**राधास्वामी!
23-09-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
खेल रही सूरत मतवारी।
गुरु चरनन में प्रीति करारी ॥१ ॥ °°°°°कल से आगे°°°°
अमी धार की बरखा भारी ।
सत्तपुरुष अद्भुत छवि धारी ॥१० ॥
दरशन करत सुरत हरखानी ।
सतगुरु की गति अगम बखानी ॥११ ॥
वहाँ से चली अधर को धाई ।
अलख अगम का भेद सुनाई ॥१२ ॥
तिस के परे अनामी लेखा ।
रूप रंग नहिं और नहिं रेखा ॥१३ ॥
यह निज देस संत का जाना । राधास्वामी नाम बखाना ॥१४ ॥
जोगी ज्ञानी सब थक बैठे ।
मान और अहंकार रहे ऐंठे ॥१५ ॥
संत सरन महिमा नहिं जानी ।
संत बचन नहिं किये प्रमानी ॥१६ ॥
संत दया कर बहु समझावे। यह मनमुखी चित्त नहिं लावें ॥१७ ॥
वाच लक्ष का निरनै करते ।
लक्ष माहिं वे बिरती धरते ॥१८ ॥
लक्ष रूप को ब्यापक माना ।
सुरत चेतन्य का मरम न जाना ॥१९ ॥
मन चेतन में जाय समाई ।
ये ही लक्ष रूप ठहराई ॥२० ॥
काल देश में रहे भुलाने ।
दयाल देश की खबर न जाने ॥२१ ॥
याते जन्म मरन नहिं छूटा ।
फिर फिर चौरासी जम लूटा ॥२२ ॥
अपना भाग सराहूँ भाई ।
राधास्वामी चरन सरन मैं पाई ॥२३ ॥
किरपा कर मोहि लिया अपनाई ।
काल जाल से लिया बचाई ॥२४ ॥
सतसँग कर हिये दृष्टि खुलानी ।
संत मते की महिमा जानी ॥२५ ॥
उमँग सहित यह आरत गाऊँ ।
राधास्वामी मेहर परशादी पाऊँ ॥२६ ॥ नित नित सुरत शब्द लगाऊँ। राधास्वामी चरनन सहज समाऊँ।।२७।।
(प्रेमबानी-1-शब्द-25-
पृ.सं.167,168,169,170)
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