**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज - सतसंग के उपदेश-( भाग- 2)-(23)- 【बाहरी कार्रवाई व साधन सच्चे परमार्थ का आदर्श नहीं है।】:- एक सिक्ख भाई ने बयान किया कि मैं अब पक्का सिक्ख बन गया हूँ। मैं पांचो कके के हर वक्त सजाए रखता हूँ। सिर पर साफे के नीचे हमेशा नीली पगड़ी बांधता हूँ। जो शख्स केशधारी नहीं है उसके हाथ की कोई चीज नहीं खाता हूँ। प्रातः काल स्नान करके "जप जी साहब" वगैरह का और दिन में दसवीं पादशाही (गुरु गोविंद सिंह साहब) की वाणी का पाठ करता हूं। यह बातें सुनकर पूछा गया - आया इन कार्रवाइयों से कोई अंदरूनी तब्दीली भी वाकै हुई है ? उन्होंने जवाब दिया कि यह तब्दीली वाकै हुई है कि मुझे सिवाय सिक्खों के कोई शख्स प्यारा नहीं लगता। सिर्फ सिक्खो ही के साथ उठना बैठना और 10 गुरुओं के गुन गाना अच्छा लगता है । इस पर कहा गया कि जरा आंखें बंद करके बताओ कि क्या दिखाई देता है ? जवाब मिला कि अंधेरा दिखाई देता है। उनसे कहा गया कि इससे जाहिर है कि पक्का सिख बनने के मुतअल्लिक़ जितनी कारर्वाईयाँ आपने कींक्ष उन सब का ताल्लुक जागृत अवस्था से है यानी आप सिर्फ जागृत अवस्था में सिक्खी ख्यालात, सिक्ख मजहब की तालीम और गुरु साहिबान का चिन्तवन कर सकते हैं इसलिए आंखें बंद करके अंतर्मुख वृति करने पर आपको महज अंधकार दिखाई देता है । आप अभी पक्के सिक्ख नहीं बने हैं। पक्का सिक्ख बनना उसे कहते हैं कि बाहर से दृष्टि हटाकर अन्तर्मुख होने पर आपको अपनी आत्मा का या सच्चे मालिक का या गुरु महाराज का दर्शन प्राप्त हो क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
Saturday, February 8, 2020
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बधाई है बधाई / स्वामी प्यारी कौड़ा
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