Monday, September 20, 2021

20921 शाम सतसंग में सतसंग में पढा गया बचन-

 **राधास्वामी! 20-09-2021-

आज शाम सतसंग में पढा गया बचन-

कल से आगे:;

[भाष्य के नमूने]-(104)

-अब ज़रा दो चार नमूने स्वामी जी के भाष्य के भी देखे जायँ जिससे पाठकों को ज्ञात हो जाय कि उन्हें वेदों का नया भाष्य तैयार करने में कितनी सफलता प्राप्त हुई ।                                                                       

यजुर्वेद अध्याय २४ ,

मन्त्र २४-                                     हे मनुष्यो ! जैसे पक्षियों का काम जानने वाला जन ( सोमाय ) ऐश्वर्य के लिये

 ( लवान् ) बटेरों , ( त्वष्ट्रे ) प्रकाश के लिये ( कौलीकान् ) कौलीक नाम के पक्षियों , ( देवानाम् ) विद्वानों की ( पत्नीभ्यः ) स्त्रियों के लिये ( गोसादीः ) जो गौओं को मारती हैं उन पखेरियों , ( देवजामिभ्यः ) विद्वानों की बहिनियों के लिये ( कुलीकाः ) कुलीक नामक पखेरियों ,(अग्नेय) जो अग्नि के समान वर्तमान ( गृहपतये ) गृह - पालन करने वाला उसके लिये ( पारुष्णान् ) पारुष्ण पक्षियों को     ( आ लभते ) प्राप्त होता वेसे तुम भी प्राप्त होओ ।

 भावार्थ


- जो मनुष्य पक्षियों के स्वभावज कामों को जान कर उन की अनुहारि ( अनुकरण ) किया करते हैं वे बहुश्रुत ( बिद्वान ) के समान होते हैं ।                                                 

यजुर्वेद अध्याय ८ , मन्त्र ३१-                         

हे ( बिमहसः ) विविध प्रकार से प्रशंसा करने योग्य ( मरुतः ) विद्वान् गृहस्थ लोगो ! तुम ( यस्य ) जिस गृहस्थ के ( क्षये ) घर में सुवर्ण उत्तमरूप ( दिवः ) दिव्य गुण स्वभाव वा प्रत्येक कामों करने की रीति को ( पाथ ) प्राप्त हो ( सः ) वह ( सुगोपातमः ) अच्छे प्रकार वाणी और पृथिवी की पालना करने वाला ( जनः ) मनुष्यों की सेवा के योग्य है ।

यजुर्वेद अध्याय ६ , मन्त्र १४ -

 हे शिष्य ! मैं विविध शिक्षाओं से ( ते ) तेरी ( वाचम ) जिसमें बोलता है उस वाणी को ( शुन्धामि ) शुद्ध अर्थात् सद्धर्मानुकूल करता हूँ । ( ते ) तेरे

 ( चक्षुः ) जिससे देखता है उस नेत्र को ( शुन्धामि ) शुद्ध करता हूँ । ( ते ) तेरी, ( नाभि ) जिससे नाड़ी आदि बांधे जाते हैं उस नाभि को ( शुन्धामि ) पवित्र करता हूँ। । ( ते ) तेरे , ( मेडम ) जिससे मूत्रोत्सर्गादि किये जाते हैं उस को ( गुन्धामि ) पवित्र करता हूँ । ( ते ) तेरे ( पायुम् ) जिससे रक्षा की जाती है उस गुदेन्द्रिय को ( शुन्धामि ) पवित्र करता हूँ । ( चरित्रान् ) समस्त व्यबहारों को ( शुन्धामि ) पवित्र शुद्ध अर्थात् धर्म के अनुकूल करता है । तथा गुरु पत्नी पक्ष में सर्वत्र करती हूँ ' यह योजना करनी चाहिये१-।                                                

【अर्थ-१-विदित हो कि इस मन्त्र में गुरुयों और पुरुषों की पत्रियों को निश किया गया है कि ब्रह्मचारियों और चारिशियों को इन स्पा और प्रकट शब्दों में घाशीर्वाद दिया करें ।।】                                                          क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻                                                      

 यथार्थ प्रकाश-भाग तीसरा-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!**


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