[
07/02, 14:38] +91 92346 58709: **राधास्वामी!!
06-02-2020-
आज शाय के सतसंग में पढा गया बचन-कल से आगे-(49)-सतसंगियों की मन व अभ्यास के सम्बंध में कुल शिकायतों की वजह से प्रेमी की कमी है। मालिक के चरणों का प्रेम ऐसी दवा है जिसके हृदय के अंदर दाखिल होते जीव के सब रोग सोग मिट जाते है।इसलिये हर सतसंगी को चाहिये कि रोजाना दिन में कई बार और कम से कम प्रातः काल जरूर ही प्रेम की दात के लिये प्रार्थना करे। प्रेम बाजार से नही मिल सकता, न दौलत से खरीदा जा सकता है। यह कुल मालिक का दरवाजा खटखटाने ही से मिलता है। इसके हासिल करने के लिये सतसंगियों को किसी तरह असावधानी या लज्जा नही करनी चाहिये।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[07/02, 14:41] +91 92346 58709: **राधास्वामी सत्संग सभा ने 21 जनवरी 1961 बसंत पंचमी के दिन राधास्वामी सत्संग की शताब्दी समारोह मनाने की योजना बनाई। सभी सत्संग ब्राँचेज, डिस्ट्रिक्ट एसोसिएशन्स,और रीजनल एसोसिएशन्स से अनुरोध किया गया कि वह अपने स्थानों पर इस अवसर का आयोजन दीप सज्जा के साथ करें। समारोह का आयोजन 19 से 22 जनवरी तक चला। जो शब्द बसंत पंचमी के दिन पढ़े गए उनमें राधास्वामी दयाल के स्वामीजी महाराज के मनुष्य के रूप में अवतरित होने का संदेश था। बसंत के दिन प्रातः काल के सतसंग के पश्चात हुजूर मेहताजी महाराज ने एक संदेश दिया जिसका अंत इस प्रार्थना से था " ऐ परमपिता सबको सुमति प्रदान करें ऐसी दया हो कि सत्संग संचालन पहले से कहीं बढ़ चढ़कर प्रगति और समृद्धि के पथ पर अग्रसर हो। राधास्वामी।" उसी दिन हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणकमलों में धन्यवाद देने के लिए सभा का एक विशेष अधिवेशन हुआ जिसमें पारित प्रस्ताव में यह शब्द थे- " हम अपनी कृतज्ञता की समुचित अभिव्यक्ति करने में असमर्थ है। अतः हम आपके चरण- कमलों में बड़ी दिनता व कृतज्ञता से नतमस्तक हैं और बारंबार हुजूर साहबजी महाराज के शब्दों में प्रार्थना करते हैं। " तन मन सेवा में लगे और सिंह तुम्हारी होय। दया दृष्टि मुझ पर रहे और न चाहत कोय।" मेहताजी महाराज की सेहत लगातार धीरे-धीरे गिरती गई और 1969 में कमजोरी अत्यधिक बढ गई। फिर भी जो काम वह कर रहे थे , उसमें कभी नहीं हुई। 16 फरवरी सन 1975 बसंत पंचमी के दिन उनकी दशा अत्यधिक नाजुक हो गई और उनके लिए सत्संग में आना भी संभव नहीं था। बसंत पंचमी के 1 दिन पश्चात 17 फरवरी सन 1975 को सांयकाल 5:00 बजे परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज हम सब को छोड़कर निजधाम सिधार गए। मेहताजी महाराज के तीन बेटे व 5 बेटियां थी ।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻**
प्रस्तुति - उषा रानी सिन्हा / राजेंद्र प्रसाद सो
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06-02-2020-
आज शाय के सतसंग में पढा गया बचन-कल से आगे-(49)-सतसंगियों की मन व अभ्यास के सम्बंध में कुल शिकायतों की वजह से प्रेमी की कमी है। मालिक के चरणों का प्रेम ऐसी दवा है जिसके हृदय के अंदर दाखिल होते जीव के सब रोग सोग मिट जाते है।इसलिये हर सतसंगी को चाहिये कि रोजाना दिन में कई बार और कम से कम प्रातः काल जरूर ही प्रेम की दात के लिये प्रार्थना करे। प्रेम बाजार से नही मिल सकता, न दौलत से खरीदा जा सकता है। यह कुल मालिक का दरवाजा खटखटाने ही से मिलता है। इसके हासिल करने के लिये सतसंगियों को किसी तरह असावधानी या लज्जा नही करनी चाहिये।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[07/02, 14:41] +91 92346 58709: **राधास्वामी सत्संग सभा ने 21 जनवरी 1961 बसंत पंचमी के दिन राधास्वामी सत्संग की शताब्दी समारोह मनाने की योजना बनाई। सभी सत्संग ब्राँचेज, डिस्ट्रिक्ट एसोसिएशन्स,और रीजनल एसोसिएशन्स से अनुरोध किया गया कि वह अपने स्थानों पर इस अवसर का आयोजन दीप सज्जा के साथ करें। समारोह का आयोजन 19 से 22 जनवरी तक चला। जो शब्द बसंत पंचमी के दिन पढ़े गए उनमें राधास्वामी दयाल के स्वामीजी महाराज के मनुष्य के रूप में अवतरित होने का संदेश था। बसंत के दिन प्रातः काल के सतसंग के पश्चात हुजूर मेहताजी महाराज ने एक संदेश दिया जिसका अंत इस प्रार्थना से था " ऐ परमपिता सबको सुमति प्रदान करें ऐसी दया हो कि सत्संग संचालन पहले से कहीं बढ़ चढ़कर प्रगति और समृद्धि के पथ पर अग्रसर हो। राधास्वामी।" उसी दिन हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणकमलों में धन्यवाद देने के लिए सभा का एक विशेष अधिवेशन हुआ जिसमें पारित प्रस्ताव में यह शब्द थे- " हम अपनी कृतज्ञता की समुचित अभिव्यक्ति करने में असमर्थ है। अतः हम आपके चरण- कमलों में बड़ी दिनता व कृतज्ञता से नतमस्तक हैं और बारंबार हुजूर साहबजी महाराज के शब्दों में प्रार्थना करते हैं। " तन मन सेवा में लगे और सिंह तुम्हारी होय। दया दृष्टि मुझ पर रहे और न चाहत कोय।" मेहताजी महाराज की सेहत लगातार धीरे-धीरे गिरती गई और 1969 में कमजोरी अत्यधिक बढ गई। फिर भी जो काम वह कर रहे थे , उसमें कभी नहीं हुई। 16 फरवरी सन 1975 बसंत पंचमी के दिन उनकी दशा अत्यधिक नाजुक हो गई और उनके लिए सत्संग में आना भी संभव नहीं था। बसंत पंचमी के 1 दिन पश्चात 17 फरवरी सन 1975 को सांयकाल 5:00 बजे परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज हम सब को छोड़कर निजधाम सिधार गए। मेहताजी महाराज के तीन बेटे व 5 बेटियां थी ।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻**
प्रस्तुति - उषा रानी सिन्हा / राजेंद्र प्रसाद सो
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