: **राधास्वामी! 09-09-2021-आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-.
अरी हे पड़ोसिन प्यारी ,
कोई जतन बता दो ,
कस मिले प्रीतम प्यारा ॥ टेक ॥
बिरह अगिन नित भड़कत तन में ।
पिया की पीर नित खटकत मन में ।
सहत रहूँ दुख भारा ॥१ sl॥
कोई बैद मिलें जब भारी ।
रोग बूझ दें दवा बिचारी ।
तब कुछ पाऊँ सहारा ॥२ ॥
सतगुरु ऐसे बैद कहावें ।
प्रीतम से वे तुरत मिलावें ।
दे निज चरन अधारा ॥३ ॥
चलो पड़ोसिन गुरु ढिंग जावें ।
बिनती कर निज काज बनावें ।
छोड़ें जग अँधियारा ॥४ ॥
सतगुरु हैं वे दीनदयाला ।
मेहर से दिन में करें निहाला ।
अस होय जीव गुज़ारा ॥५ ॥
प्रेम प्रीति गुरु चरनन लावें ।
आरत कर उन बहुत रिझावें ।
तन मन चरनन वारा ॥६ ॥
भेद सुनावें अतिसै भारी ।
प्रीतम आपहि गुरु तन धारी ।
करते जीव उबारा ॥७ ॥
कर पहिचान लिपट रहें चरनन ।
प्रीति प्रतीति बढ़ावें छिन छिन ।
तज सब भरम पसारा ॥८ ॥
राधास्वामी धाम से सतगुरु आवें ।
जीव दया वे हिये बसावें ।
उन गति अगम अपारा।।९।।
भाग उदय हुए आज हमारे ।
मिल गये राधास्वामी प्रीतम प्यारे । लखा निज रूप नियारा ॥१० ॥
आओ पड़ोसिन गाओ बधाई ।
राधास्वामीमहिमा अगम अथाई ।
दम दम शुकर बिचारा ॥११ ॥
(प्रेमबानी-3-शब्द-10-पृ.सं.158,159,160)*
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**राधास्वामी! / 09-09-2021
-आज शाम सतसंग में पढा गया दूसरा पाठ:-
गुरुमुख प्यारे उमँग उठाई ।
सतगुरु आरत करूँ बनाई ॥१ ॥
प्रेम प्रीति से सामाँ लाया ।
सतगुरु सन्मुख आन धराया ॥२ ॥
अचिंत दीप का थाल बनाया ।
सहज दीप की जोत जगाया ॥३ ॥
प्रेम प्रीति से आरत साजी ।
भँवरगुफा ढिंग सूरत गाजी ॥४ ॥
कर आरत लाया ।
गुन गावत चित अति हरषाया ॥ ५ ॥
क्या महिमा अव सतगुरु गाऊँ ।
चरन सरन में हिया उमगाऊँ ॥६ ॥
हुए प्रसन्न सतपुरुष दयाला ।
दिया दान मोहि किया निहाला ॥७ ॥
सत्तनाम की सुध अब पाई ।
रैन दिवस रहूँ सुरत लगाई ॥ ८ ॥
अलख अगम के पार निशाना राधास्वामी पद दरसाना ॥९ ॥
गति मति वाकी कोई न जाने
मेहर दया होय तब पहिचाने ॥१० ॥
नाम अनाम पदारथ सारा ।
दान दिया किया सब से न्यारा ॥११ ॥
महिमा राधास्वामी बरनी न जाई । उमँग उमँग चित चरन लगाई ॥१२ ॥
बडे भाग जागे क्या कहना ।
नाम अमीरस निस दिन पीना ॥१३ ॥
काल देस से तुरत हटाया ।
करम भरम सब दूर कराया ॥१४ ॥
चरन सरन दे लिया अपनाई ।
मन इच्छा सब दूर बहाई ॥१५ ॥
गुरु परताप कहा नहिं जाई ।
नित्त रहूँ चरनन लौ लाई ॥१६ ॥
दीनदयाल जीव हितकारी ।
भौजल से मोहि पार उतारी ॥१७ ॥
छिन छिन महिमा प्रीतम गाऊँ । राधास्वामी सदा धियाऊँ ॥१८ ॥
नित नित मैं गुन गाऊँ तुम्हारे ।
धन धन धनधन राधास्वामी प्यारे ।।
१९।। (प्रेमबानी-1-शब्द-19-पृ.सं.153,154,155)**
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