आशय से उपहार स्वरूप दिया कि राजाबरारी में इसका मुख्यालय आदिवासियों के कल्याण हेतु स्थापित हो। और इस मुख्यालय की स्थापना उन्होंने स्वयं की और इस पावन दिवस पर अपने उच्च शिक्षा प्राप्त व दक्ष शिष्य की मदद से नींव डाली जो आगे चलकर नामांकन (Nomination) द्वारा परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज के रूप में उनके उत्तराधिकारी बने जिन्होंने राधास्वामी सतसंग सभा द्वारा जयघोष प्रक्रिया (Acclamation Process) में भी इसका आह्वान कर नामांकन का अनुमोदन प्राप्त किया। यह परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज व परम गुरु के रूप में उनके वर्तमान समय तक के उत्तराधिकारियों का बहुत ही बुद्धिमानी पूर्ण निर्णय (wise decision) रहा है। परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज समस्त सृष्टि (Macrocosm) के परम-पिता-प्रभु का प्रत्यक्ष अवतार हैं, जो स्थाई परमानन्द के स्त्रोत हैं। तो यह 'Participative decision-making' (अर्थात् सहभागिता के साथ निर्णय) लेने का महत्वपूर्ण अवसर था।
विनाशकारी आन्दोलन (distructive agitation) की शुरुआत ऐसे व्यक्ति द्वारा की गई जो देवास का रहने वाला है और उसका राजाबरारी एस्टेट से, जिसमें स्थानीय भाषा के 10 ढाना या छोटे गाँव हैं, से कोई संबंध नहीं है। वह आदिवासियों के दूसरे क्षेत्र में रहता है, तो उससे हमारा कोई लेना देना नहीं है। वह हमारे लिए बाहरी व्यक्ति है। किन्तु स्थानीय पुलिस की मिलीभगत से जो Builders Lobby (भवन निर्माताओं के विनाशकारी समर्थकों के वर्ग) से प्रभावित है जो इन्हें बहुमंज़िलीय इमारतों, हाइवे/एक्सप्रेसवे निर्माण के लिए विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देते हैं, जिसकी कोई आवश्यकता नहीं है, और यह निश्चय ही लक्षित लाभार्थियों (आदिवासी समुदाय) के हित व शांति को बनाए रखने और साथ में इनके प्रायोजक MPRSA (मध्य प्रदेश राधास्वामी सतसंग एसोसिएशन) को उनकी धार्मिक व धर्मार्थ दोनों प्रकार की अहं ज़िम्मेदारियों के दूषण-रहित निर्वहन में बाधक होगी। जैसा कि आप जानते हैं हम यहाँ पर सादा जीवन निर्वाह करते हैं, चाहे हम दयालबाग़ में काम करें या इससे जुड़ी राधास्वामी सतसंग सभा की ब्रांचों में बाहर काम करें या फिर अन्य ऐसे एसोसिएशंस में जो राधास्वामी सतसंग सभा के आदर्शों का अनुसरण करते हैं, जो हमारे क्षेत्र में नहीं आते हैं, जैसे कि कॉलनीज़-राधा नगर, दयालनगर, आगरा सिटी, हमारी ब्रांचेज़ एवं सेंटर्स; परन्तु वे समान पैटर्न पर कार्यरत हैं। वहाँ पर परस्पर एक चर्चा हुई थी जिसमें मैंने भाग नहीं लिया था किन्तु वहाँ के पदाधिकारी उपस्थित थे जिनमें जस्टिस गुलाब सिंह सोलंकी व वरिष्ठ पदाधिकारी श्रीमती माला श्रीवास्तव तथा एक अन्य युवक श्री गौरव श्रीवास्तव सम्मिलित हैं; जिन्होंने बहुत ही सक्रिय योगदान दिया है। हमें इस प्रक्रिया में श्री गुलाब सिंह सोलंकी व श्रीमती माला श्रीवास्तव के अतिरिक्त वह सहायता प्रदान करते हैं। उनके माता-पिता बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (BHU-IIT) में हमारे पड़ोसी थे। वर्तमान में मैं 3/23 में रहता हूँ, जबकि अपनी युवा अवस्था में वह (प्रे.ब. माला श्रीवास्तव) हमारे घर के (diagonally opposite) विपरीत तिरछी दिशा के घर में रहती थीं। मैं उनके परिवार को बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में अपने जन्म से जानता हूँ, जहाँ बनारस के ब्रांच सेक्रेटरी बहुत विख्यात एडवोकेट प्रे.भा. शंकर सरन लाल जी थे। उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जज के पद के लिए प्रस्ताव दिया था जिसे उन्होंने मना कर दिया था। उन्होंने अपनी साधारण फ़ीस के द्वारा भी अधिक फलता-फूलता (सम्पन्न) व्यवसाय किया और काफ़ी प्रसिद्धि प्राप्त की तथा हाई कोर्ट के जज की अपेक्षा कहीं ज़्यादा कमाया। उनके brother in law प्रे.भा. एस.सी.श्रीवास्तव हाई कोर्ट में प्रसिद्धि प्राप्त सीनियर एडवोकेट के पद पर उन्नत हुए। वह अवैतनिक कानूनी सलाहकार के रूप में निरन्तर हमारी सहायता कर रहे हैं। डायरेक्टर डी.ई.आई. भी हमारे सहायक रहे हैं। तो हमारे साथ सभी आवश्यक (अपेक्षित) वैधानिक अधिकारी थे जिनसे मध्य प्रदेश रीजनल सतसंग एसोसिएशन (MPRSA) के अन्तर्गत गाँवों की उचित मांगों को पूरा किया जा सके।
किन्तु यह संकट ‘बिल्डर्स लॉबी’ के परिणाम स्वरूप उत्पन्न हुआ है। जो कुछ संवेदनशील वरिष्ठ अधिकारियों के बीच बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार बढ़ा कर उनका सहारा लेते हैं जिससे कि वे अनुपयुक्त प्रकरणों में उच्च स्तर पर उनके पक्ष में निर्णय लें। इसके बावजूद, दयालबाग़ की स्थापना से पूर्व भी हमने यह मामला भारत के सुप्रीम कोर्ट में उठाया था जो ब्रिटिश कोलोनियल रूल में लंदन में स्थित Privy Council के नाम से जाना जाता था। इस प्रकार किसी प्रकरण की Legality इस बात पर निर्भर थी कि House of Commons तथा House of Lords of the British Empire ने उसे किस प्रकार निस्तारित किया है। फिर भी हम इसके इतिहास से पूर्णतया परिचित हैं; मैं जो आपको बताना चाहता हूँ वह यह है कि इन्होंने राजाबरारी एस्टेट जो हमारी निजी सम्पत्ति है, व हमारे द्वारा शासित (administered) है, उसके तीन निवासियों के विरुद्ध हाल ही में FIR दर्ज की है। वह व्यक्ति जो उन्हें उत्तेजित कर रहा है या स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों की सहायता से हिंसा जैसे घृणित कार्य द्वारा आदिवासी जनता को प्रभावित कर रहा है, (वर्तमान में कलेक्टर को छोड़कर अन्य प्रशासनिक अधिकारी अनुसूचित जाति या जनजाति के हैं)। किन्तु अकेले (व्यक्तिगत रूप से) वह जानता है कि उसके पास बहुत सारी अनधिकृत शक्ति (Unauthorised Power) है। यद्यपि कलेक्टर ने श्रीमती माला श्रीवास्तव के अधीन कार्य किया है, और उन्हें यह विश्वास दिलाया था कि उनकी तरफ़ से न्यायसंगत पूर्ण निर्णय लिया जाएगा, किन्तु वह अपने भ्रष्ट जूनियर्स द्वारा पत्रावली पर भ्रष्ट टिप्पणियाँ लिखने के कारण ऐसा न कर सके। यह भली प्रकार जानते हुए भी कि अनधिकृत ढंग से घुसने वाला यह व्यक्ति हमारे एक कार्यकर्त्ता को मारना चाहता था और इस बुरी नीयत से उसके घर पर उसने हमला भी किया किन्तु परम पिता की मेहर से वह वहाँ से बच निकले और उसने MPRSA द्वारा नियुक्त अन्य कार्यकर्त्ता का घर इसलिए जला दिया कि उसने राजाबरारी में आदिवासियों की कल्याण योजना को लागू किया था। उसके माता पिता अपनी जान बचाने हेतु कहीं छिप गए। अब उनका पता चल गया है। हम यह बताना नहीं चाहते कि वे अब कहाँ हैं। हमने यह मामला मध्यप्रदेश में जबलपुर हाई कोर्ट न्यायाधिकरण तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में जो इससे पूर्णतया परिचित हैं: यह मुद्दा हमारे दयालबाग़ मुख्यालय में स्फ़ीहा के अध्यक्ष के माध्यम से उठाया गया था, कुछ वर्ष पूर्व, जब उन्होंने हमारी बस को जला दिया था और हमारी ज़मीन का कुछ भाग हथिया कर उसे शहर की तरह बनाने का प्रयत्न किया था, जो कि बाहरी तौर पर आराम व विलासिता (comfort व luxury) को बढ़ावा देने का था; किन्तु वास्तव में यह वहाँ का स्वच्छ वातावरण; कृषि व सिंचाई के कार्यों को सुरक्षित ढंग से करने के लिए, यहाँ तक कि कोरोना -19 महामारी संकट व उसके विभिन्न चरणों, वर्तमान में तीसरे चरण/लहर की स्थिति में भी कार्य करने के अनुकूल था, के पतन के समान था; किन्तु हमारा ही एक ऐसा संगठन है जहाँ इस दौरान सभी गतिविधियाँ पूरी तरह क्रियान्वित रहीं जिसमें यह पूरा भरोसा था कि कोई भी इस प्राकृतिक आपदा का शिकार न हो अथवा किसी की भी जान न जाए। बड़ी उम्र में निरन्तर शरीर का अधःपतन (degeneration) होने के कारण, सामान्यतया 70-75 वर्ष से अधिक आयु के लोग जिन्होंने पूरी ज़िन्दगी जी ली है और कर्मों का भार चुका दिया है, इसके उपरान्त काल व माया के देश से बाहर जाने में सफल हुए। ऐसा कोई नहीं था जो उपयुक्त मेडिकल उपचार न मिलने के कारण इस प्राकृतिक आपदा का शिकार हुआ हो। हमारे AIIMS (All India Institute of Medical Science) के साथ बहुत अच्छे सम्बंध हैं जहाँ मैं उच्च स्तर के आधिकारियों को प्रत्यक्ष रूप से नहीं जानता था किन्तु IIT, Delhi के मेरे सहयोगियों का AIIMS के अपने समकक्ष के अधिकारियों के साथ घनिष्ठ सम्बंध था। उदाहरण के लिए एक प्रो. गुहा, जो Bio-Medical Engineering के क्षेत्र के थे जिनके पिता व्यवसाय से प्रसिद्ध सर्जन थे। तो वह भी USAID Technical Co-operation Mission के अन्तर्गत Authorised Modern Medicine and Surgery विशेषज्ञ के रूप में Bio-Medical Engineering की Practice करना चाहते थे।
मुझे भी अवसर दिया गया था कि Ph.D करने के लिए इस स्कॉलरशिप (छात्रवृत्ति) को निरन्तर बनाए रखूँ; क्योंकि मुझे M.S. Degree में उनकी तरफ़ से उच्चतम Grade point average 4.00 में से 4.00 मिले थे। फिर भी जब उन्होंने यह प्रस्ताव रखा तो मैंने उन्हें बताया कि मैं Carnegie Melon University जाना ज़्यादा पसंद करूँगा जहाँ रुड़की यूनीवर्सिटी के एक विशेषज्ञ ने उन्हें Electrical Mechanies/Power Systems में प्रशिक्षित किया था, जिससे कि वह भारतीय रेलवे सेवा की परीक्षा, जो इंजीनियर्स के लिए UPSC (Union Public Service Commission) द्वारा आयोजित की जाती है और इंजीनियर्स की नियुक्ति के लिए प्रतिष्ठित पद जाना जाता है, में प्रतिभागी होने के योग्य बनें।
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी उत्तरी भारत में इलेक्ट्रिकल तथा मैकेनिकल इंजीनियरिंग (Heavy Engineering, जैसा कि Power System, Large Electrical Machines, New & Renewable Energy Resources) तथा अन्य संबद्ध क्षेत्र में एक अग्रणीय संस्थान था। उस समय हम मानते थे कि Semi Conducter (अर्द्ध चालक), व संबद्ध क्षेत्र जैसे भौतिक विभाग, रसासन विज्ञान, तथा जीवविज्ञान आदि के क्षेत्र में आते हैं और इंजीनियरिंग विभाग से नीचे स्तर के हैं किन्तु IIT में यह अभियांत्रिकी विभाग के समान ऊँचे स्तर के ही माने जाते थे। चूँकि यह यांत्रिक नियुक्ति के आधुनिक नये उभरते क्षेत्र थे अतः आगे चलकर BHU को भी BHU-IIT का स्तर प्राप्त हुआ।
*(क्रमशः)*-1
व्यापार औऱ दया
अनमोल सीख / व्यापार में दया नहीं औऱ दया me व्यापार नहीं
प्रस्तुति - राजेंद्र प्रसाद सिन्हा / उषा रानी सिन्हा
जब मैं छोटा था, तो मेरी मां एक प्रौढ़ सब्ज़ीवाली से हमेशा घर के लिए सब्जियां लिया करती थीं, जो लगभग रोज ही हमारे घर एक बड़े टोकरे में ढेर सारी सब्जियां लेकर आया करती थी,इस रविवार को वह पालक के बंडल भी लेकर आयी, और दरवाज़े पर बैठ गई।
मां ने पालक के दो चार बंडल हाथ में लेकर सब्ज़ीवाली से पूछा:-पालक कैसे दी?"
"सस्ता है दीदी, एक रुपया बंडल।" सब्ज़ीवाली ने कहा:
माँ ने कहा "ठीक है, दो रुपये में चार बंडल दे दे।"
इसके बाद कुछ देर तक दोनों अपने-अपने ऑफर पर झिकझिक खिटपिट करते रहे।
सब्ज़ीवाली कुछ नाराज़गी जताते हुए बोली-इतनी तो मेरी खरीदी भी नहीं है, दीदी, फिर उसने एक झटके के साथ अपना टोकरा उठाया और उठ कर जाने लगी।
लेकिन चार कदम आगे बढ़ने के साथ ही पीछे मुड़ी और चिल्लायी
चलो चार बंडल के 3 रु दे देना दीदी, आप से ज़्यादा क्या कमाऊंगी ,मेरी माँ ने अपना सिर "नहीं" में हिलाया।
2 रु में 4 बंडल मैं बिल्कुल ठीक बोल रही हूं, क्योंकि तू हमेशा की पुरानी सब्जीवाली है। चल अब दे भी दे,परंतु सब्जीवाली रुकी नहीं आगे बढ़ गई।
*शायद वे दोनों एक-दूसरे की रणनीतियों को भली-भांति जानते थे। और यह खरीदने और बेचने वालों के बीच रोज ही होता होगा*
8-10 कदम जाकर सब्ज़ीवाली मुड़ी और हमारे दरवाजे पर वापस आ गई,माँ दरवाजे पर ही इंतज़ार कर रही थी
सब्ज़ीवाली अपना टोकरा सामने रख कर कुछ ऐसे बैठ गयी, जैसे कि वह किसी सम्मोहन की समाधि में हो।
मेरी माँ ने अपने दाहिने हाथ से प्रत्येक बंडल को टोकरे से निकाल-निकाल कर कर दूसरे हाथ की खुली हथेली पर हल्के से मारा।
और इस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी के सीखे हुए मात्रात्मक, गुणात्मक और आलोचनात्मक मानदंडों से प्रत्येक बंडल की जाँच करके अपनी संतुष्टि से चार बंडलों का चयन किया।
सब्जी वाली ने पालक के बाकी बंडलों को फिर से अपने टोकरे में सजाया और भुगतान लेकर अपने बटुए में डाल लिए
सब्जीवाली ने बैठे ही बैठे टोकरा अपने सर पर रखा और उठने लगी, लेकिन टोकरा सिर पर रखकर जैसे ही वह उठने लगी, वह उठ न सकी और धप से नीचे बैठ गई।
मेरी माँ ने उसका हाथ थाम लिया और पूछा
क्या हुआ? चक्कर आ गया क्या? क्या सुबह कुछ नहीं खाया था?"
सब्जी-वाली ने कहा, "नहीं दीदी। चावल कल खत्म हो गया था। आज की कमाई से ही मुझे कुछ चावल खरीदना है, घर जाकर पकाना है। उसके बाद ही हम सब खाना खाएंगे।
मेरी माँ ने उसे बैठने के लिए कहा। फिर फुर्ती से अंदर चली गई,चपाती व सब्ज़ी के साथ तेजी से वापस आई,और सब्ज़ीवाली को दी।
एक गिलास में पानी उसके सामने रखा। और सब्जीवाली से कहा "धीरे-धीरे खाना, मैं तेरे लिए चाय बना रही हूं।
सब्जी वाली भूखी थी। उसने कृतज्ञतापूर्वक रोटी खायी, पानी पिया और चाय समाप्त की।
मेरी माँ को बार-बार दुआएं देने लगी। मां ने टोकरा उनके सिर पर रखने में उसकी सहायता की। फिर वह सब्ज़ीवाली चली गई।
मैं हैरान था,मैंने माँ से कहा:
मां, आप ने दो रुपये की पालक की भाजी के लिए मोलभाव करने में इतनी कठोरता दिखाई, लेकिन उस सब्जीवाली को इतने अधिक मूल्य का भोजन देने में कई गुना अधिक उदार बन गयीं। यह मेरे समझ में नहीं आया!
मेरी माँ मुस्कुराई और बोली:
बेटा ध्यान रखना
''व्यापार में कोई दया नहीं होती''
और
''दया में कोई व्यापार नही होता।"🙏🙏🙏🙏
लाज हमारी तुमको प्रभु......
प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा
राम ही राम " लाडलो "राम नाम अति मीठा है जो कोई गाके सो देख ले
एक बार एक राजा ने गाव में रामकथा करवाई और कहा की सभी ब्राह्मणो को रामकथा के लिए आमत्रित किया जय , राजा ने सबको रामकथा पढने के लिए यथा स्थान बिठा दिया।
एक ब्राह्मण अंगुटा छाप था उसको पठना लिखना कुछ आता नही था , वो ब्राह्मण सबसे पीछे बैठ गया , और सोचा की जब पास वाला पन्ना पलटेगा तब मैं भी पलट दूंगा।
काफी देर देखा की पास बैठा व्यक्ति पन्ना नही पलट रहा है, उतने में राजा श्रदा पूरवक सबको नमन करते चक्कर लगाते लगाते उस सज्जन के समीप आने लगे, तो उस ने एक ही रट लगा दी की "अब राजा पूछेगा तो क्या कहूँगा "
"अब राजा पूछेगा तो क्या कहूँगा "
उस सज्जन की ये बात सुनकर पास में बैठा व्यक्ति भी रट लगाने लग गया ,
की "तेरी गति सो मेरी गति
तेरी गति सो मेरी गति ,"
उतने में तीसरा व्यक्ति बोला ,
" ये पोल कब तक चलेगी !
ये पोल कब तक चलेगी !
चोथा बोला
जबतक चलता है चलने दे ,
जबतक चलता है चलने दे ,
वे चारो अपने सिर निचे किये इस तरह की रट लगाये बैठे है
की,
1 "अब राजा पूछेगा तो क्या कहूँगा..
2 "तेरी गति सो मेरी गति..
3 "ये पोल कब तक चलेगी..
4 "जबतक चलता है चलने दे..
जब राजा ने उन चारो के स्वर सुने , राजा ने पूछा की ये सब क्या गा रहे है, ऐसे प्रसंग तो रामायण में हम ने पहले कभी नही सुना ,
उतने में , एक महात्मा उठे और बोले महाराज ये सब रामायण का ही प्रसंग बता रहे है ,
पहला व्यक्ति है ये बहुत विद्वान है ये , बात सुमन ने ( अयोध्याकाण्ड ) में कही , राम लक्ष्मण सीता जी को वन में छोड़ , घर लोटते है तब ये बात सुमन कहता है की
"अब राजा पूछेंगे तो क्या कहूँगा ?
अब राजा पूछेंगे तो क्या कहूँगा ?
फिर पूछा की ये दूसरा कहता है की तेरी गति सो मेरी गति , महात्मा बोले महाराज ये तो इनसे भी ज्यादा विद्द्वान है ,( किष्किन्धाकाण्ड ) में जब हनुमान जी, राम लक्ष्मण जी को अपने दोनों कंधे पर बिठा कर सुग्रीव के पास गए तब ये बात राम जी ने कही थी की , सुग्रीव ! तेरी गति सो मेरी गति , तेरी पत्नीको बाली ने रख लिया और मेरी पत्नी का रावण ने हरण कर लिया..
राजा ने आदरसे फिर पूछा , की महात्मा जी ! ये तीसरा बोल रहा है की ये पोल कब तक चलेगी , ये बात कभी किसी संत ने नही कही ? , बोले महाराज ये तो और भी ज्ञानी है ,( लंकाकाण्ड ) में अंगद जी ने रावण की भरी सभा में अपना पैर जमाया , तब ये प्रसंग मेधनाथ ने अपने पिता रावन से किया की, पिता श्री ! ये पोल कब तक चलेगी , पहले एक वानर आया और वो हमारी लंका जला कर चला गया , और अब ये कहता है की मेरे पैर को कोई यहाँ से हटा दे तो भगवान श्री राम बिना युद्द किये वापिस लौट जायेंगे।
फिर राजा बोले की ये चोथा बोल रहा है ? वो बोले महाराज ये इतना बड़ा विद्वान है की कोई इनकी बराबरी कर ही नही सकता ,ये मंदोदरी की बात कर रहे है , मंदोदरी ने कई बार रावण से कहा की , स्वामी ! आप जिद्द छोड़, सीता जी को आदर सहित राम जी को सोप दीजिये अन्यथा अनर्थ हो जायगा ,
तब ये बात रावण ने मंदोदरी से कही
की ( जबतक चलता है चलने दे )
मेरे तो दोनों हाथ में लड्डू है ,अगर में राम के हाथो मारा गया तो मेरी मुक्ति हो जाएगी , इस अदम शरीर से भजन -वजन तो कुछ होता नही , और में युद्द जित गया तो त्रिलोकी में भी मेरी जय जय कार हो जाएगी
राजा इन सब बातोसे चकित रह गए बोले की आज हमे ऐसा अध्बुत प्रसंग सूनने को मिला की आज तक हमने नही सुना , राजा इतने प्रसन्न हुए की उस महात्मा से बोले की आप कहे वो दान देने को राजी हु ,
उस महात्मा ने उन अनपढ़ अंगुटा छाप ब्रहमिन भक्तो को अनेको दान दक्षणा दिल वा दि ,
इन सब बातो का एक ही सार है की कोई अज्ञानी , कोई नास्तिक , कोई कैसा भी क्यों न हो , रामायण , भागवत ,जैसे महान ग्रंथो को श्रदा पूरवक छूने मात्र से ही सब संकटो से मुक्त हो जाते है ,
और भगवान का सच्चा प्रेमी हो जाये उन की तो बात ही क्या है , मत पूछिये की वे कितने धनि हो जाते ।।🙏हरिओम 🙏
जैसी रब की मर्जी
प्रस्तुति - राजेंद्र प्रसाद सिन्हा / उषा रानी सिन्हा
कन्धे पर कपड़े का थान लादे और हाट-बाजार जाने की तैयारी करते हुए भक्त कबीर जी को माता लोई जी ने सम्बोधन करते हुए कहा- भगत जी! आज घर में खाने को कुछ भी नहीं है।
आटा, नमक, दाल, चावल, गुड़ और शक्कर सब खत्म हो गए हैं।
शाम को बाजार से आते हुए घर के लिए राशन का सामान लेते आइएगा।
भक्त कबीर जी ने उत्तर दिया- देखता हूँ लोई जी।
अगर कोई अच्छा मूल्य मिला,
तो निश्चय ही घर में आज धन-धान्य आ जायेगा।
माता लोई जी- सांई जी! अगर अच्छी कीमत ना भी मिले,
तब भी इस बुने हुए थान को बेचकर कुछ राशन तो ले आना।
घर के बड़े-बूढ़े तो भूख बर्दाश्त कर लेंगे।
पर कमाल ओर कमाली अभी छोटे हैं,
उनके लिए तो कुछ ले ही आना।
जैसी मेरे राम की इच्छा।
ऐसा कहकर भक्त कबीर जी हाट-बाजार को चले गए।
बाजार में उन्हें किसी ने पुकारा- वाह सांई! कपड़ा तो बड़ा अच्छा बुना है और ठोक भी अच्छी लगाई है।
तेरा परिवार बसता रहे।
ये फकीर ठंड में कांप-कांप कर मर जाएगा।
दया के घर में आ और रब के नाम पर दो चादरे का कपड़ा इस फकीर की झोली में डाल दे।
भक्त कबीर जी- दो चादरे में कितना कपड़ा लगेगा फकीर जी?
फकीर ने जितना कपड़ा मांगा,
इतेफाक से भक्त कबीर जी के थान में कुल कपड़ा उतना ही था।
और भक्त कबीर जी ने पूरा थान उस फकीर को दान कर दिया।
दान करने के बाद जब भक्त कबीर जी घर लौटने लगे तो उनके सामने अपनी माँ नीमा, वृद्ध पिता नीरू, छोटे बच्चे कमाल और कमाली के भूखे चेहरे नजर आने लगे।
फिर लोई जी की कही बात,
कि घर में खाने की सब सामग्री खत्म है।
दाम कम भी मिले तो भी कमाल और कमाली के लिए तो कुछ ले आना।
अब दाम तो क्या,
थान भी दान जा चुका था।
भक्त कबीर जी गंगा तट पर आ गए।
जैसी मेरे राम की इच्छा।
जब सारी सृष्टि की सार खुद करता है,
तो अब मेरे परिवार की सार भी वो ही करेगा।
और फिर भक्त कबीर जी अपने राम की बन्दगी में खो गए।
अब भगवान कहां रुकने वाले थे।
भक्त कबीर जी ने सारे परिवार की जिम्मेवारी अब उनके सुपुर्द जो कर दी थी।
अब भगवान जी ने भक्त कबीर जी की झोंपड़ी का दरवाजा खटखटाया।
माता लोई जी ने पूछा- कौन है?
कबीर का घर यही है ना?
भगवान जी ने पूछा।
माता लोई जी- हांजी! लेकिन आप कौन?
भगवान जी ने कहा- सेवक की क्या पहचान होती है भगतानी?
जैसे कबीर राम का सेवक,
वैसे ही मैं कबीर का सेवक।
ये राशन का सामान रखवा लो।
माता लोई जी ने दरवाजा पूरा खोल दिया।
फिर इतना राशन घर में उतरना शुरू हुआ,
कि घर के जीवों की घर में रहने की जगह ही कम पड़ गई।
इतना सामान! कबीर जी ने भेजा है?
मुझे नहीं लगता।
माता लोई जी ने पूछा।
भगवान जी ने कहा- हाँ भगतानी! आज कबीर का थान सच्ची सरकार ने खरीदा है।
जो कबीर का सामर्थ्य था उसने भुगता दिया।
और अब जो मेरी सरकार का सामर्थ्य है वो चुकता कर रही है।
जगह और बना।
सब कुछ आने वाला है भगत जी के घर में।
शाम ढलने लगी थी और रात का अंधेरा अपने पांव पसारने लगा था।
समान रखवाते-रखवाते लोई जी थक चुकी थीं।
नीरू ओर नीमा घर में अमीरी आते देख खुश थे।
कमाल ओर कमाली कभी बोरे से शक्कर निकाल कर खाते और कभी गुड़।
कभी मेवे देख कर मन ललचाते और झोली भर-भर कर मेवे लेकर बैठ जाते।
उनके बालमन अभी तक तृप्त नहीं हुए थे।
भक्त कबीर जी अभी तक घर नहीं आये थे,
पर सामान आना लगातार जारी था।
आखिर लोई जी ने हाथ जोड़ कर कहा- सेवक जी! अब बाकी का सामान कबीर जी के आने के बाद ही आप ले आना।
हमें उन्हें ढूंढ़ने जाना है क्योंकी वो अभी तक घर नहीं आए हैं।
भगवान जी बोले- वो तो गंगा किनारे भजन-सिमरन कर रहे हैं।
फिर नीरू और नीमा,
लोई जी, कमाल ओर कमाली को लेकर गंगा किनारे आ गए।
उन्होंने कबीर जी को समाधि से उठाया।
सब परिवार वालों को सामने देखकर कबीर जी सोचने लगे,
जरूर ये भूख से बेहाल होकर मुझे ढूंढ़ रहे हैं।
इससे पहले कि भक्त कबीर जी कुछ बोलते,
उनकी माँ नीमा जी बोल पड़ीं- कुछ पैसे बचा लेने थे।
अगर थान अच्छे भाव बिक गया था,
तो सारा सामान तूने आज ही खरीद कर घर भेजना था क्या?
भक्त कबीर जी कुछ पल के लिए विस्मित हुए।
फिर माता-पिता, लोई जी और बच्चों के खिलते चेहरे देखकर उन्हें एहसास हो गया,
कि जरूर मेरे राम ने कोई खेल कर दिया है।
लोई जी ने शिकायत की- अच्छी सरकार को आपने थान बेचा और वो तो समान घर मे फैंकने से रुकता ही नहीं था।
पता नही कितने वर्षों तक का राशन दे गया।
उससे मिन्नत कर के रुकवाया- बस कर! बाकी कबीर जी के आने के बाद उनसे पूछ कर कहीं रखवाएँगे।
भक्त कबीर जी हँसने लगे और बोले- लोई जी! वो सरकार है ही ऐसी।
जब देना शुरू करती है तो सब लेने वाले थक जाते हैं।
उसकी बख्शीश कभी भी खत्म नहीं होती।
उस सच्ची सरकार की तरह, सदा कायम रहती है।
इंसान
*एक पागल भिखारी*
प्रस्तुति - रेणु दता / आशा सिन्हा
जब बुढ़ापे में अकेला ही रहना है तो औलाद क्यों पैदा करें उन्हें क्यों काबिल बनाएं जो हमें बुढ़ापे में दर-दर के ठोकरें खाने के लिए छोड़ दे ।
क्यों दुनिया मरती है औलाद के लिए, जरा सोचिए इस विषय पर।
मराठी भाषा से हिन्दी ट्रांसलेशन की गई ये सच्ची कथा है ।
जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण आपको प्राप्त होगा।समय निकालकर अवश्य पढ़ें।
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हमेशा की तरह मैं आज भी, परिसर के बाहर बैठे भिखारियों की मुफ्त स्वास्थ्य जाँच में व्यस्त था। स्वास्थ्य जाँच और फिर मुफ्त मिलने वाली दवाओं के लिए सभी भीड़ लगाए कतार में खड़े थे।
अनायाश सहज ही मेरा ध्यान गया एक बुजुर्ग की तरफ गया, जो करीब ही एक पत्थर पर बैठे हुए थे। सीधी नाक, घुँघराले बाल, निस्तेज आँखे, जिस्म पर सादे, लेकिन साफ सुथरे कपड़े।
कुछ देर तक उन्हें देखने के बाद मुझे यकीन हो गया कि, वो भिखारी नहीं हैं। उनका दाँया पैर टखने के पास से कटा हुआ था, और करीब ही उनकी बैसाखी रखी थी।
फिर मैंने देखा कि,आते जाते लोग उन्हें भी कुछ दे रहे थे और वे लेकर रख लेते थे। मैंने सोचा ! कि मेरा ही अंदाज गलत था, वो बुजुर्ग भिखारी ही हैं।
उत्सुकतावश मैं उनकी तरफ बढ़ा तो कुछ लोगों ने मझे आवाज लगाई :
"उसके करीब ना जाएँ डॉक्टर साहब,
वो बूढा तो पागल है । "
लेकिन मैं उन आवाजों को नजरअंदाज करता, मैं उनके पास गया। सोचा कि, जैसे दूसरों के सामने वे अपना हाथ फैला रहे थे, वैसे ही मेरे सामने भी हाथ करेंगे, लेकिन मेरा अंदाज फिर चूक गया। उन्होंने मेरे सामने हाथ नहीं फैलाया।
मैं उनसे बोला : "बाबा, आपको भी कोई शारीरिक परेशानी है क्या ? "
मेरे पूछने पर वे अपनी बैसाखी के सहारे धीरे से उठते हुए बोले : "Good afternoon doctor...... I think I may have some eye problem in my right eye .... "
इतनी बढ़िया अंग्रेजी सुन मैं अवाक रह गया। फिर मैंने उनकी आँखें देखीं।
पका हुआ मोतियाबिंद था उनकी ऑखों में ।
मैंने कहा : " मोतियाबिंद है बाबा, ऑपरेशन करना होगा। "
बुजुर्ग बोले : "Oh, cataract ?
I had cataract operation in 2014 for my left eye in Ruby Hospital."
मैंने पूछा : " बाबा, आप यहाँ क्या कर रहे हैं ? "
बुजुर्ग : " मैं तो यहाँ, रोज ही 2 घंटे भीख माँगता हूँ सर" ।
मैं : " ठीक है, लेकिन क्यों बाबा ? मुझे तो लगता है, आप बहुत पढ़े लिखे हैं। "
बुजुर्ग हँसे और हँसते हुए ही बोले : "पढ़े लिखे ?? "
मैंने कहा : "आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं, बाबा। "
बाबा : " Oh no doc... Why would I ?... Sorry if I hurt you ! "
मैं : " हर्ट की बात नहीं है बाबा, लेकिन मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है। "
बुजुर्ग : " समझकर भी, क्या करोगे डॉक्टर ? "
अच्छा "ओके, चलो हम, उधर बैठते हैं, वरना लोग तुम्हें भी पागल हो कहेंगे। "(और फिर बुजुर्ग हँसने लगे)
करीब ही एक वीरान टपरी थी। हम दोनों वहीं जाकर बैठ गए।
" Well Doctor, I am Mechanical Engineer...."--- बुजुर्ग ने अंग्रेजी में ही शुरुआत की--- "
मैं, ***** कंपनी में सीनियर मशीन ऑपरेटर था।
एक नए ऑपरेटर को सिखाते हुए, मेरा पैर मशीन में फंस गया था, और ये बैसाखी हाथ में आ गई। कंपनी ने इलाज का सारा खर्चा किया, और बाद में कुछ रकम और सौंपी, और घर पर बैठा दिया। क्योंकि लंगड़े बैल को कौन काम पर रखता है सर ? "
"फिर मैंने उस पैसे से अपना ही एक छोटा सा वर्कशॉप डाला। अच्छा घर लिया। बेटा भी मैकेनिकल इंजीनियर है। वर्कशॉप को आगे बढ़ाकर उसने एक छोटी कम्पनी और डाली। "
मैं चकराया, बोला : " बाबा, तो फिर आप यहाँ, इस हालत में कैसे ? "
बुजुर्ग : " मैं...?
किस्मत का शिकार हूँ ...."
" बेटे ने अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए, कम्पनी और घर दोनों बेच दिए। बेटे की तरक्की के लिए मैंने भी कुछ नहीं कहा। सब कुछ बेच बाचकर वो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जापान चला गया, और हम जापानी गुड्डे गुड़िया यहाँ रह गए। "
ऐसा कहकर बाबा हँसने लगे। हँसना भी इतना करुण हो सकता है, ये मैंने पहली बार अनुभव किया।
फिर बोला : " लेकिन बाबा, आपके पास तो इतना हुनर है कि जहाँ लात मारें वहाँ पानी निकाल दें। "
अपने कटे हुए पैर की ओर ताकते बुजुर्ग बोले : " लात ? कहाँ और कैसे मारूँ, बताओ मुझे ? "
बाबा की बात सुन मैं खुद भी शर्मिंदा हो गया। मुझे खुद बहुत बुरा लगा।
प्रत्यक्षतः मैं बोला : "आई मीन बाबा, आज भी आपको कोई भी नौकरी दे देगा, क्योंकि अपने क्षेत्र में आपको इतने सालों का अनुभव जो है। "
बुजुर्ग : " Yes doctor, और इसी वजह से मैं एक वर्कशॉप में काम करता हूँ। 8000 रुपए तनख्वाह मिलती है मुझे। "
मेरी तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। मैं बोला :
"तो फिर आप यहाँ कैसे ? "
बुजुर्ग : "डॉक्टर, बेटे के जाने के बाद मैंने एक चॉल में एक टीन की छत वाला घर किराए पर लिया। वहाँ मैं और मेरी पत्नी रहते हैं। उसे Paralysis है, उठ बैठ भी नहीं सकती। "
" मैं 10 से 5 नौकरी करता हूँ । शाम 5 से 7 इधर भीख माँगता हूँ और फिर घर जाकर तीनों के लिए खाना बनाता हूँ। "
आश्चर्य से मैंने पूछा : " बाबा, अभी तो आपने बताया कि, घर में आप और आपकी पत्नी हैं। फिर ऐसा क्यों कहा कि, तीनों के लिए खाना बनाते हो ? "
बुजुर्ग : " डॉक्टर, मेरे बचपन में ही मेरी माँ का स्वर्गवास हो गया था। मेरा एक जिगरी दोस्त था, उसकी माँ ने अपने बेटे जैसे ही मुझे भी पाला पोसा। दो साल पहले मेरे उस जिगरी दोस्त का निधन हार्ट अटैक से हो गया तो उसकी 92 साल की माँ को मैं अपने साथ अपने घर ले आया तब से वो भी हमारे साथ ही रहती है। "
मैं अवाक रह गया। इन बाबा का तो खुद का भी हाल बुरा है। पत्नी अपंग है। खुद का एक पाँव नहीं, घरबार भी नहीं,
जो था वो बेटा बेचकर चला गया, और ये आज भी अपने मित्र की माँ की देखभाल करते हैं।
कैसे जीवट इंसान हैं ये ?
कुछ देर बाद मैंने समान्य स्वर में पूछा : " बाबा, बेटा आपको रास्ते पर ले आया, ठोकरें खाने को छोड़ गया। आपको गुस्सा नहीं आता उस पर ? "
बुजुर्ग : " No no डॉक्टर, अरे वो सब तो उसी के लिए कमाया था, जो उसी का था, उसने ले लिया। इसमें उसकी गलती कहाँ है ? "
" लेकिन बाबा "--- मैं बोला "लेने का ये कौन सा तरीका हुआ भला ? सब कुछ ले लिया। ये तो लूट हुई। "
" अब आपके यहाँ भीख माँगने का कारण भी मेरी समझ में आ गया है बाबा। आपकी तनख्वाह के 8000 रुपयों में आप तीनों का गुजारा नहीं हो पाता अतः इसीलिए आप यहाँ आते हो। "
बुजुर्ग : " No, you are wrong doctor. 8000 रुपए में मैं सब कुछ मैनेज कर लेता हूँ। लेकिन मेरे मित्र की जो माँ है, उन्हें, डाइबिटीज और ब्लडप्रेशर दोनों हैं। दोनों बीमारियों की दवाई चल रही है उनकी। बस 8000 रुपए में उनकी दवाईयां मैनेज नहीं हो पाती । "
" मैं 2 घंटे यहाँ बैठता हूँ लेकिन भीख में पैसों के अलावा कुछ भी स्वीकार नहीं करता। मेडिकल स्टोर वाला उनकी महीने भर की दवाएँ मुझे उधार दे देता है और यहाँ 2 घंटों में जो भी पैसे मुझे मिलते हैं वो मैं रोज मेडिकल स्टोर वाले को दे देता हूँ। "
मैंने अपलक उन्हें देखा और सोचा, इन बाबा का खुद का बेटा इन्हें छोड़कर चला गया है और ये खुद किसी और की माँ की देखभाल कर रहे हैं।
मैंने बहुत कोशिश की लेकिन खुद की आँखें भर आने से नहीं रोक पाया।
भरे गले से मैंने फिर कहा : "बाबा, किसी दूसरे की माँ के लिए, आप, यहाँ रोज भीख माँगने आते हो ? "
बुजुर्ग : " दूसरे की ? अरे, मेरे बचपन में उन्होंने बहुत कुछ किया मेरे लिए। अब मेरी बारी है। मैंने उन दोनों से कह रखा है कि, 5 से 7 मुझे एक काम और मिला है। "
मैं मुस्कुराया और बोला : " और अगर उन्हें पता लग गया कि, 5 से 7 आप यहाँ भीख माँगते हो, तो ? "
बुजुर्ग : " अरे कैसे पता लगेगा ? दोनों तो बिस्तर पर हैं। मेरी हेल्प के बिना वे करवट तक नहीं बदल पातीं। यहाँ कहाँ पता करने आएँगी.... हा....हा... हा...."
बाबा की बात पर मुझे भी हँसी आई। लेकिन मैं उसे छिपा गया और बोला : " बाबा, अगर मैं आपकी माँ जी को अपनी तरफ से नियमित दवाएँ दूँ तो ठीक रहेगा ना। फिर आपको भीख भी नहीं मांगनी पड़ेगी। "
बुजुर्ग : " No doctor, आप भिखारियों के लिए काम करते हैं। माजी के लिए आप दवाएँ देंगे तो माजी भी तो भिखारी कहलाएंगी। मैं अभी समर्थ हूँ डॉक्टर, उनका बेटा हूँ मैं। मुझे कोई भिखारी कहे तो चलेगा, लेकिन उन्हें भिखारी कहलवाना मुझे मंजूर नहीं। "
" OK Doctor, अब मैं चलता हूँ। घर पहुँचकर अभी खाना भी बनाना है मुझे। "
मैंने निवेदन स्वरूप बाबा का हाथ अपने हाथ में लिया और बोला : " बाबा, भिखारियों का डॉक्टर समझकर नहीं बल्कि अपना बेटा समझकर मेरी दादी के लिए दवाएँ स्वीकार कर लीजिए। "
अपना हाथ छुड़ाकर बाबा बोले : " डॉक्टर, अब इस रिश्ते में मुझे मत बांधो, please, एक गया है, हमें छोड़कर...."
" आज मुझे स्वप्न दिखाकर, कल तुम भी मुझे छोड़ गए तो ? अब सहन करने की मेरी ताकत नहीं रही...."
ऐसा कहकर बाबा ने अपनी बैसाखी सम्हाली। और जाने लगे, और जाते हुए अपना एक हाथ मेरे सिर पर रखा और भर भराई, ममता मयी आवाज में बोले : "अपना ध्यान रखना मेरे बच्चे..."
शब्दों से तो उन्होंने मेरे द्वारा पेश किए गए रिश्ते को ठुकरा दिया था लेकिन मेरे सिर पर रखे उनके हाथ के गर्म स्पर्श ने मुझे बताया कि, मन से उन्होंने इस रिश्ते को स्वीकारा था।
उस पागल कहे जाने वाले मनुष्य के पीठ फेरते ही मेरे हाथ अपने आप प्रणाम की मुद्रा में उनके लिए जुड़ गए।
हमसे भी अधिक दुःखी, अधिक विपरीत परिस्थितियों में जीने वाले ऐसे भी लोग हैं।
हो सकता है इन्हें देख हमें हमारे दु:ख कम प्रतीत हों, और दुनिया को देखने का हमारा नजरिया बदले....
हमेशा अच्छा सोचें, हालात का सामना करे...।
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जिसने भी यह पोस्ट भेजी है मुझे، उनको धन्यवाद، बहुत कुछ सीखने को भी मुझे मिला है ।
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सतसंग पाठ ME / 280921
: राधास्वामी! 28-09-2021
-आज सुबह सतसंग में पढे जाने वाला दूसरा पाठ:-
राधास्वामी छवि निरखत मुसकानी । तन मन सुध बिसरानी रे ॥१॥
बिन दरशन कल नाहिं पड़त है ।
भावे अन्न न पानी रे ॥२॥
देखत रहूँ री रूप गुरु प्यारा ।
छिन छिन मन हरखानी रे ॥३॥
दया करी गुरु दीन दयाला ।
हुई जग से अलगानी रे ॥४॥
लिपट रहूँ हर दम चरनन से। राधास्वामी जान पिरानी रे।।५।।
(प्रेमबानी-3-शब्द-3-पृ.सं.177,178)
: **राधास्वामी! 28-09-2021
-आज शाम सतसंग में पढे जाने वाला दूसरा पाठ:-
आरत गावे सेवक प्यारा ।
सतगुरु चरनन प्रीति सम्हारा ॥१॥
प्रीति सहित नित दरशन करता ।
बंदगी कर परशादी लेता ॥२॥
उमँग उमँग गुरु सेवा धावत । राधास्वामी २ छिन २ गावत ॥ ३॥
गुरु आज्ञा हित चित से माने ।
गुरु सम दूसर और न जाने ॥४॥
राधास्वामी चरनन प्रीति बढ़ाता । आरत कर राधास्वामी रिझाता ॥५॥
निस दिन खेलत सतगुरु पासा ।
बिन गुरुचरन और नहिं आसा ॥६॥ दया मेहर गुरु कीनी भारी ।
मैं भी उन चरनन बलिहारी ॥७।।
प्रेम आनंद बिलास नवीना ।
निस दिन देखू रहूँ अधीना ॥ ८॥
गुरु परताप रहा घट छाई ।
छिन छिन चरन कँवल लौ लाई ॥ ९॥
नाम सुधा रस निस दिन पीना ।
घंटा संख बजे धुन बीना ॥१०॥
गरज गरज मिरदंग सुनाई । सारँग मुरली बजे सुहाई ॥११॥
अलख अगम की धुन सुन पाई । राधास्वामी चरन धियाई ॥१२॥
भाग जगे सतगुरु सँग पाया ।
सहज सरूप अनूप दिखाया ॥१३॥
दया मेहर कुछ बरनी न जाई ।
चरन सरन मैं निज कर पाई ॥१४॥ महिमा राधास्वामी कहाँ लग भाखूँ ।
धनधन धनधन राधास्वामी आखूँ ।१५॥
(प्रेमबानी-1-शब्द-27-पृ.सं.172,173,174)
Monday, September 27, 2021
राधा के श्याम क़ो दे दो
प्रस्तुति - संत / रीना शरण
उन्होंने कहा :- कुछ मांगों। मैंने उनसे उन्हें ही मांग लिया।
उन्होंने कहा :- मुझे नहीं, कुछ और मांगों।
मैंने कहा :- राधा के श्याम दे दो।
उन्होंने कहा :- अरे बाबा, मुझे नहीं कुछ और मांगों।
मैंने कहा :- मीरा के गिरिधर दे दो।
उन्होंने फिर कहा :- तुम्हें बोला ना कुछ और मांगों।
मैंने कहा :- अर्जुन के पार्थ दे दो।
अब तो उन्होंने पूछना ही बंद कर दिया। केवल इशारे से बोले :- कुछ और।
अब तो मैं भी शुरू हो गई :-
यशोदा मईया का लल्ला दे दो।
गईया का गोपाल दे दो।
सुदामा का सखा दे दो।
जना बाई के विठ्ठल दे दो।
हरिदास के बिहारी दे दो।
सूरदास के श्रीनाथ दे दो।
तुलसी के राम दे दो।
ठाकुर जी पूछ रहे है :- तेरी सूई मेरे पे ही आके क्यों अटकती हैं ?
मैंने भी कह दिया :- क्या करूँ प्यारे।
जैसे घडी का सैल जब खत्म होने वाला होता है तो उसकी सूई एक ही जगह खडी-खडी थोड़ी-थोड़ी हिलती रहती हैं।
बस ऐसा ही कुछ मेरे जीवन का हैं।श्वास रूपी सैल अब खत्म होने को हैं।
संसार के चक्कर काट-काट कर सैकडों बार तेरे पास आई।लेकिन अपने मध मे चूर फिर वापिस लौट गई।
परन्तु अब नहीं प्यारे।अब और चक्कर नहीं।
अब तो केवल तुम।
हाँ तुम।
सिर्फ तुम।
तुम तुम और तुम।
हरि बोल
****(जय जय श्री राधे)****
🌹🙏🏻कृष्ण दीवानी 🙏🏻🌹
सुंदर नटखट मनमोहक श्याम श्यामल कृष्ण
प्रस्तुति - रेणु दता / आशा सिन्हा
कृष्ण सांवरे थे, ऐसा नहीं है। हमने इतना ही कहा है सांवरा कह कर, कि कृष्ण के सौंदर्य में बड़ी गहराई थी; जैसे गहरी नदी में होती है, जहां जल सांवरा हो जाता है। यह सौंदर्य देह का ही सौंदर्य नहीं था–यह हमारा मतलब है। खयाल मत लेना कि कृष्ण सांवले थे। रहे हों न रहे हों, यह बात बड़ी बात नहीं है। लेकिन सांवरा हमारा प्रतीक है इस बात का कि यह सौंदर्य शरीर का ही नहीं था, यह सौंदर्य मन का था; मन का ही नहीं था; यह सौंदर्य आत्मा का था। यह सौंदर्य इतना गहरा था, उस गहराई के कारण चेहरे पर सांवरापन था। छिछला नहीं था सौंदर्य। अनंत गहराई लिए था।
यह तुम्हारा मोर के पंखों से बना हुआ मुकुट, यह तुम्हारा सुंदर मुकुट, जिसमें सारे रंग समाएं हैं! वही प्रतीक है। मोर के पंखों से बनाया गया मुकुट प्रतीक है इस बात का कि कृष्ण में सारे रंग समाए हैं। महावीर में एक रंग है, बुद्ध में एक रंग है, राम में एक रंग है–कृष्ण में सब रंग हैं। इसलिए कृष्ण को हमने पूर्णावतार कहा है…सब रंग हैं। इस जगत की कोई चीज कृष्ण को छोड़नी नहीं पड़ी है। सभी को आत्मसात कर लिया है। कृष्ण इंद्रधनुष हैं, जिसमें प्रकाश के सभी रंग हैं। कृष्ण त्यागी नहीं हैं। कृष्ण भोगी नहीं हैं। कृष्ण ऐसे त्यागी हैं जो भोगी हैं। कृष्ण ऐसे भोगी हैं जो त्यागी हैं। कृष्ण हिमालय नहीं भाग गए हैं, बाजार में हैं। युद्ध के मैदान पर हैं। और फिर भी कृष्ण के हृदय में हिमालय है। वही एकांत! वही शांति! अपूर्व सन्नाटा!
कृष्ण अदभुत अद्वैत हैं। चुना नहीं है कृष्ण ने कुछ। सभी रंगों को स्वीकार किया है, क्योंकि सभी रंग परमात्मा के हैं।
हरि बोल 🙏🙏🌹🌹
पीपल जामुन नीम अशोक अर्जुन औऱ बरगढ़
आओ चलो मिलकर फिर से पेड़🌳 लगाते हैं.
प्रस्तुति -+ शैलेन्द्र किशोर
वह भी खास छ: प्रकार के.
1-पीपल का पेड़
हिंदु धर्म में पीपल तो बौद्ध धर्म में इसे बोधी ट्री के नाम से जानते हैं. कहते हैं कि इसी पेड़ के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था. पीपल का पेड़ 60 से 80 फीट तक लंबा हो सकता है. यह पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देता है. इसलिए पर्यावरणविद पीपल का पेड़ लगाने के लिए बार-बार कहते हैं.
2-बरगद का पेड़
इस पेड़ को भारत का राष्ट्रीय वृक्ष भी कहते हैं. इसे हिंदू धर्म में बहुत पवित्र भी माना जाता है. बरगद का पेड़ बहुत लंबा हो सकता है और यह पेड़ कितनी ऑक्सीजन उत्पादित करता है ये उसकी छाया कितनी है, इस पर निर्भर करता है.
3-नीम का पेड़
एक और पेड़ जिसके बहुत से फायदे हैं, नीम का पेड़. इस पेड़ को एक एवरग्रीन पेड़ कहा जाता है और पर्यावरणविदों की मानें तो यह एक नैचुरल एयर प्यूरीफायर है. ये पेड़ प्रदूषित गैसों जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड, सल्फर और नाइट्रोजन को हवा से ग्रहण करके पर्यावरण में ऑक्सीजन को छोड़ता है.
इसकी पत्तियों की संरचना ऐसी होती है कि ये बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन उत्पादित कर सकता है. ऐसे में हमेशा ज्यादा से ज्यादा नीम के पेड़ लगाने की सलाह दी जाती है. इससे आसपास की हवा हमेशा शुद्ध रहती है.
4-अशोक का पेड़
अशोक का पेड़ न सिर्फ ऑक्सीजन उत्पादित करता है बल्कि इसके फूल पर्यावरण को सुंगधित रखते हैं और उसकी खूबसूरती को बढ़ाते हैं. यह एक छोटा सा पेड़ होता है जिसकी जड़ एकदम सीधी होती है.
पर्यावरणविदों की मानें तो अशोक के पेड़ को लगाने से न केवल वातावरण शुद्ध रहता है बल्कि उसकी शोभा भी बढ़ती है. घर में अशोक का पेड़ हर बीमारी को दूर रखता है. ये पेड़ जहरीली गैसों के अलावा हवा के दूसरे दूषित कणों को भी सोख लेता है.
5-अर्जुन का पेड़
अर्जुन के पेड़ के बारे में कहते हैं कि यह हमेशा हरा-भरा रहता है. इसके बहुत से आर्युवेदिक फायदे हैं. इस पेड़ का धार्मिक महत्व भी बहुत है और कहते हैं कि ये माता सीता का पसंदीदा पेड़ था. हवा से कार्बन डाई ऑक्साइड और दूषित गैसों को सोख कर ये उन्हें ऑक्सीजन में बदल देता है.
6-जामुन का पेड़
भारतीय अध्यात्मिक कथाओं में भारत को जंबूद्वीप यानी जामुन की धरती के तौर पर भी कहा गया है. जामुन का पेड़ 50 से 100 फीट तक लंबा हो सकता है. इसके फल के अलावा यह पेड़ सल्फर ऑक्साइड और नाइट्रोजन जैसी जहरीली गैसों को हवा से सोख लेता है. इसके अलावा कई दूषित कणों को भी जामुन का पेड़ ग्रहण करता है.
एक अद्भुत शिवलिंग मंदिर
झारखंड के रामगढ़ में एक मंदिर ऐसा भी है जहां भगवान शंकर के शिवलिंग पर जलाभिषेक कोई और नहीं स्वयं मां गंगा करती हैं । मंदिर की खासियत यह है कि यहां जलाभिषेक साल के बारह महीने और चौबीस घंटे होता है । यह पूजा सदियों से चली आ रही है । माना जाता है कि इस जगह का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है । भक्तों की आस्था है कि यहां पर मांगी गई हर मुराद पूरी होती है ।
अंग्रेजों के जमाने से जुड़ा है इतिहास....
झारखंड के रामगढ़ जिले में स्थित इस प्राचीन शिव मंदिर को लोग टूटी झरना के नाम से जानते है । मंदिर का इतिहास 1925 से जुड़ा हुआ है और माना जात है कि तब अंग्रेज इस इलाके से रेलवे लाइन बिछाने का काम कर रहे थे । पानी के लिए खुदाई के दौरान उन्हें जमीन के अन्दर कुछ गुम्बदनुमा चीज दिखाई पड़ा । अंग्रेजों ने इस बात को जानने के लिए पूरी खुदाई करवाई और अंत में ये मंदिर पूरी तरह से नजर आया । शिव भगवान की होती है पूजा
मंदिर के अन्दर भगवान भोले का शिव लिंग मिला और उसके ठीक ऊपर मां गंगा की सफेद रंग की प्रतिमा मिली । प्रतिमा के नाभी से आपरूपी जल निकलता रहता है जो उनके दोनों हाथों की हथेली से गुजरते हुए शिव लिंग पर गिरता है । मंदिर के अन्दर गंगा की प्रतिमा से स्वंय पानी निकलना अपने आप में एक कौतुहल का विषय बना है ।
मां गंगा की जल धारा का रहस्य...
सवाल यह है कि आखिर यह पानी अपने आप कहा से आ रहा है । ये बात अभी तक रहस्य बनी हुई है । कहा जाता है कि भगवान शंकर के शिव लिंग पर जलाभिषेक कोई और नहीं स्वयं मां गंगा करती हैं । यहां लगाए गए दो हैंडपंप भी रहस्यों से घिरे हुए हैं । यहां लोगों को पानी के लिए हैंडपंप चलाने की जरूरत नहीं पड़ती है बल्कि इसमें से अपने-आप हमेशा पानी नीचे गिरता रहता है । वहीं मंदिर के पास से ही एक नदी गुजरती है जो सूखी हुई है लेकिन भीषण गर्मी में भी इन हैंडपंप से पानी लगातार निकलता रहता है ।
दर्शन के लिए बड़ी संख्या में आते हैं श्रद्धालु...
लोग दूर-दूर से यहां पूजा करने आते हैं और साल भर मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है । श्रद्धालुओं का मानना हैं कि टूटी झरना मंदिर में जो कोई भक्त भगवान के इस अदभुत रूप के दर्शन कर लेता है उसकी मुराद पूरी हो जाती है. भक्त शिवलिंग पर गिरने वाले जल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं और इसे अपने घर ले जाकर रख लेते हैं । इसे ग्रहण करने के साथ ही मन शांत हो जाता है और दुखों से लड़ने की ताकत मिल जाती हैं
हर हर महादेव
श्री कृष्ण का महाप्रयाण
भगवान् कृष्ण ने जब देह छोड़ा तो उनका अंतिम संस्कार किया गया , उनका सारा शरीर तो पांच तत्त्व में मिल गया लेकिन उनका हृदय बिलकुल सामान्य एक जिन्दा आदमी की तरह धड़क रहा था और वो बिलकुल सुरक्षित था , उनका हृदय आज तक सुरक्षित है जो भगवान् जगन्नाथ की काठ की मूर्ति के अंदर रहता है और उसी तरह धड़कता है , ये बात बहुत कम लोगो को पता है
🙏जय माता दी 🙏
महाप्रभु का महा रहस्य
सोने की झाड़ू से होती है सफाई......
महाप्रभु जगन्नाथ(श्री कृष्ण) को कलियुग का भगवान भी कहते है.... पुरी(उड़ीसा) में जग्गनाथ स्वामी अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ निवास करते है... मगर रहस्य ऐसे है कि आजतक कोई न जान पाया
हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है,उस समय पूरे पुरी शहर में ब्लैकआउट किया जाता है यानी पूरे शहर की लाइट बंद की जाती है। लाइट बंद होने के बाद मंदिर परिसर को crpf की सेना चारो तरफ से घेर लेती है...उस समय कोई भी मंदिर में नही जा सकता...
मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है...पुजारी की आँखों मे पट्टी बंधी होती है...पुजारी के हाथ मे दस्ताने होते है..वो पुरानी मूर्ती से "ब्रह्म पदार्थ" निकालता है और नई मूर्ती में डाल देता है...ये ब्रह्म पदार्थ क्या है आजतक किसी को नही पता...इसे आजतक किसी ने नही देखा. ..हज़ारो सालो से ये एक मूर्ती से दूसरी मूर्ती में ट्रांसफर किया जा रहा है...
ये एक अलौकिक पदार्थ है जिसको छूने मात्र से किसी इंसान के जिस्म के चिथड़े उड़ जाए... इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है...मगर ये क्या है ,कोई नही जानता... ये पूरी प्रक्रिया हर 12 साल में एक बार होती है...उस समय सुरक्षा बहुत ज्यादा होती है...
मगर आजतक कोई भी पुजारी ये नही बता पाया की महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ती में आखिर ऐसा क्या है ???
कुछ पुजारियों का कहना है कि जब हमने उसे हाथमे लिया तो खरगोश जैसा उछल रहा था...आंखों में पट्टी थी...हाथ मे दस्ताने थे तो हम सिर्फ महसूस कर पाए...
आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा खुद झाड़ू लगाने आते है...
भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती, जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देंगी
आपने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे-उड़ते देखे होंगे, लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता।
झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशामे लहराता है
दिन में किसी भी समय भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती।
भगवान जगन्नाथ मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदला जाता है, ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा
इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जो हर दिशा से देखने पर आपके मुंह आपकी तरफ दीखता है।
भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, जिसे लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है, इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है।
भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।
ये सब बड़े आश्चर्य की बात हैं..
दोस्तों-जाते जाते एक कॉमेंट देते जाइये।
मेरे पेज पर बिन बुलाये आते दोस्त
क्योकि उनके स्वागत में फूल नहीं
दिल बिछाये जाते हे "
प्रार्थना
अगर आप कॊ पोस्ट अच्छी लगे तॊ
इस पेज को जरूर जरूर लाईक व शेयर करे
अधिक शेयर से पोस्टें ज्यादा से
ज्यादा भाई-बहन तक पहुँच सकेगी !
🚩 जय श्री जगन्नाथ 🚩
🙏🙏
संग का साथ
गुरू महिमा
〰️🔸〰️
एक भंवरा हर रोज एक फूलो के बाग मे जाता है
और जिस जगह से वो गुजरता है,,,वहा एक गंदा नाला होता है
और उस नाले मे एक कीड़ा रहता है
वो भंवरा रोज उस नाले के ऊपर से होकर जाता है,,,
एक दिन उस भंवरे की नजर उस गंदी नाले के कीड़े पर पड़ती है और कीड़े को देखकर उस भंवरे को दया आ जाती है,,
वो भंवरा सोचता है कि ये कीड़ा कैसे इस नाले मे रहता है और भंवरा कीड़े के पास जाकर उससे पूछता है?
कि तुम कैसे यहा रहते हो इस गंदगी मे,,तो इस पर कीड़ा कहता है कि ये मेरा घर है,,भंवरा कीड़े को समझाता है कि तुम मेरे साथ चलो मै तुम्हे जन्नत की सैर करवाऊंगा,,,
तो कीड़ा कहता है मै नही जाऊँगा यही मेरी जन्नत है,,,भंवरा कहता है तुम मेरे साथ चलो तो सही,,मुझसे दोस्ती करो तो सही,,
भंवरे की बात सुनकर कीड़ा दोस्ती का हाथ आगे बढाता हे ओर चलने के लिए तैयार हो जाता है,,फिर भंवरा उसे कहता है की मै कल आऊँगा और तुम्हे अपने साथ ले जाऊँगा,,,
अगले दिन सुबह जब भंवरा फूलो के बाग मे जाने लगता है तो वो पहले उस कीड़े को लेने के लिए जाता है,,,
और उस कीड़े को भंवरा अपने कंधे पर बैठाकर फूलो के बाग मे ले जाता है,,,फिर भंवरा उस कीड़े को एक फूल पर बैठाकर खुद फूलो का रस चखने लग जाता है,,,
अब पूरे दिन के बाद भंवरे का लोटने का समय हो गया और वो उस कीड़े को वही भूल कर चला गया,,,जिस फूल पर भंवरे ने कीड़े को बैठाया था वो सांझ के समय बंद हो जाता है,,,
वो कीड़ा उसी फूल मे बंद हो गया,,,अगले दिन सुबह जब माला बनाने के लिए फूलो को तोड़ा गया तो उस फूल को भी तोड़ा गया जिसमे वो कीड़ा था,,,
उन फूलो की माला बनाकर वो माला बिहारी जी के मंदिर भेज दि गई,,,उस माला मे वो फूल भी था जिसमे वो कीड़ा था,,,और वही माला बिहारी जी के गले मे पहना दि गई,,,
फिर पूरे दिन के बाद वही माला यमुना जी मे प्रवाहित कर दि गई,,,और वो कीड़ा सब देख रहा है,,,
कीड़ा कहता है कि वाह रे भंवरे तेरी दोस्ती,,,कहा मै उस गंदी नाली का कीड़ा था,,,ओर तेरी दोस्ती ने मुझे कहा पहुँचा दिया,,,
बिहारी जी के गले से होकर कहा मै यमुना जी मे गोते खाता जा रहा हूँ,,,वो कीड़ा उस भंवरे की दोस्ती को याद करता हुआ बस यमुना जी मे गोते खाता जा रहा है,,,
#ओर_अब_ये_भंवरा_कोन_है??
ये भंवरा ही है हमारे सद्गुरु,,
और वो कीड़ा है हम सभी,,
इसलिए सदगुरु का हाथ पकड़कर चल
किसी के पैर पकड़ने की नौबत नही आएगी।।श्री गुरूदेव भगवन की जय हो
जगन्नाथ धाम, पुरी की रसोई अत्यंत अद्भुत है...
172 साल पुराने इस मंदिर के एक एकड़ में फैली 32 कमरों वाली इस विशाल रसोई (150 फ़ीट लंबी, 100 फ़ीट चौड़ी और 20 फ़ीट ऊँची) में भगवान् को चढ़ाये जाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए 752 चूल्हे इस्तेमाल में लाए जाते हैं...
और लगभग 500 रसोइए तथा उनके 300 सहयोगी काम करते हैं....ये सारा प्रसाद मिट्टी की जिन सात सौ हंडियों में पकाया जाता है, उन्हें ‘अटका’ कहते हैं.. लगभग दो सौ सेवक सब्जियों, फलों, नारियल इत्यादि को काटते हैं, मसालों को पीसते हैं.. मान्यता है कि इस रसोई में जो भी भोग बनाया जाता है......
उसका निर्माण माता लक्ष्मी की देखरेख में ही होता है।
यह रसोई विश्व की सबसे बड़ी रसोई के रूप में विख्यात है।
यह मंदिर की दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है। भोग पूरी तरह शाकाहारी होता है। मीठे व्यंजन तैयार करने के लिए यहाँ शक्कर के स्थान पर अच्छे किस्म का गुड़ प्रयोग में लाया जाता है..
आलू, टमाटर और फूलगोभी का उपयोग मन्दिर में नहीं होता। जो भी व्यंजन यहाँ तैयार किये जाते हैं, उनके ‘जगन्नाथ वल्लभ लाडू’, ‘माथपुली’ जैसे कई अन्य नाम रखे जाते हैं। भोग में प्याज व लहसुन का प्रयोग निषिद्ध है।
यहाँ रसोई के पास ही दो कुएं हैं, जिन्हें ‘गंगा’ व ‘यमुना’ कहा जाता है..
केवल इनसे निकले पानी से ही भोग का निर्माण किया जाता है। इस रसोई में 56 प्रकार के भोगों का निर्माण किया जाता है। दाल, चावल, सब्जी, मीठी पूरी, खाजा, लड्डू, पेड़े, बूंदी, चिवड़ा, नारियल, घी, माखन, मिसरी आदि से महाप्रसाद बनता है...
रसोई में पूरे वर्ष के लिए भोजन पकाने की सामग्री रहती है। रोज़ कम से कम 10 तरह की मिठाइयाँ बनाई जाती हैं।
आठ लाख़ लड्डू एक साथ बनाने पर इस रसोई का नाम गिनीज़ बुक में भी दर्ज हो चुका है...
रसोई में एक बार में 50 हज़ार लोगों के लिए महाप्रसाद बनता है। मन्दिर की रसोई में प्रतिदिन बहत्तर क्विंटल चावल पकाने का स्थान है..
रसोई में एक के ऊपर एक 7 कलशों में चावल पकाया जाता है। प्रसाद बनाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रख दिए जाते हैं। सबसे ऊपर रखे बर्तन में रखा भोजन पहले पकता है.... फिर नीचे की तरफ़ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है। प्रतिदिन नये बर्तन ही भोग बनाने के काम आते हैं।
सर्वप्रथम भगवान् को भोग लगाने के पश्चात् भक्तों को प्रसाद दिया जाता है...
भगवान् जगन्नाथ को महाप्रसाद, जिसे ‘अब्धा’ कहा जाता है, निवेदित करने के बाद माता बिमला को निवेदित किया जाता है...
तब वह प्रसाद महाप्रसाद बन जाता है...
भगवान् श्री जगन्नाथ को दिन में छह बार महाप्रसाद चढ़ाया जाता है।
रथ यात्रा के दिन एक लाख़ चौदह हज़ार लोग रसोई कार्यक्रम में तथा अन्य व्यवस्था में लगे होते हैं...
जबकि 6000 पुजारी पूजाविधि में कार्यरत होते हैं। ओडिशा में दस दिनों तक चलने वाले इस राष्ट्रीय उत्सव में भाग लेने के लिए दुनिया के कोने-कोने से लोग उत्साहपूर्वक उमड़ पड़ते हैं..।
यहाँ भिन्न-भिन्न जातियों के लोग एक साथ भोजन करते हैं, जात-पाँत का कोई भेदभाव नहीं रखा जाता।....
जय जगन्नाथ....
कुरुक्षेत्र के आस पास
*कुरुक्षेत्र भूमि की ४८ कोस परिक्रमा में स्थित तीर्थों की सूची इस प्रकार है*
1. अरुणाय तीर्थ, अरुणाय 2. प्राची तीर्थ, पेहवा 3. सरस्वती तीर्थ, पेहवा 4. ब्रहमयोनि तीर्थ, पेहवा 5. पृथूदक तीर्थ, पेहवा 6. शालिहोत्र तीर्थ, सारसा 7. भीष्म कुण्ड, नरकातारी 8. बाण गंगा, दयालपुर 9. कुलोतारण तीर्थ, किरमिच 10. ब्रह्म सरोवर, कुरुक्षेत्र 11. सन्निहित सरोवर, कुरुक्षेत्र 12. भद्रकाली मंदिर, कुरुक्षेत्र 13. अदिति तीर्थ एवं अभिमन्यु का टीला, अमीन 14. गीता उपदेश स्थल, ज्योतिसर 15. सोम तीर्थ, सैंसा 16. शुक्र तीर्थ, सतौड़ा 17. गालव तीर्थ, गुलडेहरा 18.सप्तसारस्वत तीर्थ, मांगणा 19. ब्रह्म तीर्थ (ब्रह्म स्थान), थाना 20. सोम तीर्थ, गुमथला गढ़ू 21. मणिपूरक तीर्थ, मुर्तजापुर 22. भूरिश्रवा तीर्थ, भोर सैदाना 23. लोमश तीर्थ, लोहार माजरा 24. काम्यक तीर्थ, कमौदा 25. आपगा तीर्थ, मिर्जापुर 26. करण का टीला, मिर्जापुर 27. नाभिकमल, थानेसर 28. रन्तुक यक्ष, बीड़ पीपली 29. स्थानेश्वर महादेव मन्दिर 30. ओजस तीर्थ, शमशीपुर 31. रेणुका तीर्थ, रणाचा
*जींद जिला*
32. भूतेश्वर तीर्थ, जींद 33. एकहंस तीर्थ,इक्कस 34. रामहृद तीर्थ, रामराय 35. सन्निहित तीर्थ, रामराय 36. पुष्कर तीर्थ (कपिल यक्ष), पोखरखेड़ी 37. सोम तीर्थ, पिंडारा 38. वराह तीर्थ, बराहकलाँ 39. अश्विनिकुमार तीर्थ, आसन 40. जमदग्नि तीर्थ, जमनी 41. ययाति तीर्थ, कालवा 42. पंचनद तीर्थ (हाटकेश्वर तीर्थ), हाट 43. सर्पदधि तीर्थ, सफीदों 44. सर्पदमन तीर्थ, सफीदों 45. कायाशोधन तीर्थ, कसूहन 46.वंशमूलम तीर्थ, बरसौला 47. खगेश्वर तीर्थ, खडालवा 48. रामसर तीर्थ (कुश तीर्थ), कुचराणा कलाँ 49. लोहऋषि/लोकोद्वार तीर्थ, लोधार
पानीपत जिला संपादित करें
50. तरन्तुक यक्ष, सींख
*कैथल जिला*
51. पवनहृद तीर्थ, पबनावा 52. फल्गु तीर्थ, फरल 53. पवनेश्वर तीर्थ, फरल 54. कपिल मुनि तीर्थ, कलायत 55. पुण्डरीक तीर्थ, पुंडरी 56. त्रिविष्टप तीर्थ, ट्यौंठा 57. कोटिकूट तीर्थ, क्योड़क 58. बंटेश्वर तीर्थ, बरोट 59. नमिष तीर्थ, नौच 60. वेदवती तीर्थ, बलवन्ती 61. वृद्ध केदार तीर्थ, कैथल 62. सारक तीर्थ, शेरगढ़ 63. मानुष तीर्थ, मानस 64. नवदुर्गा तीर्थ, देवीगढ़ 65. ग्यारह रुद्री तीर्थ, कैथल 66. आपगा तीर्थ, Gadli 67. जूहोमि तीर्थ, हजवाना 68. विष्णूपद तीर्थ, बरसाणा 69. यज्ञसंजन तीर्थ, ग्यौंग 70. कपिलमुनि तीर्थ, कौल 71. कुलोत्तारण तीर्थ, कौल 72. गढ़रथेश्वर तीर्थ, कौल 73. मातृ तीर्थ, रसूलपुर 74. सूर्यकुण्ड तीर्थ, हाबड़ी 75. हव्य तीर्थ, भाना 76. चक्रमणि तीर्थ, सेरधा 77. रसमंगल तीर्थ, सोंघल 78. मुक्तेश्वर तीर्थ, मटोर 79. श्री तीर्थ, कसान 80. श्रीकुंज तीर्थ, बनपुरा 81. इक्षुमति तीर्थ, पोलड़ 82. सुतीर्थ तीर्थ, सोंथा 83. ब्रह्मवर्त तीर्थ, ब्रभावत 84. अरंतुक यक्ष, बेहरजक्ष 85. श्रृंगी ऋषि तीर्थ/ शंखनी देवी तीर्थ, सांघन 86. गोभवन तीर्थ, गुहाना 87. सूर्यकुण्ड, सजुमा 88. शीतवन/स्वर्गद्वार तीर्थ, सीवन 89. ब्रह्मौदुम्बर तीर्थ, शीलाखेड़ी 90. अन्यजन्म तीर्थ, ड्योडाखेड़ी 91. देवी तीर्थ, कलसी 92. ध्रुवकुण्ड तीर्थ, धेरड़ू 93. कुकृत्यनाशन तीर्थ, कौकत 94. काव्य तीर्थ, करोड़ा 95. लवकुश तीर्थ, मुंदड़ी 96. वामन तीर्थ, सोंघल 97. ऋणमोचन तीर्थ, रसीना 98. अलेपक तीर्थ, शाकरा 99. देवी तीर्थ, मोहना 100. गंधर्व तीर्थ, गोहरनखेड़ी
*करनाल जिला*
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101. वेदवती तीर्थ, सीतामाई 102. मिश्रक तीर्थ, निसंग 103. आहन तीर्थ, , निगदु 104. त्रिगुणानंद तीर्थ, गुनियाना 105. पवन तीर्थ, उपलाना 106. जंबुनंद तीर्थ, जबाला 107. दशाश्वमेध तीर्थ, सालवन 108. धनक्षेत्र तीर्थ, असंध 109. जरासंध का टीला, असंध 110. विमलसर तीर्थ, सग्गा सोम 111. दशरथ तीर्थ/राघवेंद्र तीर्थ/सूर्य कुंड, औगंध 112. पृथ्वी तीर्थ, बालु 113. पराशर तीर्थ, बहलोलपुर 114. दक्षेश्वर तीर्थ, डाचर 115. व्यास स्थली, बस्तली 116. गौतम ऋषि/ गवेन्द्र तीर्थ, गोन्दर 117. ब्रह्म तीर्थ, सावन्थ 118. अक्षयवट तीर्थ, बड़थल 119. फल्गु तीर्थ, फफड़ाना 120. ज्येष्ठाश्रम तीर्थ, बोड़श्याम 121. कोटि तीर्थ, बोड़श्याम 122. सूर्य तीर्थ, बोड़श्याम 123. विष्णुहृद (विष्णुपाद) वामनक तीर्थ, बोड़श्याम 124. ब्रह्म तीर्थ, रसालवा 125. अंजनी तीर्थ, अंजनथली 126. जमदग्नि तीर्थ, जलमाना 127. सुदिन व नर्वदा तीर्थ, ओंकार का खेड़ा 128. त्रिपुरारी तीर्थ, तिगड़ी 129. सोम तीर्थ, समाना बाहु 130. चुच्चुकारण्र्डव तीर्थ, चोरकारसा 131. कोटि तीर्थ, कूरनल 132. पंचदेव तीर्थ, पाढा 133. प्रोक्षि🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼त्नपुरी 134. कौशिकी तीर्थ, कोयर
कर्मफल
कश्यप ऋषि के पुत्र पक्षीराज गरुड़ ने श्री विष्णु हरि से पूछा इस ब्रह्मांड में ऐसी कौन सी जगह है?
जहां पर मनुष्य कभी बूढ़ा नहीं होता?
जहां पर मनुष्य को कभी भूख नहीं लगती?
जहां पर मनुष्य को किसी भी प्रकार का रोग नहीं होता?
जहां पर मनुष्य हमेशा खुश रहता है?
जगत के आधार, सभी कारणों के कारण,पापी आत्माओं को भी शरणागत देने वाले श्री विष्णु हरी ने पक्षीराज गुरुड को बताया इस ब्रह्मांड में यमपुरी ही एक ऐसी जगह है जहां पर मनुष्य कभी बूढ़ा नहीं होता? जहां पर मनुष्य को कभी भूख नहीं लगती? जहां पर मनुष्य को किसी भी प्रकार का रोग नहीं लगता? देवलोक और मनुष्यलोक में जितने भी सुख सुविधाएं हैं उस प्रकार की सभी सुख सुविधाएं यमपुरी में उपलब्ध है वहां सभी प्रकार के रसों से परिपूर्ण सामग्री उपलब्ध होती है
यमराज के दरबार में कौन-कौन सभासद, निर्णय लेने में यमराज की सहायता करते हैं तथा कौन यमराज के दरबार में जा सकता है?
यमपुरी मृत्युलोक से 86 हजार योजन दूर है यमराज का महल 200 योजन लंबा 200 योजन चौड़ा तथा 50 योजन ऊंचा है यमराज की सभा 100 योजन लंबी और चौड़ी है, यमपुरी में ना गर्मी है और ना ठंड है और यमपुरी में ना बुढ़ापे की चिंता सताती है और हमेशा मौसम सुहावना रहता है यमराज का महल सोने का बना हुआ है और हीरो की फर्श पर चित्रकारी है और खिड़कियों में हीरो के रोशनदान बने हुए हैं यमराज के दरबार में निम्नलिखित सभासद है, जो शास्त्रों का अध्ययन कर कर उचित निर्णय लेने में यमराज की सेवा करते हैं
( अत्रि, वशिष्ठ मुनि, पुलह, दक्ष, क्रतु,अंगिरा,परशुराम, पुलत्स्य,अगस्त्य, नारद)
यह सभी यमराज जी के सभासद है जिनके नामों और कर्मों की गणना नहीं की जा सकती यह सभी धर्मशास्त्रों की व्याख्या करके यथावत निर्णय देते हैं और ब्रह्मा की आज्ञा अनुसार सभी यमराज की सेवा करते हैं इस सभा में सूर्यवंश और चंद्रवंश के अन्य बहुत से धर्मात्मा राजा यमराज की सेवा करते हैं
( मनु, दिलीप, सगर, भागीरथ, दुष्यंत, शांतनु, पांडू, मुचुकुंन्द,अनरण्य,अम्बरीष,भरत,नल, शिवि, निमि, पूरू, ययाति और सहस्त्रार्जुन)
यह सभी पुण्यआत्मा और बहुत से प्रख्यात राजा अश्वमेध यज्ञ करने फलस्वरूप यमराज के सभासद बने हैं यमराज की सभा में धर्म की प्रवृत्ति होती है ना वहां पक्षपात होता और ना वहां झूठ बोला जाता और ना ही किसी के प्रति मात्सर्यभाव रखा जाता है सभी सभासद शास्त्रविद और धर्मपरायण है वह सदा सभा में वैवस्वत यम की उपासना करते हैं.
यमपुरी में दक्षिणी द्वार से प्रवेश करने वाले कभी भी यमराज की सभा में नहीं जा सकते, केवल पुण्यआत्मा, सन्यासी, धर्मात्मा और हमेशा परमात्मा का नाम जपने वाले ही यमराज की सभा में जा सकते हैं दक्षिणी द्वार से प्रवेश करने वालों को 100 सालों तक यमपुरी में प्रवेश करने के लिए इंतजार करना पड़ता है क्योंकि यमपुरी में दक्षिणी द्वार से प्रवेश करने वाले सभी पापी लोग होते हैं और 100 सालों तक यम के दूत ऐसी पापी आत्माओं को कई प्रकार की यातनाएं देते हैं धर्मात्मा और सन्यासी लोगों की यमराज के दरबार में उचित देखभाल की जाती है अप्सराएं धर्मात्मा और सन्यासी लोगों की सेवा में लगी रहती है धर्मात्मा और सन्यासी लोगों को यमराज के दरबार में उचित मान सम्मान दिया जाता है
इसलिए मृत्यु लोक के प्राणियों से विशेष प्रार्थना है अपने कर्मों को सुधारो ताकि यमराज के दरबार में उचित मान सम्मान मिल सके तथा यमराज के दरबार में सभासद के रूप में सेवा करने का मौका मिल सके
गणेश वरदान
गणेश जी की कथा
एक बुढ़िया थी। वह बहुत ही ग़रीब और अंधी थीं। उसके एक बेटा और बहू थे। वह बुढ़िया सदैव गणेश जी की पूजा किया करती थी।
एक दिन गणेश जी प्रकट होकर उस बुढ़िया से बोले- 'बुढ़िया मां! तू जो चाहे सो मांग ले।' बुढ़िया बोली- 'मुझसे तो मांगना नहीं आता। कैसे और क्या मांगू?' तब गणेशजी बोले - 'अपने बहू-बेटे से पूछकर मांग ले।'
बुढ़िया ने अप
ने बेटे से कहा- 'गणेशजी कहते हैं 'तू कुछ मांग ले' बता मैं क्या मांगू?' पुत्र ने कहा- 'मां! तू धन मांग ले।' बहू से पूछा तो बहू ने कहा- 'नाती मांग ले।' तब बुढ़िया ने सोचा कि ये तो अपने-अपने मतलब की बात कह रहे हैं। अत: उस बुढ़िया ने पड़ोसिनों से पूछा, तो उन्होंने कहा- 'बुढ़िया! तू तो थोड़े दिन जीएगी, क्यों तू धन मांगे और क्यों नाती मांगे। तू तो अपनी आंखों की रोशनी मांग ले, जिससे तेरी ज़िन्दगी आराम से कट जाए।'
बुढ़िया बोली- 'यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आंखों की रोशनी दें, नाती दें, पोता, दें और सब परिवार को सुख दें और अंत में मोक्ष दें।' यह सुनकर तब गणेशजी बोले- 'बुढ़िया मां! तुने तो हमें ठग दिया। फिर भी जो तूने मांगा है वचन के अनुसार सब तुझे मिलेगा।' और यह कहकर गणेशजी अंतर्धान हो गए।
बुढ़िया माँ ने जो कुछ मांगा वह सबकुछ मिल गया। हे गणेशजी महाराज! जैसे तुमने उस बुढ़िया माँ को सबकुछ दिया, वैसे ही सबको देना।
🙏🙏
उपासना
ईश्वर/भगवान/गॉड/परमात्मा/मालिक नाम की संसार में कोई चीज नहीं है--जैसा आम आदमी सोचकर उसके लिए पूजा पाठ, मंत्रजाप, हवन,व्रत, उपासना, दंडवत करता रहता है और उससे कृपा/दया/करुणा/उसकी प्रसन्नता पाकर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करवाने की अभिलाष रखता है।
हर मत पंथ सम्प्रदाय के ज्ञानी संत महापुरुष गुरु आपके द्वारा पकड़े हुए दुर्गुणों को छुड़वाने की कोशिश करता है।इसके अलावा ओर कुछ कर भी नहीं सकता क्योंकि उनके पास और कोई चारा भी तो नहीं है।
खास बात ध्यान देने योग्य यह है कि अगर आप दुर्गुणों जैसे काम क्रोध लोभ मोह भय अहंकार वासना तृष्णा झूठ पाखंड अत्याचार... आदि को छोड़(और आप छोड़ने में पूर्ण स्वतंत्र हो भी) देते हैं तो.......... सद्गुण(सत्य, विचार,दया ,शील ,धीरज ,विवेक ,वैराग्य ,प्रेम ,करुणा,प्राणिमात्र को अपने सामान समझकर मन वचन कर्म से जो बन सके सहायता करना...आदि) स्वतः प्रकट हो जाते हैं क्योंकि वह तो अनादिकाल से आपकी असली संपत्ति है,जिसके आप असली हकदार हैं,जो हमेशा से मौजूद है सिर्फ आपके द्वारा पकड़े गए दुर्गुणों से ढ़की पड़ी थी।
सद्गुणों के प्रकट होते जी आप स्वयं जिस भगवान/गॉड/परमात्मा/ईश्वर को खोज रहे थे वैसे आप स्वयं(मूलरूप से तो आप थे ही ईश्वररूप बस ये दुर्गुणों में छिपे पड़े थे) हो जाएंगे तथा कही जाए बिना ही उस परमात्मा को स्वयं में ही अनुभव करेंगे और आपकी खोज पूर्ण हो जाएगी।
अगर ऐसा नहीं किया तो आकाश पाताल में कही भी खोज लेना और आप जन्मों जन्मों में खोजते ही आएं हैं ऐसा भगवान/ईश्वर/गॉड कही नहीं मिलेगा।
यह बिल्कुल सत्य है इसमें किसी ग्रंथ या किसी महापुरुष की वाणी की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि वो तो झूठ हो सकती है, लेकिन यह त्रिकाल में असत्य नहीं हो सकती।
इस विधि से आप खुद या अन्य कोई भी इंसान स्वयं ईश्वर/परमात्मा बन सकता है।ऐसे इंसान के अलावा ब्रह्मांड में कही भी आकाश-पाताल ऐसे भगवान/परमात्मा/गॉड की खोज करना सिर्फ आपकी अज्ञानता/अंधश्रद्धा/प्रपंच/बकवास ही होगा। इसमे किसी से पूछने की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि यह मैं डंके की चोट कह रहा हूँ।
अगर इसके अलावा ब्रह्माण्ड में कोई शक्ति है तो वह पंचभौतिक प्रकृति है जो अपने गुणधर्मो से स्वतः अनादिकाल से संचालित है।अगर आप इसके गुणधर्मो को समझकर इनके अनुसार चलना सिख गए तो यह आपकी सहायक हो जाती है और अगर विपरीत चले तो यहां क्षमा की भी कोई गुंजाइस नहीं है।
आप मंदिर में जाओगे तो मूर्ति के रूप में पत्थर मिलेगा,कही और जाओगे तो कोई अन्य मूर्ति या किताब या वही पत्थर की समाधि..... मिलेगी जहाँ आपको कुछ नहीं मिलेगा धक्के के सिवाय।
दुर्गुणमुक्त होकर पांचो इन्द्रियों सहित मन की निर्विकार फिर निर्विचार अवस्था में खुद के भीतर चले गए तो ध्यान-समाधि में आपको जिंदा परमात्मा मिल जाएगा, अर्थात आपका ही जिंदा गॉड स्वरूप प्रकट हो जाएगा जिसको आप अनंत समय से ईश्वर/गॉड/परमात्मा के रूप में कही खोजते आ रहे हैं। इसके साथ भी हर शंकाओ/ग्रन्थियों का प्रत्यक्षीकरण होकर आप जन्म-मरण से खुद ही पार चले जायेंगे। यहां हर तरह के ज्ञान की परिसमाप्ति हो जाएगी और यह मनुष्य जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि होगी।
👏👏👏👏👏
चोर मन का चोर
🙏❣❣🙏 / अध्यात्म
एक संत के घर रात चोर घुसे। घर में कुछ भी न था। सिर्फ एक कंबल था, जो संत ओढ़े लेटा हुआ था। सर्द रात, पूर्णिमा की रात। संत रोने लगा, क्योंकि घर में चोर आएँ और चुराने को कुछ नहीं है, इस पीड़ा से रोने लगा।
उसकी सिसकियां सुन कर चोरों ने पूछा कि भई क्यों रोते हो?
न रहा गया उनसे।
उस संत ने कहा कि आए थे— कभी तो आए, जीवन में पहली दफा तो आए.!!! यह सौभाग्य तुमने दिया.!! मुझ संत को भी यह मौका दिया.!! लोग संतों के यहां चोरी करने नहीं जाते, सम्राटों के यहां जाते हैं। तुम चोरी करने क्या आए, तुमने मुझे सम्राट बना दिया.!!
क्षण भर को मुझे भी लगा कि अपने घर भी चोर आ सकते हैं।
ऐसा सौभाग्य.!! लेकिन फिर मेरी आंखें आंसुओ से भर गई हैं।
मैं रोका बहुत कि कहीं तुम्हारे काम में बाधा न पड़े।
लेकिन न रुक पाया, सिसकियां निकल गईं, क्योंकि घर में कुछ है नहीं। तुम अगर जरा दो दिन पहले खबर कर देते तो मैं इंतजाम कर रखता। दुबारा जब आओ तो सूचना तो दे देना।
मैं गरीब आदमी हूं। दो—चार दिन का समय होता तो कुछ न कुछ मांग—तूंग कर इकट्ठा कर लेता।
अभी तो यह कंबल भर है मेरे पास, यह तुम ले जाओ। और देखो इनकार मत करना। इनकार करोगे तो मेरे हृदय को बड़ी चोट पहुंचेगी।
चोर तो घबड़ा गए, उनकी कुछ समझ में ही नहीं आया।
ऐसा आदमी उन्हें कभी मिला न था।चोरी तो जिंदगी भर से की थी, मगर आदमी से पहली बार मिलना हुआ था। भीड़— भाड़ बहुत है, आदमी कहां.?! शक्लें हैं आदमी की, आदमी कहां.?!
पहली बार उनकी आंखों में शर्म आई, हया उठी। और पहली बार किसी के सामने नतमस्तक हुए, मना नहीं कर सके।
मना करके इसे क्या दुख देना, कंबल तो ले लिया। लेना भी मुश्किल.!! इस पर कुछ और नहीं है।
कंबल छूटा तो पता चला कि संत निर्वस्त्र है। कंबल ही ओढ़े हुए था, वही एकमात्र वस्त्र था— वही ओढ़नी, वही बिछौना। लेकिन संत ने कहा. तुम मेरी फिकर मत करो, मुझे नग्न रहने की आदत है।
और तुम तीन मील चल कर गांव से आए, सर्द रात, कौन घर से निकलता है। कुत्ते भी दुबके पड़े हैं। तुम चुपचाप ले जाओ और दुबारा जब आओ मुझे खबर कर देना।
चोर तो ऐसे घबड़ा गए कि एकदम निकल कर बाहर हो गए। जब बाहर हो रहे थे तब संत चिल्लाया कि सुनो, कम से कम दरवाजा बंद करो और मुझे धन्यवाद दो।
आदमी अजीब है, चोरों ने सोचा। और ऐसी कड़कदार उसकी आवाज थी कि उन्होंने उसे धन्यवाद दिया, दरवाजा बंद किया और भागे।
फिर संत खिड़की पर खड़े होकर दूर जाते उन चोरों को देखता रहा और उसने एक गीत लिखा— जिस गीत का अर्थ है कि,
"मैं बहुत गरीब हूँ, मेरा वश चलता तो आज पूर्णिमा का चाँद भी आकाश से उतार कर उनको भेंट कर देता। कौन कब किसके द्वार आता है आधी रात।
यह आस्तिक है। इसे ईश्वर में भरोसा नहीं है, लेकिन इसे प्रत्येक व्यक्ति के ईश्वरत्व में भरोसा है। कोई व्यक्ति नहीं है ईश्वर जैसा।
लेकिन सभी व्यक्तियों के भीतर जो धड़क रहा है, जो प्राणों का मंदिर बनाए हुए विराजमान है, जो श्वासें ले रहा है।
उस फैले हुए ईश्वरत्व के सागर में इसकी आस्था है।
फिर चोर पकड़े गए। अदालत में मुकदमा चला। वह कंबल भी पकड़ा गया।
और वह कंबल तो जाना—माना कंबल था। वह उस प्रसिद्ध संत का कंबल था। मजिस्ट्रेट तत्क्षण पहचान गया कि यह उस संत का कंबल है— तो तुम उस गरीब संत के यहां से भी चोरी किए हो।
संत को बुलाया गया।
और मजिस्ट्रेट ने कहा कि अगर संत ने कह दिया कि
यह कंबल मेरा है और तुमने चुराया है, तो फिर हमें और किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है। उस आदमी का एक वक्तव्य, हजार आदमियों के वक्तव्यों से बड़ा है।
फिर जितनी सख्त सजा मैं तुम्हें दे सकता हूँ दूँगा। फिर बाकी तुम्हारी चोरियाँ सिद्ध हों या न हों, मुझे फिकर नहीं है। उस एक आदमी ने अगर कह दिया...।
चोर तो घबड़ा रहे थे, कांप रहे थे, पसीना—पसीना हुए जा रहे थे।
संत अदालत में आया। और संत ने आकर मजिस्ट्रेट से कहा कि नहीं, ये लोग चोर नहीं हैं, ये बड़े भले लोग हैं। मैंने कंबल भेंट किया था और इन्होंने मुझे धन्यवाद दिया था।
और जब धन्यवाद दे दिया, बात खत्म हो गई। मैंने कंबल दिया, इन्होंने धन्यवाद दिया। इतना ही नहीं, ये इतने भले लोग हैं कि जब बाहर निकले तो दरवाजा भी बंद कर गए थे। यह आस्तिकता है।
मजिस्ट्रेट ने तो चोरों को छोड़ दिया। क्योंकि संत ने कहा. इन्हें मत सताओ, ये प्यारे लोग हैं, अच्छे लोग हैं, भले लोग हैं।
संत के पैरों पर गिर पड़े चोर और उन्होंने कहा हमें दीक्षित करो। वे संन्यस्त हुए। और संत बाद में खूब हंसा।
और उसने कहा कि तुम संन्यास में प्रवेश कर सको इसलिए तो कंबल भेंट दिया था।
इसे तुम पचा थोड़े ही सकते थे। इस कंबल में मेरी सारी प्रार्थनाएं बुनी थीं। इस कंबल में मेरे सारे आराधनाओं की कथा थी। यह कंबल नहीं था।
जैसे कबीर कहते हैं झीनी—झीनी बीनी रे चदरिया.!! ऐसे उस संत ने कहा प्रार्थनाओं से बुना था इसे। इसी को ओढ़ कर ध्यान किया था। इसमें मेरी समाधि का रंग था, गंध थी।
तुम इससे बच नहीं सकते थे। यह मुझे पक्का भरोसा था,
कंबल ले आएगा तुमको भी। और तुम आखिर आ गए।
उस दिन रात आए थे, आज दिन आए।
उस दिन चोर की तरह आए थे, आज शिष्य की तरह आए।
मुझे भरोसा था।..............
हरि बोल 🙏🌹
साधना के सात तत्व
The Seven Elements of Sadhana (Spiritual Practice, Meditation Practice), by Swami Vyasanand Baba
1. Worthiness of a Seeker: "A serious seeker has to prepare a fertile ground within his or her inner Self. The prerogative of God-realization and attainment of the vision of the Divine only belongs to the atman (inner Self) or consciousness within the body. However, it is not possible to accomplish this while engrossed in the distractions of the mind and the body. It is only possible by freeing us of these distractions while living in the body. To liberate us from the sensory distractions is not an easy task. However, it can be achieved with the grace of the Satguru (true teacher). For this, a practitioner must be determined, morally upright, and follow the instruction of the guru. Without these, it is impossible to obtain the grace of the guru. The practitioner can only diligently perform sadhana (literally, exertion to attain an objective, meditation, spiritual practice), but only the grace of the guru yields success in the endeavor."
2. The Mantra of an Accomplished Teacher: "Just as high quality seed is the second requirement of success in agriculture, similarly, acquiring a mantra (sacred syllable, sound, word, or phrase that is given my the guru during initiation) from an accomplished teacher is an important component to prepare the practitioner for progress on the spiritual path...
"According to the Saints: 'Until you receive the auspicious mantra from a propitious Sadguru, you cannot change your life and remove all forms of inauspicious providence.' Until you receive spiritual teaching from a Sadguru, you will not be able to escape the grip of inauspicious luck and will not attain contentment and peace. Therefore, you should carefully choose a Sadguru and commit yourself to his service. Through learning a path or method for God-realization, following moral conduct and performing sadhana, you should make this human birth fruitful and auspicious. Maharshi Mehi says: 'Leave all hubris and desire and obtain the mantra from a Sadguru and make progress within -- this is the instruction of an accomplished guru'.
3. Without Essential Information No Meditation (Necessary Knowledge Prior to Meditation Practice): "Among the seven requirements for successful farming, the third one is the proper knowledge of farming techniques. Similarly, among the seven phases of meditation practice, the third is: accurate understanding of principles relating to the path of meditation. Just as a farmer who does not have adequate knowledge of all the tools and techniques relating to farming will be at a disadvantage in the success of his agriculture, so also, a practitioner who does not have proper understanding of the principles and practices concerning meditation will have difficulty realizing all the desired benefits. Therefore, a practitioner should seek to understand the essentials and fundamentals before treading the path of meditation."
"Deep attachment will leave a practitioner incapable of focusing or concentrating during meditation. Can a person deafened by his or her ego hear the inner celestial sounds? How will one who is always looking to be honored be able to honor others? The one who is looking for honor and titles and respect cannot accomplish samadhi. Can one who performs wrongful acts be able to concentrate on the pure image of the Divine? Can one who desires sensory pleasures yearn for God’s love? Can someone who holds animosity for others be able to tread the pure path leading to inner Divine experience? If we are caught in the above traps it will not be possible to have genuine divine experiences. Success comes from perseverance, and to those who are able to avoid the above-mentioned obstacles. Therefore, know the particulars of the inner path from an accomplished guru and then begin the path of meditation, otherwise your efforts will be wasted."
4. Resolute Practice: "The fourth among the seven requirements of successful farming is 'hard work.' It is on the basis that a farmer can achieve success even on barren land and reap the benefits of making land fertile. However, in the absence of hard work even fertile land will not yield the desired crops. A lazy farmer suffers poverty due to the resultant lack of prosperity. In a similar manner, of the seven elements of meditation practice, the fourth requirement is hard work. Without this a practitioner cannot continue for even a single step on the path of meditation. On the path of meditation ardent practice holds the key to success."
A. Japa: Recitation of Mantra (Sacred name given by the Guru);
B. Manas Dhyana (Mental Focus on the Form of the Deity);
C. Drishti Yoga (The Yoga of Inner Seeing -- Inner Light Meditation); and,
D. The Yoga of Sound (Inner Sound Meditation):
"The Formless pervades the form. The realm of light is the manifestation of the form of the macro-cosmos (brahmanda). And the Sound is the Formless macrocosm. The practitioner who becomes accomplished in the light realms begins to experience Divine Sound along with various Divine light experiences. However, after the center of Trikuti (the center of Brahma Jyoti) the light form becomes absorbed in the Sound (that is formless) since the form arises out of Formless. According to the natural law anything that is created must return to its source and be dissolved therein."
5. Bhakti: Devotion and Love for God: Among the seven essential steps for successful farming, the fifth is complete dedication to the task. Similarly, for the inner journey to attain the Divine, the fifth step is whole-hearted devotion (Bhakti) and commitment to the practice... Sant Kabir says: 'Without devotion one cannot reach the abode of the (Divine), which is difficult to attain.'"
"Love is that meditation or method that makes the impossible possible. That which is harsh becomes gentle; the enemy becomes friend; the weak become strong; the concealed becomes revealed. Even though it is said that it takes many lifetimes to realize the Divine, if a devotee performs sadhana with true, unwavering devotion, then the Divine will manifest at that moment."
6. The Merits of Past Lives: "...The sixth essential element for success on the path of meditation is acquired good karmas and merits... Without enough resources, and in spite of having all other agricultural means, a farmer is unable to have a successful crop. Similarly, though having met all other basic requirements to tread the path of meditation, a practitioner without favorable past karmas will not have the desired success on the spiritual path. If we continue to create good karmas, then the course of our life will shift and will lead to spiritual progress. Individuals, even if they do not believe in reincarnation or the karmas of past lives -- if they carefully tread their path in this life and devote themselves to performing good actions -- their deeds will become a source of future progress, and help them move forward on the inward journey of the soul."
7. The Will of God: Divine Grace: "No matter how much humans may desire, without the Divine Will (Mauj), the goal is not achieved. Despite one’s worthiness, association with an accomplished guru, knowledge of the path, resolute (meditation) practice, devotion, favorable accumulated karmas, a devotee cannot succeed without the Will of God."
"To surrender ourselves and live according to the Will of God is not an easy task. Such a mindset is realized in the final stages of meditation practice. This is the climax of meditation. We will have to accomplish the other six stages of sadhana first in order to completely surrender ourselves to the Divine Will. The result: one day, the seventh component of the inner journey of the soul will be realized. To sum up: if a practitioner does not practice these seven stages of the inward journey, then he will not be able to see even the initial signs of the Divine. Therefore, practitioners should follow the seven elements of sadhana as elaborated above according to their individual capacity."
-- Swami Vyasanand, The Inward Journey of the Soul
Swami Vyasanand Ji Maharaj — Kindle e-book (and via Kindle APP): The Inward Journey of the Soul: Chal Hansa Nij Desh, translated into English by Professor Veena Howard: https://www.amazon.com/Inward-Journey-Soul-Chal-Hansa-ebook/dp/B00UP662ZQ/ref=sr_1_1?s=digital-text&ie=UTF8&qid=1426357226&sr=1-1
Swami Vyasanand Ji Maharaj — Kindle e-book (and via Kindle APP): The Inward Journey of the Soul: Chal Hansa Nij Desh, translated into English by Professor Veena Howard: Amazon INDIA: https://www.amazon.in/Inward-Journey-Soul-Chal-Hansa-ebook/dp/B00UP662ZQ/ref=sr_1_1?s=digital-text&ie=UTF8&qid=1426360159&sr=1-1
Swami Vyasanand Ji Maharaj — Hard Copies of Books, Hindi and English Editions, The Inward Journey of the Soul (Chala Hansa Nij Desh), Maharshi Mehi, etc..: http://www.mehisant.com/frames_pro.php?cat=Books
Swami Vyasanand Ji Maharaj — Official Website:
http://www.mehisant.com
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