**राधास्वामी! / 18-09-2021-आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
अरी हे सहेली प्यारी ,
प्रेम की दौलत भारी ,
छिन छिन भक्ति कमाओ ॥ टेक ॥
भक्ति बिना सब बिरथा करनी ।
थोथा ज्ञान ध्यान चित धरनी ।
यह नहिं मुक्ति उपाओ ॥ १ ॥ प्रेम बिना कोई जाय न पारा । पहुँचे नहिं सतगुरु दरबारा । क्यों विरथा बैस गँवाओ ॥२ ॥
ऐसा प्रेम गुरू से पावे ।
जो कोइ उनकी कार कमावे ।
उन चरनन पर सीस नवाओ ॥३ ॥
दीन ग़रीबी धारो मन में।
प्रीति बसाओ तुम निज मन में ।
घट में शब्द जगाओ ॥४ ॥
दया मेहर से सुरत चढ़ावें ।
धुर पद में वे ले पहुँचावें
राधास्वामी चरन समाओ ॥५ ॥
(प्रेमबानी-3-शब्द-18-पृ.सं.168,169)**
: **राधास्वामी! 18-09-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
सतगुरु की अब आरत गाऊँ।
करम भरम तज चरन धियाऊँ।।१।।
थाल प्रीति का हिये सजाऊँ ।
दृढ़ परतीत जोत जगवाऊँ ॥२ ॥
कुटुंब देस तज सन्मुख आया ।
मेहर हुई घट प्रेम बढ़ाया ॥३ ॥
सेवा कर मन होत हुलासा ।
सतगुरु चरन बँधी मम आसा ॥४ ॥
संशय रोग हटाया दूरा ।
सुरत शब्द का पाया नूरा ॥५ ॥
नित नई प्रीति हिये उमँगावत ।
चरन सरन में निस दिन धावत ॥६ ॥
दीन ग़रीबी चित्त समाई ।
आरत कर गुरु लीन रिझाई ॥७ ॥
मेहर हुई स्रुत नभ पर धाई ।
त्रिकुटी चढ़ धुन गरज सुनाई ॥ ८ ॥
मानसरोवर जल भर लाता ।
करमंडल ले गुरू पिलाता ॥ ९ ॥
भँवरगुफा मुरली बजवाता ।
सत्तलोक धुन बीन सुनाता।।१०।।
अलख अगम के पार चढाता। राधास्वामी चरनन माहिं समाता।।११।।
(प्रेमबानी-1-शब्द-21-
पृ.सं.162,163,164)**
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