**राधास्वामी! / 26-09-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ :-
बिरह अनुराग रहा घट छाई ।
उमँग उमँग गुरु सन्मुख आई ॥१॥
दरशन करत देह सुध भूली ।
बचन सुनत पाया फल मूली ॥२॥
भाव भक्ति की धारा उमँगी ।
फैल रही चहुँ दिस अँग अंगी ॥३॥
गुरु परतीत बढ़ी घट अंतर ।
प्रेम सहित सुनियाँ गुरु मंतर ॥४॥
कस कस भाग सराहूँ अपना । मेहर हुई जग लागा सुपना ॥ ५॥
भोग बिलास कछू नहिं भावें ।
मन तरंग अब नहिं भरमावें ॥६॥
छिन छिन दरशन गुरु का चाहूँ ।
मनमोहन छबि पर बलि जाऊँ ॥७॥ काल करम बहु बिघन लगाये ।
सतसँग से मोहि दूर रखाये ॥८॥
तरसूँ और तड़पूँ दिन राती ।
जतन मोर कोइ पेश न जाती ॥९॥
बारंबार बीनती धारी।
हे सतगुरु मोहि लेउ सम्हारी ॥१०॥
दूर रहूँ तुम चरन निहारूँ।
रूप अनूप हिये बिच धारूँ ॥११॥
मन और सुरत शब्द रस पावें ।
चरन सरन में सहज समावें ॥१२॥
काल बिघन सब कीजे दूरी ।
जब तब पाऊँ दरश हजूरी ॥१३॥
यह अरज़ी मेरी सुन लीजे ।
दृढ़ परतीत चरन में दीजे ॥१४॥
हरख हरख यह आरत करता । राधास्वामी चरन हिये बिच धरता ॥
१५॥ (प्रेमबानी-1-शब्द-26-पृ.सं.171,172)**
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