**राधास्वामी! 14-09-2021-आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
अरी रे सहेली प्यारी ,
चेत करो सतसंगा ,
छूटे कलमल दागा।।टेक।।
बिन सतसंग भरम नहिं भागे ।
शब्द गुरू में प्रीति न जागे ।
छूटे नहिं मति ' कागा ॥१ ॥
याते गुरु उपदेश सम्हारो ।
प्रीति प्रतीति चरन में धारो ।
तब सतसँग रँग लागा ॥२ ॥
ध्यान धरत मन होत अनंदा ।
शब्द सुनत कटते जम फंदा ।
भाग उदय होय जागा।।३।।
जग ब्योहार अब नेक न भावे।
गुरु चरनन मन छिन छिन धावे।
दिन दिन बढत अनुरागा।।४।।
राधास्वामी मेहर से लिया अपनाई। निज चरनन में सुरत लगाई।
काल देश अब त्यागा।।५।।
(प्रेमबानी-3-शब्द-14-पृ.सं.164,165)**
: **राधास्वामी! 14-09-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
बिरह अनुराग उठा हिये भारी ।
सतगुरु दरशन करूँ सुधारी ॥१ ॥
बाल अवस्था दरशन पाये ।
मेहर हुई गुरु चरन लगाये ॥२ ॥
मैं अजान गति मति नहिं जानी ।
दया हुई तब कुछ पहिचानी ॥३ ॥
चरन कँवल गुरु हिय बिच धारे ।
करम भरम संशय सब टारे ॥४ ॥
दरशन कर हिये प्रीति बढ़ाई ।
बचन सुनत परतीत सवाई ॥५ ॥
बिन सतगुरु सब वार रहाये ।
शब्द बिना कोई पार न जाये ॥६ ॥
मेरा भाग जगा अति भारा ।
सतगुरु ने मोहि आप सँवारा ॥७ ॥
परम पुरुष राधास्वामी दयाला ।
सहज मिले और किया निहाला ॥८ ॥
••••••• कल से आगे••••••
गुरु परताप सुरत चढ़ आई ।
मगन हुआ मन धुन सुन पाई ॥९॥
जोत निरंजन रहे अलगाई ।
त्रिकुटी महल गुरु गैल लखाई ॥१० ॥
अक्षर पुरुष किया अति प्यारा ।
रंकार धुन सुनी झनकारा ॥११ ॥
मानसरोवर निरमल धारा ।
कर अस्नान हुआ अब न्यारा ॥१२ ॥
भँवरगुफा चढ़ सतपुर धाया ।
सत्तनाम का दरशन पाया ॥१३ ॥
हुए प्रसन्न सतपुरुष दयाला ।
अलख अगम का लखा उजाला ॥१४ ।।
राधास्वामी दरस मेहर से पाया ।
उमँग उमँग कर आरत गाया ॥१५ ॥
शोभा राधास्वामी क्योंकर गाऊँ ।
बार बार चरनन बलि जाऊँ ॥१६ ॥
यह निज धाम पायगा सोई ।
जापर दया राधास्वामी की होई ॥१७ ॥
(प्रेमबानी-1-शब्द-18-पृ.सं.157,158,159)**
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