**राधास्वामी! 20-09-2021- आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
बिरहन सुरत सोच मन भारी ।
कस जागे घट प्रीति करारी ॥१ ॥
दृढ़ परतीत हिये बिच आवे ।
दर्शन कर गुरु चरन समावे ॥२ ॥
चरनन माहिं रहे लौलीना ।
शब्द अमी रस निस दिन पीना ॥३ ॥
सतसँग नित हित चित से करती । राधास्वामी २ हिये बिच धरती ॥४ ॥
जब तब संशय रोग सतावे ।
तड़प तड़प ब्याकुल हो जावे ॥५ ॥।
नित नित बिनती करूँ बनाई ।
हे राधास्वामी तुम होवो सहाई ॥६ ॥ उमँग सहित तुम आरत धारूँ ।
करम भरम तज तन मन वारूँ ॥ ७ ॥
दया मेहर परशादी चाहूँ ।
चरन सरन में दृढ़ कर धाऊँ ॥ ८ ॥
हुए प्रसन्न राधास्वामी दयाला ।
दया करी काटा जंजाला ॥ ९ ॥
चरन सरन दे लिया अपनाई ।
मन और सूरत गगन चढ़ाई ॥१० ॥
सहसकँवल होय त्रिकुटी आई ।
सुन्न के परे गुफा दरसाई ॥११ ॥
सत्तपुरुष के चरन निहारे ।
अलख अगम के हो गई पारे ॥१२ ॥
वहाँ से चली अधर को प्यारी । राधास्वामी दरश निहारी ॥१३ ॥
अब क्या भाग सराहूँ अपना । राधास्वामी २ निस दिन जपना ॥१४ ॥
अब आरत यह हो गई पूरी।
सुरत हुई निज चरनन धूरी।।१५।।
(प्रेमबानी-1-शब्द-23-पृ.सं.165,166,167)
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