Sunday, September 12, 2021

सतगुरू सेवा, महा हितकारी* / *जन्म जन्म के कर्म कटा री*

 *एक बार सतगुरु(बाबा सावन सिंगजी)बाग में टहल रहे थे, सेवक पीछे पीछे चल रहे थे सतगुरु अचानक रुके ओर एक सेवक को इशारा कर के  बुलाया* 

*वह एक अमीर व्यापारी का बेटा था सतगुरू इशारा कर के बोले बेटा यहाँ काफी काई जम गई है इसे साफ कर देना*


*सेवक ने उस समय तो ठीक है जी, कह दिया, पर बाद में अपने गुरु भाइयों से कहने लगा कि मैंने कभी सड़क साफ करने का काम नहीं किया, ये सेवा मुझ से नहीं होगी, मैं पिता जी से कह कर कुछ मज़दूर बुलवा लेता हूँ, वे ही यह सफाई कर लेंगे*


 *साथ खड़े एक सेवादार ने कहा, भाई जरा सोचो, सतगुरू ने हम सब में से तुझे ही क्यों चुना और यह तुझे ही ये सेवा क्यों बख्शी है?* 

*जरूर इसमें कोई गहरा राज़ है तू ध्यान में बैठ कर सतगुरू से ही पूछ ले*


*वह सेवक थोड़ी दूर जा कर एकांत में भजन में बैठ गया, कुछ देर बाद उसने देखा कि वो एक सत्तर बरस का बूढ़ा आदमी है वो सेवा कर रहा है उसके हाथों में झाड़ू है और वो सड़क की सफाई कर रहा है सामने सतगुरु खड़े हैं पास में बहुत सारे पर्चों का ढेर लगा हुआ है और सतगुरू एक-एक करके पर्चे फाड़ते जा रहे हैं*

 

*सेवक की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे उसने फौरन भजन से उठकर हाथों में झाड़ू और पानी की बाल्टी पकड़ ली और सड़क पे जमी हुई काई जोर शोर से साफ करने लगा*

 

*जब बाकी सेवादारों ने उसे काई साफ करने की सेवा करते देखा तो बड़ी हैरानी से पूछा अरे भाई अभी तो तूँ इन्कार कर रहा था , अचानक क्या हुआ?* 

 

*उस सेवादार ने रोते हुए बतलाया, मैंने भजन करते हुए अंतर में अपना अगला जन्म देखा सत्तर साल की उमर है और मेरे हाथों में झाड़ू है, मैं सड़क पर जमी हुई काई साफ कर रहा हूँ और मेरे सतगुरू अपने हाथों से मेरे बुरे और खोटे कर्मों का एक-एक पर्चा फाड़ रहे हैं*

 *सतगुरू ने अपनी दया से केवल एक घंटे की सेवा बख़्श के मेरे सत्तर वर्षों के कर्म फल काट दिये और मैं अभागा इतनी ऊँची सेवा को बहुत तुच्छ और मामूली समझ रहा था*

 

*हमारे अंतर के रूहानी मार्ग पर जमी हुई काई, हमारे अपने ही पिछले जन्मों के कर्मों का कमाया हुआ मैल है जिसकी वजह से हमारे अन्दर अन्धेरा है* 

*विकारों के इस मैल की सफाई से ही हमारा मन  निर्मल होगा, अभी तो हम जब भी प्रयास करते हैं, बार-बार फिसल कर नीचे  गिर जाते हैं*


 *गुरू घर की कोई भी सेवा बड़ी या छोटी नहीं होती छोटी और ओछी हमारी अपनी सोच होती है*

*जब जब सेवा का हुक्म आये तो इसे अपने सतगुरू की दया मेहर समझना, ज़रूर सतगुरू ने हमारे कर्मों की मैल साफ करनी होगी, बड़ी खुशी से जाना  पूरी लगन और प्यार से सँगत की सेवा करना*


*सतगुरू सेवा, महा हितकारी*

*जन्म जन्म के कर्म कटा री*


*राधा स्वामी 

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