Tuesday, September 28, 2021

परम पुरुष हुज़ूर डॉ सत्संगी साहब के बचन

 *परम पूज्य हुज़ूर प्रो. प्रेम सरन सतसंगी साहब द्वारा*


*सेन्ट्रल सतसंग हॉल, दयालबाग़, आगरा में*


*प्रीतिभोज के दौरान फ़रमाया गया अमृत बचन*


( *31 अगस्त, 2021 को शाम 7.30 बजे राजाबरारी से वापस आने के तत्काल बाद* )


 राधास्वामी,


          मेरे जूते पूर्णतः सुरक्षित हैं। फिर भी सतसंग शिष्टाचार के अनुपालन में, मैं जूते उतारने के पश्चात् ही सेंट्रल सतसंग हॉल में प्रवेश करता हूँ। *राजाबरारी एस्टेट में, इसका अपवाद रहा क्योंकि मैं इस प्रकार की किसी विशेष कुर्सी पर नहीं बैठा था बल्कि साधारण कुर्सी पर विराजमान हुआ जिससे कि मैं एडवाइज़री कमेटी ऑन एजुकेशन (ACE)  जो कि एक ग़ैर वैधानिक संस्था है, उसके चेयरमैन के रूप में, समस्या एवं इसका आँकलन समझ सकूँ।* दयालबाग़ में एग्रीकल्चर फ़ील्ड्स में कार्य करते हुए तथा पूरे भारत में और यह ही नहीं विदेश में भी ‘धर्मार्थ एवं परोपकारी कार्यों’ (Religious and Charitable actions) के संबंध में, चाहे व्यक्तिगत उपस्थिति अथवा वर्चुअल रियेल्टी मोड में हो, मैं पूरी तरह से सुरक्षित महसूस करता हूँ। राधास्वामी सेन्ट्रल सतंसग दयालबाग़ में 106 वर्षों से जूते उतार कर आने की परम्परा रही है जिसका मैंने अनुपालन किया। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि अभी हम राधास्वामी संवत 204 में हैं, 5 फ़रवरी 2022 को बसंत पंचमी के दिन दयालबाग़ 107 वर्ष पूरे करेगा और दयालबाग़ सतसंग सभा तथा दयालबाग़ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट दोनों संस्थाओं की स्थापना को चिह्नांकित करेगा (प्रारम्भिक अवस्था में डी.ई.आई. प्राइमरी स्कूल के रूप में प्रारम्भ हुआ था): पावन कुआँ जैसा कि हम सभी जानते हैं- यह हमारे विनम्र उद्भव का प्रतीक है और परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज के अवतरण से जुड़ा है जो जीवों के स्थाई परमानन्द के स्त्रोत का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके सभी उत्ताराधिकारी ‘‘वक़्त संत सतगुरु’’ के रूप में उनके निजधाम के नीचे के क्षेत्रों से क्रमानुसार आए जैसे अगमलोक, अलखलोक, अनामीलोक। मैक्रोकॉस्म (Macrocosm) में science of consciousness,  परम सत्य के स्तर तक आधुनिक वैज्ञानिक पहुँच सकते हैं जो कि अनामीलोक की परिधि में आते हैं और अनामी पुरुष इसको नियंत्रित करते हैं, ऐसा आप कह सकते हैं। राजाबरारी की घटनाओं का संक्षिप्त विवरण देते हुए यह बताना चाहता हूँ कि 14 नवम्बर, 1919 को परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज ने राजाबरारी एस्टेट को ख़रीदा था और वर्ष 1924 में मौखिक रूप से इसे राधास्वामी सतसंग सभा को भेंट कर दिया तथा 28 जुलाई,1927 को उपहार विलेख (Gift Deed) के माध्यम से राधास्वामी सतसंग सभा को इस आशय से उपहार स्वरूप दिया कि राजाबरारी में इसका मुख्यालय आदिवासियों के कल्याण हेतु स्थापित हो। और इस मुख्यालय की स्थापना उन्होंने स्वयं की और इस पावन दिवस पर अपने उच्च शिक्षा प्राप्त व दक्ष शिष्य की मदद से नींव डाली जो आगे चलकर नामांकन (Nomination)  द्वारा परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज के रूप में उनके उत्तराधिकारी बने जिन्होंने राधास्वामी सतसंग सभा द्वारा जयघोष प्रक्रिया (Acclamation Process) में भी इसका आह्वान कर नामांकन का अनुमोदन प्राप्त किया। यह परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज व परम गुरु के रूप में उनके वर्तमान समय तक के उत्तराधिकारियों का बहुत ही बुद्धिमानी पूर्ण निर्णय (wise decision)  रहा है। परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज समस्त सृष्टि (Macrocosm) के परम-पिता-प्रभु का प्रत्यक्ष अवतार हैं, जो स्थाई परमानन्द के स्त्रोत हैं। तो यह 'Participative decision-making'  (अर्थात् सहभागिता के साथ निर्णय) लेने का महत्वपूर्ण अवसर था।


विनाशकारी आन्दोलन (distructive agitation) की शुरुआत ऐसे व्यक्ति द्वारा की गई जो देवास का रहने वाला है और उसका राजाबरारी एस्टेट से, जिसमें स्थानीय भाषा के 10 ढाना या छोटे गाँव हैं, से कोई संबंध नहीं है। वह आदिवासियों के दूसरे क्षेत्र में रहता है, तो उससे हमारा कोई लेना देना नहीं है। वह हमारे लिए बाहरी व्यक्ति है। किन्तु स्थानीय पुलिस की मिलीभगत से जो Builders Lobby (भवन निर्माताओं के विनाशकारी समर्थकों के वर्ग) से प्रभावित है जो इन्हें बहुमंज़िलीय इमारतों, हाइवे/एक्सप्रेसवे निर्माण के लिए विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देते हैं, जिसकी कोई आवश्यकता नहीं है, और यह निश्चय ही लक्षित लाभार्थियों (आदिवासी समुदाय) के हित व शांति को बनाए रखने और साथ में इनके प्रायोजक MPRSA (मध्य प्रदेश राधास्वामी सतसंग एसोसिएशन) को उनकी धार्मिक व धर्मार्थ दोनों प्रकार की अहं ज़िम्मेदारियों के दूषण-रहित निर्वहन में बाधक होगी। जैसा कि आप जानते हैं हम यहाँ पर सादा जीवन निर्वाह करते हैं, चाहे हम दयालबाग़ में काम करें या इससे जुड़ी राधास्वामी सतसंग सभा की ब्रांचों में बाहर काम करें या फिर अन्य ऐसे एसोसिएशंस में जो राधास्वामी सतसंग सभा के आदर्शों का अनुसरण करते हैं, जो हमारे क्षेत्र में नहीं आते हैं, जैसे कि कॉलनीज़-राधा नगर, दयालनगर, आगरा सिटी, हमारी ब्रांचेज़ एवं सेंटर्स; परन्तु वे समान पैटर्न पर कार्यरत हैं। वहाँ पर परस्पर एक चर्चा हुई थी जिसमें मैंने भाग नहीं लिया था किन्तु वहाँ के पदाधिकारी उपस्थित थे जिनमें जस्टिस गुलाब सिंह सोलंकी व वरिष्ठ पदाधिकारी श्रीमती माला श्रीवास्तव तथा एक अन्य युवक श्री गौरव श्रीवास्तव सम्मिलित हैं; जिन्होंने बहुत ही सक्रिय योगदान दिया है। हमें इस प्रक्रिया में श्री गुलाब सिंह सोलंकी व श्रीमती माला श्रीवास्तव के अतिरिक्त वह सहायता प्रदान करते हैं। उनके माता-पिता बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (BHU-IIT) में हमारे पड़ोसी थे। वर्तमान में मैं 3/23 में रहता हूँ, जबकि अपनी युवा अवस्था में वह (प्रे.ब. माला श्रीवास्तव) हमारे घर के (diagonally opposite)  विपरीत तिरछी दिशा के घर में रहती थीं। मैं उनके परिवार को बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में अपने जन्म से जानता हूँ, जहाँ बनारस के ब्रांच सेक्रेटरी बहुत विख्यात एडवोकेट प्रे.भा. शंकर सरन लाल जी थे। उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जज के पद के लिए प्रस्ताव दिया था जिसे उन्होंने मना कर दिया था। उन्होंने अपनी साधारण फ़ीस के द्वारा भी अधिक फलता-फूलता (सम्पन्न) व्यवसाय किया और काफ़ी प्रसिद्धि प्राप्त की तथा हाई कोर्ट के जज की अपेक्षा कहीं ज़्यादा कमाया। उनके brother in law प्रे.भा. एस.सी.श्रीवास्तव हाई कोर्ट में प्रसिद्धि प्राप्त सीनियर एडवोकेट के पद पर उन्नत हुए। वह अवैतनिक कानूनी सलाहकार के रूप में निरन्तर हमारी सहायता कर रहे हैं। डायरेक्टर डी.ई.आई. भी हमारे सहायक रहे हैं। तो हमारे साथ सभी आवश्यक (अपेक्षित) वैधानिक अधिकारी थे जिनसे मध्य प्रदेश रीजनल सतसंग एसोसिएशन (MPRSA) के अन्तर्गत गाँवों की उचित मांगों को पूरा किया जा सके।


 किन्तु यह संकट ‘बिल्डर्स लॉबी’ के परिणाम स्वरूप उत्पन्न हुआ है। जो कुछ संवेदनशील वरिष्ठ अधिकारियों के बीच बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार बढ़ा कर उनका सहारा लेते हैं जिससे कि वे अनुपयुक्त प्रकरणों में उच्च स्तर पर उनके पक्ष में निर्णय लें। इसके बावजूद, दयालबाग़ की स्थापना से पूर्व भी हमने यह मामला भारत के सुप्रीम कोर्ट में उठाया था जो ब्रिटिश कोलोनियल रूल में लंदन में स्थित Privy Council के नाम से जाना जाता था। इस प्रकार किसी प्रकरण की Legality इस बात पर निर्भर थी कि House of Commons तथा House of Lords of the British Empire ने उसे किस प्रकार निस्तारित किया है। फिर भी हम इसके इतिहास से पूर्णतया परिचित हैं; मैं जो आपको बताना चाहता हूँ वह यह है कि इन्होंने राजाबरारी एस्टेट जो हमारी निजी सम्पत्ति है, व हमारे द्वारा शासित (administered) है, उसके तीन निवासियों के विरुद्ध हाल ही में FIR  दर्ज की है। वह व्यक्ति जो उन्हें उत्तेजित कर रहा है या स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों की सहायता से हिंसा जैसे घृणित कार्य द्वारा आदिवासी जनता को प्रभावित कर रहा है, (वर्तमान में कलेक्टर को छोड़कर अन्य प्रशासनिक अधिकारी अनुसूचित जाति या जनजाति के हैं)। किन्तु अकेले (व्यक्तिगत रूप से) वह जानता है कि उसके पास बहुत सारी अनधिकृत शक्ति (Unauthorised Power) है। यद्यपि कलेक्टर ने श्रीमती माला श्रीवास्तव के अधीन कार्य किया है, और उन्हें यह विश्वास दिलाया था कि उनकी तरफ़ से न्यायसंगत पूर्ण निर्णय लिया जाएगा, किन्तु वह अपने भ्रष्ट जूनियर्स द्वारा पत्रावली पर भ्रष्ट टिप्पणियाँ लिखने के कारण ऐसा न कर सके। यह भली प्रकार जानते हुए भी कि अनधिकृत ढंग से घुसने वाला यह व्यक्ति हमारे एक कार्यकर्त्ता को मारना चाहता था और इस बुरी नीयत से उसके घर पर उसने हमला भी किया किन्तु परम पिता की मेहर से वह वहाँ से बच निकले और उसने MPRSA द्वारा नियुक्त अन्य कार्यकर्त्ता का घर इसलिए जला दिया कि उसने राजाबरारी में आदिवासियों की कल्याण योजना को लागू किया था। उसके माता पिता अपनी जान बचाने हेतु कहीं छिप गए। अब उनका पता चल गया है। हम यह बताना नहीं चाहते कि वे अब कहाँ हैं। हमने यह मामला मध्यप्रदेश में जबलपुर हाई कोर्ट न्यायाधिकरण तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में जो इससे पूर्णतया परिचित हैं: यह मुद्दा हमारे दयालबाग़ मुख्यालय में स्फ़ीहा के अध्यक्ष के माध्यम से उठाया गया था, कुछ वर्ष पूर्व, जब उन्होंने हमारी बस को जला दिया था और हमारी ज़मीन का कुछ भाग हथिया कर उसे शहर की तरह बनाने का प्रयत्न किया था, जो कि बाहरी तौर पर आराम व विलासिता  (comfort  व luxury) को बढ़ावा देने का था; किन्तु वास्तव में यह वहाँ का स्वच्छ वातावरण; कृषि व सिंचाई के कार्यों को सुरक्षित ढंग से करने के लिए, यहाँ तक कि कोरोना -19 महामारी संकट व उसके विभिन्न चरणों, वर्तमान में तीसरे चरण/लहर की स्थिति में भी कार्य करने के अनुकूल था, के पतन के समान था; किन्तु हमारा ही एक ऐसा संगठन है जहाँ इस दौरान सभी गतिविधियाँ पूरी तरह क्रियान्वित रहीं जिसमें यह पूरा भरोसा था कि कोई भी इस प्राकृतिक आपदा का शिकार न हो अथवा किसी की भी जान न जाए। बड़ी उम्र में निरन्तर शरीर का अधःपतन (degeneration) होने के कारण, सामान्यतया 70-75 वर्ष से अधिक आयु के लोग जिन्होंने पूरी ज़िन्दगी जी ली है और कर्मों का भार चुका दिया है, इसके उपरान्त काल व माया के देश से बाहर जाने में सफल हुए। ऐसा कोई नहीं था जो उपयुक्त मेडिकल उपचार न मिलने के कारण इस प्राकृतिक आपदा का शिकार हुआ हो। हमारे AIIMS (All India Institute of Medical Science) के साथ बहुत अच्छे सम्बंध हैं जहाँ मैं उच्च स्तर के आधिकारियों को प्रत्यक्ष रूप से नहीं जानता था किन्तु IIT, Delhi के मेरे सहयोगियों का AIIMS के अपने समकक्ष के अधिकारियों के साथ घनिष्ठ सम्बंध था। उदाहरण के लिए एक प्रो. गुहा, जो Bio-Medical Engineering  के क्षेत्र के थे जिनके पिता व्यवसाय से प्रसिद्ध सर्जन थे। तो वह भी USAID Technical Co-operation Mission  के अन्तर्गत Authorised Modern Medicine and Surgery विशेषज्ञ के रूप में Bio-Medical Engineering की Practice करना चाहते थे।


          मुझे भी अवसर दिया गया था कि Ph.D करने के लिए इस स्कॉलरशिप (छात्रवृत्ति) को निरन्तर बनाए रखूँ; क्योंकि मुझे M.S. Degree में उनकी तरफ़ से उच्चतम Grade point average 4.00 में से 4.00 मिले थे। फिर भी जब उन्होंने यह प्रस्ताव रखा तो मैंने उन्हें बताया कि मैं Carnegie Melon University जाना ज़्यादा पसंद करूँगा जहाँ रुड़की यूनीवर्सिटी के एक विशेषज्ञ ने उन्हें Electrical Mechanies/Power Systems  में प्रशिक्षित किया था, जिससे कि वह भारतीय रेलवे सेवा की परीक्षा, जो इंजीनियर्स के लिए UPSC (Union Public Service Commission) द्वारा आयोजित की जाती है और इंजीनियर्स की नियुक्ति के लिए प्रतिष्ठित पद जाना जाता है, में प्रतिभागी होने के योग्य बनें।


          बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी उत्तरी भारत में इलेक्ट्रिकल तथा मैकेनिकल इंजीनियरिंग (Heavy Engineering, जैसा कि Power System, Large Electrical Machines, New & Renewable Energy Resources)  तथा अन्य संबद्ध क्षेत्र में एक अग्रणीय संस्थान था। उस समय हम मानते थे कि Semi Conducter (अर्द्ध चालक), व संबद्ध क्षेत्र जैसे भौतिक विभाग, रसासन विज्ञान, तथा जीवविज्ञान आदि के क्षेत्र में आते हैं और इंजीनियरिंग विभाग से नीचे स्तर के हैं किन्तु IIT में यह अभियांत्रिकी विभाग के समान ऊँचे स्तर के ही माने जाते थे। चूँकि यह यांत्रिक नियुक्ति के आधुनिक नये उभरते क्षेत्र थे अतः आगे चलकर BHU को भी BHU-IIT का स्तर प्राप्त हुआ।

*(क्रमशः)*-1


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