**राधास्वामी! 13-09-2021-आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
अरी हे सहेली प्यारी ,
घट में शब्द जगाओ ,
करे निवारा ॥ टेक ॥
सतगुरु खोज पड़ो उन चरना ।
सुन सुन बचन चित्त में धरना ।
वे तोहि लेहिं सुधारा ॥१ ॥
शब्द भेद गुरु देहिं बताई ।
धुन में मन और सुरत लगाई ।
सुन अनहद झनकारा ॥२ ॥
गुरु चरनन में प्रीति बढ़ाना ।
उमँग सहित नित शब्द कमाना ।
घट में होत उजारा ॥३।।
मन माया के बिघन हटाओ।
गुरु बल सूरत अधर चढाओ।
निरखो अजब बहारा।।४।।
राधास्वामी सूरत लीन सिंगारी।
तब भौसागर पार सिधारी।
अस हुआ सहज उधारा।।५।।
(प्रेमबानी-3-शब्द-13-पृ.सं.163,164)*l*
*राधास्वामी! 13-09-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
बिरह अनुराग उठा हिये भारी ।
सतगुरु दरशन करूँ सुधारी ॥१ ॥
बाल अवस्था दरशन पाये ।
मेहर हुई गुरु चरन लगाये ॥२ ॥
मैं अजान गति मति नहिं जानी
दया हुई तब कुछ पहिचानी ॥३ ॥
चरन कँवल गुरु हिय बिच धारे ।
करम भरम संशय सब टारे ॥४ ॥
दरशन कर हिये प्रीति बढ़ाई ।
बचन सुनत परतीत सवाई ॥५ ॥
बिन सतगुरु सब वार रहाये ।
शब्द बिना कोई पार न जाये ॥६ ॥
मेरा भाग जगा अति भारा ।
सतगुरु ने मोहि आप सँवारा ॥७ ॥
परम पुरुष राधास्वामी दयाला ।
सहज मिले और किया निहाला ॥८ ॥
गुरु परताप सुरत चढ़ आई ।
मगन हुआ मन धुन सुन पाई ॥९॥
जोत निरंजन रहे अलगाई ।
त्रि कुटी महल गुरु गैल लखाई ॥१० ॥
अक्षर पुरुष किया अति प्यारा ।
रंकार धुन सुनी झनकारा ॥११ ॥
मानसरोवर निरमल धारा ।
कर अस्नान हुआ अब न्यारा ॥१२ ॥
भँवरगुफा चढ़ सतपुर धाया ।
सत्तनाम का दरशन पाया ॥१३ ॥
हुए प्रसन्न सतपुरुष दयाला ।
अलख अगम का लखा उजाला ॥१४ ।।
राधास्वामी दरस मेहर से पाया ।
उमँग उमँग कर आरत गाया ॥१५ ॥
शोभा राधास्वामी क्योंकर गाऊँ ।
बार बार चरनन बलि जाऊँ ॥१६ ॥
यह निज धाम पायगा सोई ।
जापर दया राधास्वामी की होई ॥१७ ॥
(प्रेमबानी-1-शब्द-18-पृ.सं.157,158,159)
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