Tuesday, September 28, 2021

जैसी रब की मर्जी

प्रस्तुति  - राजेंद्र प्रसाद सिन्हा / उषा रानी सिन्हा 


 कन्धे पर कपड़े का थान लादे और हाट-बाजार जाने की तैयारी करते हुए भक्त कबीर जी को माता लोई जी ने सम्बोधन करते हुए कहा- भगत जी! आज घर में खाने को कुछ भी नहीं है।

आटा, नमक, दाल, चावल, गुड़ और शक्कर सब खत्म हो गए हैं।

शाम को बाजार से आते हुए घर के लिए राशन का सामान लेते आइएगा।


भक्त कबीर जी ने उत्तर दिया- देखता हूँ लोई जी।

अगर कोई अच्छा मूल्य मिला,

तो निश्चय ही घर में आज धन-धान्य आ जायेगा।


माता लोई जी- सांई जी! अगर अच्छी कीमत ना भी मिले,

तब भी इस बुने हुए थान को बेचकर कुछ राशन तो ले आना।

घर के बड़े-बूढ़े तो भूख बर्दाश्त कर लेंगे।

पर कमाल ओर कमाली अभी छोटे हैं,

उनके लिए तो कुछ ले ही आना।


जैसी मेरे राम की इच्छा।

ऐसा कहकर भक्त कबीर जी हाट-बाजार को चले गए।


बाजार में उन्हें किसी ने पुकारा- वाह सांई! कपड़ा तो बड़ा अच्छा बुना है और ठोक भी अच्छी लगाई है।

तेरा परिवार बसता रहे।

ये फकीर ठंड में कांप-कांप कर मर जाएगा।

दया के घर में आ और रब के नाम पर दो चादरे का कपड़ा इस फकीर की झोली में डाल दे।


भक्त कबीर जी- दो चादरे में कितना कपड़ा लगेगा फकीर जी?


फकीर ने जितना कपड़ा मांगा,

इतेफाक से भक्त कबीर जी के थान में कुल कपड़ा उतना ही था।

और भक्त कबीर जी ने पूरा थान उस फकीर को दान कर दिया।


दान करने के बाद जब भक्त कबीर जी घर लौटने लगे तो उनके सामने अपनी माँ नीमा, वृद्ध पिता नीरू, छोटे बच्चे कमाल और कमाली के भूखे चेहरे नजर आने लगे।

फिर लोई जी की कही बात,

कि घर में खाने की सब सामग्री खत्म है।

दाम कम भी मिले तो भी कमाल और कमाली के लिए तो कुछ ले आना।


अब दाम तो क्या,

थान भी दान जा चुका था।

भक्त कबीर जी गंगा तट पर आ गए।


जैसी मेरे राम की इच्छा।

जब सारी सृष्टि की सार खुद करता है,

तो अब मेरे परिवार की सार भी वो ही करेगा।

और फिर भक्त कबीर जी अपने राम की बन्दगी में खो गए।


अब भगवान कहां रुकने वाले थे।

भक्त कबीर जी ने सारे परिवार की जिम्मेवारी अब उनके सुपुर्द जो कर दी थी।


अब भगवान जी ने भक्त कबीर जी की झोंपड़ी का दरवाजा खटखटाया।


माता लोई जी ने पूछा- कौन है?


कबीर का घर यही है ना?

भगवान जी ने पूछा।


माता लोई जी- हांजी! लेकिन आप कौन?


भगवान जी ने कहा- सेवक की क्या पहचान होती है भगतानी?

जैसे कबीर राम का सेवक,

वैसे ही मैं कबीर का सेवक।

ये राशन का सामान रखवा लो।


माता लोई जी ने दरवाजा पूरा खोल दिया।

फिर इतना राशन घर में उतरना शुरू हुआ,

कि घर के जीवों की घर में रहने की जगह ही कम पड़ गई।

इतना सामान! कबीर जी ने भेजा है?

मुझे नहीं लगता।

माता लोई जी ने पूछा।


भगवान जी ने कहा- हाँ भगतानी! आज कबीर का थान सच्ची सरकार ने खरीदा है।

जो कबीर का सामर्थ्य था उसने भुगता दिया।

और अब जो मेरी सरकार का सामर्थ्य है वो चुकता कर रही है।

जगह और बना।

सब कुछ आने वाला है भगत जी के घर में।


शाम ढलने लगी थी और रात का अंधेरा अपने पांव पसारने लगा था।


समान रखवाते-रखवाते लोई जी थक चुकी थीं।

नीरू ओर नीमा घर में अमीरी आते देख खुश थे।

कमाल ओर कमाली कभी बोरे से शक्कर निकाल कर खाते और कभी गुड़।

कभी मेवे देख कर मन ललचाते और झोली भर-भर कर मेवे लेकर बैठ जाते।

उनके बालमन अभी तक तृप्त नहीं हुए थे।


भक्त कबीर जी अभी तक घर नहीं आये थे,

पर सामान आना लगातार जारी था।


आखिर लोई जी ने हाथ जोड़ कर कहा- सेवक जी! अब बाकी का सामान कबीर जी के आने के बाद ही आप ले आना।

हमें उन्हें ढूंढ़ने जाना है क्योंकी वो अभी तक घर नहीं आए हैं।


भगवान जी बोले- वो तो गंगा किनारे भजन-सिमरन कर रहे हैं।


फिर नीरू और नीमा,

लोई जी, कमाल ओर कमाली को लेकर गंगा किनारे आ गए।


उन्होंने कबीर जी को समाधि से उठाया।


सब परिवार वालों को सामने देखकर कबीर जी सोचने लगे,

जरूर ये भूख से बेहाल होकर मुझे ढूंढ़ रहे हैं।


इससे पहले कि भक्त कबीर जी कुछ बोलते,

उनकी माँ नीमा जी बोल पड़ीं- कुछ पैसे बचा लेने थे।

अगर थान अच्छे भाव बिक गया था,

तो सारा सामान तूने आज ही खरीद कर घर भेजना था क्या?


भक्त कबीर जी कुछ पल के लिए विस्मित हुए।

फिर माता-पिता, लोई जी और बच्चों के खिलते चेहरे देखकर उन्हें एहसास हो गया,

कि जरूर मेरे राम ने कोई खेल कर दिया है।


लोई जी ने शिकायत की- अच्छी सरकार को आपने थान बेचा और वो तो समान घर मे फैंकने से रुकता ही नहीं था।

पता नही कितने वर्षों तक का राशन दे गया।

उससे मिन्नत कर के रुकवाया- बस कर! बाकी कबीर जी के आने के बाद उनसे पूछ कर कहीं रखवाएँगे।


भक्त कबीर जी हँसने लगे और बोले- लोई जी! वो सरकार है ही ऐसी।

जब देना शुरू करती है तो सब लेने वाले थक जाते हैं।

उसकी बख्शीश कभी भी खत्म नहीं होती।

उस सच्ची सरकार की तरह, सदा कायम रहती है।

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