Saturday, February 8, 2020

अभ्यास में विध्न दूर करने का जतन




 [08/02, 18:12] +91 92346 58709: **परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र-( भाग 1)-(5)- 【अभ्यास में विघ्न और उनके दूर करने का जतन】:- कोई लोग भजन में रस न मिलने की शिकायत करते हैं या यह कि अंतर में उनको कुछ नहीं खुला।  इसका सबब यह है कि या तो उनका मन वक्त अभ्यास के संसारी चाहों या कामों की गुनावध या ख्याल में लगा रहता है, या संसारी काम या उनकी गुनावन करके के अभ्यास में बैठते हैं, या उनको जो कुछ अंतर में सुनाई या दिखाई देता है उसकी उनको पहचान और कदर नहीं है।।              जाहिर है कि जब कोई अभ्यास के वक्त दुनिया के कामों का ख्याल या तरंग उठाएगा, उस वक्त उसके मन और सुरत की धार उसकी इंद्री की तरफ जारी होगी। क्योंकि मन से एक वक्त में एक ही काम हो सकता है और रस ऊपर यानी नीचे की धार में है, तो भजन का रस मन को, जब तक कि उसकी धार ऊपर के चैतन्य से चढ़ कर न मिले, क्योकर आ सकता है?    जो कोई काम या उसका ख्याल करके अभ्यास में बैठता है तो मन और सुरत उसके संसारिक वासना की धार से भीगे हुए हैं और उस वक्त उनका झुकाव और ख्याल नीचे की तरफ हो रहा है, तो जब तक गहरा शौक और प्रेम अंग लेकर भजन में मुतव्वज्जह ना होगा तब तक सुरत और मन निर्मल होकर न लगेंगे और रस नहीं आएगा। इस सूरत में मुनासिब है कि कोई चेतावनी या बिरहा या प्रेम के शब्द का बड़ी पोथी सार बचन नज्म से होशियारी से पाठ करें और अपने ख्याल को बदलें तो अलबत्ता कुछ रस या आनंद अभ्यास में मिल सकता है।।                    कोई शख्सों का यह हाल है कि जैसा कि उनको भेद स्थानों का मिला है जरा अभ्यास में बैठते हैं तो चाहते है कि पहला मुकाम तो फौरन ही खुल जावे, और जो कुछ उसकी झलक दिखलाई देवे तो चाहते है कि बराबर उनके सामने खड़ी या कायम रहे, और जो आवाज उनको पहले मुकाम की सुनाई देती है  तो उसको  जैसा कि चाहिए कदर नहीं करते। क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
[08/02, 18:12] +91 92346 58709: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज - सतसंग के उपदेश-( भाग- 2)-(23)- 【बाहरी कार्रवाई व साधन सच्चे परमार्थ का आदर्श नहीं है।】:- एक सिक्ख भाई ने बयान किया कि मैं अब पक्का सिक्ख बन गया हूँ।  मैं पांचो कके के हर वक्त सजाए रखता हूँ। सिर पर साफे के नीचे हमेशा नीली पगड़ी बांधता हूँ। जो शख्स केशधारी नहीं है उसके हाथ की कोई चीज नहीं खाता हूँ।  प्रातः काल स्नान करके "जप जी साहब" वगैरह का और दिन में दसवीं पादशाही (गुरु गोविंद सिंह साहब) की वाणी का पाठ करता हूं। यह बातें सुनकर पूछा गया - आया इन कार्रवाइयों से कोई अंदरूनी तब्दीली भी वाकै हुई है ? उन्होंने जवाब दिया कि यह तब्दीली वाकै हुई है कि मुझे सिवाय सिक्खों के कोई शख्स प्यारा नहीं लगता। सिर्फ सिक्खो ही के साथ उठना बैठना और 10 गुरुओं के गुन गाना अच्छा लगता है । इस पर कहा गया कि जरा आंखें बंद करके बताओ कि क्या दिखाई देता है ? जवाब मिला कि अंधेरा दिखाई देता है। उनसे कहा गया कि इससे जाहिर है कि पक्का सिख बनने के मुतअल्लिक़ जितनी कारर्वाईयाँ आपने कींक्ष उन सब का ताल्लुक जागृत अवस्था से है यानी आप सिर्फ जागृत अवस्था में सिक्खी ख्यालात, सिक्ख मजहब की तालीम और गुरु साहिबान का चिन्तवन कर सकते हैं इसलिए आंखें बंद करके अंतर्मुख वृति करने पर आपको महज अंधकार दिखाई देता है । आप अभी पक्के सिक्ख नहीं बने हैं। पक्का सिक्ख बनना उसे कहते हैं कि बाहर से दृष्टि हटाकर अन्तर्मुख होने पर आपको अपनी आत्मा का या सच्चे मालिक का या गुरु महाराज का दर्शन प्राप्त हो क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

प्रस्तुति - उषा रानी सिन्हा /राजेंद्र प्रसाद सिन्हा 

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