ईश्वर/भगवान/गॉड/परमात्मा/मालिक नाम की संसार में कोई चीज नहीं है--जैसा आम आदमी सोचकर उसके लिए पूजा पाठ, मंत्रजाप, हवन,व्रत, उपासना, दंडवत करता रहता है और उससे कृपा/दया/करुणा/उसकी प्रसन्नता पाकर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करवाने की अभिलाष रखता है।
हर मत पंथ सम्प्रदाय के ज्ञानी संत महापुरुष गुरु आपके द्वारा पकड़े हुए दुर्गुणों को छुड़वाने की कोशिश करता है।इसके अलावा ओर कुछ कर भी नहीं सकता क्योंकि उनके पास और कोई चारा भी तो नहीं है।
खास बात ध्यान देने योग्य यह है कि अगर आप दुर्गुणों जैसे काम क्रोध लोभ मोह भय अहंकार वासना तृष्णा झूठ पाखंड अत्याचार... आदि को छोड़(और आप छोड़ने में पूर्ण स्वतंत्र हो भी) देते हैं तो.......... सद्गुण(सत्य, विचार,दया ,शील ,धीरज ,विवेक ,वैराग्य ,प्रेम ,करुणा,प्राणिमात्र को अपने सामान समझकर मन वचन कर्म से जो बन सके सहायता करना...आदि) स्वतः प्रकट हो जाते हैं क्योंकि वह तो अनादिकाल से आपकी असली संपत्ति है,जिसके आप असली हकदार हैं,जो हमेशा से मौजूद है सिर्फ आपके द्वारा पकड़े गए दुर्गुणों से ढ़की पड़ी थी।
सद्गुणों के प्रकट होते जी आप स्वयं जिस भगवान/गॉड/परमात्मा/ईश्वर को खोज रहे थे वैसे आप स्वयं(मूलरूप से तो आप थे ही ईश्वररूप बस ये दुर्गुणों में छिपे पड़े थे) हो जाएंगे तथा कही जाए बिना ही उस परमात्मा को स्वयं में ही अनुभव करेंगे और आपकी खोज पूर्ण हो जाएगी।
अगर ऐसा नहीं किया तो आकाश पाताल में कही भी खोज लेना और आप जन्मों जन्मों में खोजते ही आएं हैं ऐसा भगवान/ईश्वर/गॉड कही नहीं मिलेगा।
यह बिल्कुल सत्य है इसमें किसी ग्रंथ या किसी महापुरुष की वाणी की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि वो तो झूठ हो सकती है, लेकिन यह त्रिकाल में असत्य नहीं हो सकती।
इस विधि से आप खुद या अन्य कोई भी इंसान स्वयं ईश्वर/परमात्मा बन सकता है।ऐसे इंसान के अलावा ब्रह्मांड में कही भी आकाश-पाताल ऐसे भगवान/परमात्मा/गॉड की खोज करना सिर्फ आपकी अज्ञानता/अंधश्रद्धा/प्रपंच/बकवास ही होगा। इसमे किसी से पूछने की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि यह मैं डंके की चोट कह रहा हूँ।
अगर इसके अलावा ब्रह्माण्ड में कोई शक्ति है तो वह पंचभौतिक प्रकृति है जो अपने गुणधर्मो से स्वतः अनादिकाल से संचालित है।अगर आप इसके गुणधर्मो को समझकर इनके अनुसार चलना सिख गए तो यह आपकी सहायक हो जाती है और अगर विपरीत चले तो यहां क्षमा की भी कोई गुंजाइस नहीं है।
आप मंदिर में जाओगे तो मूर्ति के रूप में पत्थर मिलेगा,कही और जाओगे तो कोई अन्य मूर्ति या किताब या वही पत्थर की समाधि..... मिलेगी जहाँ आपको कुछ नहीं मिलेगा धक्के के सिवाय।
दुर्गुणमुक्त होकर पांचो इन्द्रियों सहित मन की निर्विकार फिर निर्विचार अवस्था में खुद के भीतर चले गए तो ध्यान-समाधि में आपको जिंदा परमात्मा मिल जाएगा, अर्थात आपका ही जिंदा गॉड स्वरूप प्रकट हो जाएगा जिसको आप अनंत समय से ईश्वर/गॉड/परमात्मा के रूप में कही खोजते आ रहे हैं। इसके साथ भी हर शंकाओ/ग्रन्थियों का प्रत्यक्षीकरण होकर आप जन्म-मरण से खुद ही पार चले जायेंगे। यहां हर तरह के ज्ञान की परिसमाप्ति हो जाएगी और यह मनुष्य जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि होगी।
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