Saturday, February 22, 2020

सत्संग संस्कृति सबंधित कुछ उल्लेखनीय प्रसंग




प्रस्तुति - उषा रानी
/ राजेंद्र प्रसाद सिन्हा

[22/02, 07:59]
+91 97830 60206: *।।दयालबाग एवं सतसंग संस्कृति ।।*

*(28) 1943 की एक सुबह हुजूर मेहताजी महाराज अपने साथ कुछ दर्जन आदमियों को लेकर झाड़ियों से भरे ऊंची नीची जमीन के हिस्से पर तशरीफ़ ले गये। वे अपने साथ फावडे ले गये और मैदान को साफ करना व समतल करना प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे खेत में काम करने वाले सत्संगियों की संख्या बढ़ गई और यह सुबह के सत्संग के बाद का रोजाना का कार्यक्रम हो गया। ऊँचे भू- स्थलों  से मिट्टी को खींचकर लाने के लिए पाटे बनाए गए और सख्त व उबड खाबड दिखाई देने वाले खेत समतल होने लगे। तथा शाम को हर तरह का काम करने वाले सत्संगी इस सेवा में जाने लगे। जाडे की ठंडी सुबह में, गर्मी की तपती दोपहर में और बारिश के मौसम में हुजूर मेहताजी महाराज काम करने वालों को निर्देश देने और उत्साहित करने हेतु दया कर स्वयं वहाँ मौजूद रहते थे। समतल किये गये खेत जोते गए। उनमें विभिन्न फसलों के बीज बोए गए और माइनर नहर और ट्यूबवेल से सींचे गये। करते करते समय कुछ समय में 1250 एकड का एक कृषि फार्म बनकर तैयार हो गया और क्विंटलों अनाज, दालें तिलहन, मूँगफली, गन्न र सब्जियों आदि की फसल पैदा होने लगी ।"अधिक अन्न उपजाओ"  योजना के अंतर्गत दशको तक लगातार श्रम के परिणामस्वरूप दयालबाग अपनी जरुरत भर खदानों के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया था। इस रैती और ऊसर भूमि को हरे भरे खेतों में बदलना किसी चमत्कार से कम नहीं था।               (29) 1957 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दयालबाग और उसके आसपास के क्षेत्रों के नागरिकों की देखभाल के लिए दयालबाग में टाउन एरिया कमेटी की स्थापना एक प्रभावशाली कदम था। 1995 मे टाउध एरिया नगर पंचायत बन गई जो एक छोटी म्यूनिसिपल (नगर पालिका )है                    (30) 1961 में राधास्वामी सत्संग की शताब्दी समारोह एक प्रमुख घटना थी। समारोह लगभग 1 सप्ताह तक चला और हुजूर मेहताजी महाराज ने दया कर बसंत पंचमी के दिन सुबह संदेश दिया इसका हिंदी में अनुवाद परिशिष्ट 2 में प्रकाशित।।                               (31)  भारत और भारत के बाहर के अंग्रेजी जानने वाले व्यक्तियों के लिए बहुत बड़ी संख्या में सत्संग की पोथियों का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया और प्रकाशित किया गया। हुजूर मेहताजी  महाराज ने दया कर अधिकांश पवित्र पोथियाँ के अनुवाद करने का दुरुह कार्य स्वयं सरंजाम दिया जिसके परिणाम स्वरूप अब बड़ी संख्या में अंग्रेजी में पोथियां उपलब्ध है ।                 (32) सितंबर 1937 में विद्यार्थियों को मुफ्त दूध वितरण की योजना शुरू की गई ।बाद में उनके शिक्षण शुल्क की  अदायगी , मुफ्त यूनिफार्म, स्वेटर और जूते आदि महय्या करनें एवं उनकी स्वास्थ्य रक्षा के लिए प्रबंध किये गये।।         (33)  इस दौरान निर्माण कार्यों के अंतर्गत विद्युत नगर , और कार्यवीर नगर मोहल्लों का विस्तार हुआ, व लेदर गुड्स फैक्ट्री की इमारत, इंजीनियरिंग कॉलेज, उसकी प्रयोगशाला सहित एक भवन का निर्माण कार्य हुआ तथा लड़कों के लिए छात्रावास में स्थान बढ़ाया गया।**
[22/02, 07:59] +91 97830 60206: *(34) 2 जनवरी 1956 को पंडित जवाहरलाल नेहरू दयालबाग आये और हुजूर मेहताजी महाराज ने उनका स्वागत करते हुए फरमाया-......  "दयालबाग आगरा शहर से दूर गाँव की तरह शांत है, साथ ही यहाँ शहरों की तरह पूर्ण स्वच्छता व सफाई का प्रबंध है। यहाँ विद्यार्थी, वैज्ञानिक व साधक एकांत में शांति पूर्वक अपना-अपना कार्य करते है और बेरोजगारों, कृषक व श्रमिक जीविका कमाने का अवसर पाते है। न यहाँ दौलत बहती है और न यहाँ कोई भूखा रहता है, न यहाँ बडे महल व कोठियाँ है, न टूटी-फूटी झोपडियाँ। न यहाँ कोई महान या बडा है न छोटा या अकिंचन। अगर यहाँ किसी का दूसरे से अधिक आदर होता है तो उसी का जो दूसरों से बढकर औऋ बेहतर काम करता है। दयालबाग सभी निवासियों का है लेकिन किसी भी निवासी का यहाँ किसी भी प्रकार का कोई मालिकाना अधिकार नही है।।" यह एक प्रकार से दयालबाग के सामाजिक आदर्शों का सार है।।                              (35) 1937 से 1975 का समय सतसंग के संगीकरण consolidation का समय था। इंडस्ट्री के विस्तार और कृषि द्वारा संगत में एक मौन क्रांति आई, साथ ही सदस्यों के आध्यात्मिक विकास को कायम रखते हुए बहुत समय से आवश्यक समझे जा रहे सामाजिक व सांस्कृतिक सुधार किये गये।।                                  (36) सतसंग की शानदार प्रगति हुई। सतसंगियों की संख्या निरंतर बढती रही। 1975 तक विदेश की 5 शाखाओं को मिलाकर सभा से सम्बद्ध 578 ब्राँचें थी तथा 10 प्रांतीय एसोसिएशंस जिनमें 3 विदेश की भी सम्मलित थी, बनाई गई। रीजनल तथा ब्राँच स्तर पर पुनर्गठन का कार्य किया गया।।                               (37) हुजूर मेहताजी महाराज के द्वाप दयालबाग के विभिन्न कार्यों की प्रगति जिस रफ्तार से शिक्षा, उद्योग, कृषि और सतसंगियों के कल्याण के क्षेत्रों में हुई थी वह रफ्तार 1975 से अब तक उसी वेग से जारी है। दयालबाग की शिक्षा निती  का एक प्रलेख 1977 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार को भेजा गया। इस शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति का शारिरीक, बौद्धिक, भावात्मक तथा नैतिक एकीकरण करके उसे एक पूर्ण मानव के रुप में.विकसित करना था। एजुकेशन पॉलिसी का मूल-पाठ परिशिष्ट 3 में प्रकाशित है। इन शिक्षा निति के अनुसार एक नई तरह की शिक्षा पद्धति का निर्धारण करके उसके तत्वों को संस्थाओं में जारी किया गया। इस.शिक्षा पद्धति ने देश भर के शिक्षाविदों का ध्यान तत्काल आकार्षित किया और तबसे यह कई अन्य संस्थाओं द्वारा अपनाई गई है। नवीन शिक्षा पद्दति की पुनः संरचना करने और उसे अपनाने में पूरी तरह सक्षम डी.ई.आई. को केंद्र सरकार ने 1981 में डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा प्रदान किया। यह दयालबाग में.शिक्षा कु प्रगति तथा पूज्य आचार्यों के आदेशों के पालन की दिशा में विकास का एक महत्वपूर्ण कदम था। 1986 में टेक्निकल कॉलेज और 1995 में प्रेम विद्यालय को इसकी छत्रछाया में लाया गया।**
[22/02, 07:59] +91 97830 60206: *(38) 1977 मे स्कूल ऑफ आर्ट एण्ड कल्चर की स्थापना की गई।।     (39) सतसंगी परिवारों के बालक एवं बालिकाओं में सहयोग पूर्वक मिलजुल कर रहने की आदत डालने तधा उन्हे राधास्वामी मत की शिक्षाओं एवं नैतिक मूल्यों से पूर्व रुप से अवगत कराने के उद्देश्य से 1983 में ग्रीष्मकालीन स्कूलों (Summer Schools)  का कार्यक्रम जारी किया गया। रीजनल एसोसिएशनस से इन स्कूलों का आयोजन करने को कहा गया।।        (40) एक अन्य महत्वपूर्ण विकास कार्य था सतसंग कॉलोनी की स्थापना करना। ये कॉलोनीज दयालबाग का एक लघु रुप होती है जो सतसंगियों को उनकै धार्मिक कार्यों के लिये सही वातावरण मुहय्या करती है तथा सतसंगियों व उनके साथियो के फायदे के वास्ते सामाजिक और आर्थिक गतिविधियाँ क्रियान्वित करने में सहूलियत भी प्रदान करती है। कॉलोनीज के निर्माण की शुरुआत रुडकी से हुई जो 1978-79 में बन कर तैयार हुई।**
[22/02, 07:59] +91 97830 60206: *(41) एक अन्य महत्वपूर्ण कदम इंडस्ट्रियल उत्पादन का विकेन्द्रीकरण रहा जिसका देश के विभिन्न भागों में कुटीर उद्योगों या लघु उद्योग के रुप में सगंठन किया गया है। इस प्रकार की 107 इकाइयाँ (दिसंबर 2001 तक) आजकल विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ जैसे अनेक डिजाइनों व रंगो मे सूती वस्त्र, होजरी का सामान, साबुन तेल, बुने कपडे, डिटरजेंट, चमडे का सामान, आयुर्वेदिक दवाइयां तधा अन्य उपभोक्ता वस्तुएं बना रहु है। इस समय 146 नियमित सटोर्स और 4 स्टोर ऐजेन्सीज है जो सम्पूर्ण देव में फैले हुए है और जो इकाइयों द्वारा निर्मित माल को उपल्बध कराते है इसके अतिरिक्त समय-समय पर इध उत्पादनों कु विभिन्न ब्राँचों और जिलों में प्रदर्शनियाँ लगाई जाती है जिनमें विभिन्न इकाइयों कै द्वारा निर्मित वस्तुओं का प्रदर्शन एवं विक्रय किया जाता है।।                       (42) इन सभी उपर्युक्त गतिविधियों में युवाओं और युवतियों को पूर्णतय: शामिल करने का प्रयास किया गया है। समाज के सेवा कार्यों जैसे भंडारे के मौके पर बाहर से आने वाले सतसंगियों की देख-भाल स्वचछता और नागरिक निर्माण-कार्य और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने के उद्देश्य से विशिष्ट समूह बनाये गये है।   उन्हे सतसंग की कार्यवाही में शामिल होने के लिये प्रोत्साहित किया गया है. अधिकतर ब्राँचों में सामान्यत:विद्यार्थियों एवं छोटे बच्चो की पाठ पार्टियां है।।                    (43) सतसंगियों की बहुत सी महिला एसोसिएशंस बन गई है जो अच्छी गुणवत्ता की वस्तुएँ जैसे तैयारशुदा वस्त्र, मसाले, अचार आदि तैयार करके उन्हे बिना लाभ-हानि के आधार पर उपल्बध कराती है।**
[22/02, 07:59] +91 97830 60206: *(44) परम गुरु हुजूर सरकार साहब की समाध के निर्माण के लिये हुजूर साहबजी महाराज द्वारा एक कार्यक्रम बनाया गया था जो कि कुछ सतसंगियों के समूह के बाधा डालने की प्रवृत्ति के कारण पूरा नही हो सका था। मालिक की दया से यह कार्य प्रारंभ हुआ और समाध और गार्डन हाउस जो अब सत्संग भवन है, के निर्माण कार्य का प्रारंभ हुजूर सरकार साहब के परिवार तथा बिहार के सामान्यता  सभी सत्संगियों के पूर्ण सहयोग से किया गया और 1978 में पूरा हुआ। इसी के पास बिहार राधास्वामी सत्संग एसोसिएशन द्वारा बनाई गई सतसंगियों की एक कॉलोनी है और  राधास्वामी ट्रेनिंग एंप्लॉयमेंट एंड रूलर डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट स्थापित है जिसमें वोकेशनल सेंटर चल रहा है। इसके अतिरिक्त अब बहुत सी सोसाइटीज स्थापित की गई है, एक दवाखाना, एक प्राइमरी स्कूल  और एक पिलग्रिम शेड बन गया है । सभा ने कृषिकार्य के लिए एक छोटा प्लॉट अधिकृत किया है।।                                 (45) 1983 में दयाल निवास में पावन स्यृतालय स्थापना की गई। इसमें हुजूर साहबजी महाराज तथा हुजूर मेहताजी महाराज की पवित्र रज को कलशों में संचित कर रखा गया है। इन्ही से सटे हुए कमरों तथा हॉल में परम पूज्य आचार्य के चित्र तथा उनके उपयोग में लाई गई वस्तुओं एवं वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है। स्मृतालय की स्थापना हो जाने से सत्संगी लोग एक ही स्थान पर आ कर अपने परम पूज्य संत सतगुरु को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं। (46) 1979 में महिला एसोसिएशन की एक गतिविधि के रूप में सत्संगी माता पिता के पुत्र पुत्रियों की मदद देने और विभाह से संबंधित सामाजिक रीति-रिवाजों में सुधार करने के उद्देश्य से विवाह संगम की स्थापना हुई। **
[22/02, 07:59] +91 97830 60206: *(47) यद्यपि दयालबाग ने अपने जीवन के 75 वर्ष (1990 में) पूरे किए हैं किंतु इन आदर्शों के प्रसार व विस्तार के लिए सत्संग की गतिविधियों के विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया काफी समय पूर्व से शुरू कर दी गई है। दयालबाग के नमूने पर ऐसी कॉलोनीज बनाई जा रही है जहां सत्संगी इन आदर्शों को अपनाने में सहायक वातावरण में रहे रह सके और उनके बच्चे इन आदर्शों के अनुकूल वातावरण में पलकर बड़े हो सके। यहां सत्संग के मूल्यों व आदर्शों को लड़के लड़कियों के चरित्र में समाहित एवं प्रवृत्त करने पर विशेष बल दिया जाता है जिससे कि वह सत्संग के मूल्यों एवं आदर्शों को हृदयंगम कर सके तथा बाद में उन मूल्यों के प्रत्यक्ष उदाहरण बन कर व दूसरों को प्रभावित कर सकें । जवान व बूढों सबको विभिन्न गतिविधियों व सेवा कार्यों में भाग लेने को संगठित करने के समान अवसर प्राप्त होते हैं । जनता को सस्ते दामों पर सामान्य उपभोक्ता वस्तुएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से उत्तम गुणवत्ता वाली वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है। इसका उद्देश्य अधिकाधिक लाभ कमाना नहीं वरन लोगों की सेवा करना है। देश के विभिन्न भागों में जो प्रदर्शनियाँ प्राय आयोजित की जाती हैं। उनका उद्देश्य इन सामानों को अधिक से अधिक घर में पहुंचाना है। जिससे लोग जान सकें कि सत्संगी कैसे काम करते हैं तथा कैसे जीवन यापन करते हैं। इसी प्रकार सत्संग द्वारा जो स्कूल और शिक्षा संस्थाएं खोली गई है, वे भी दयालबाग की नवीन शिक्षा पद्धति को अपनाकर एक पूर्ण एवं समायोजित मानव का निर्माण करेंगी जिस पर सत्संग की संस्थाओं की स्पष्ट छाप रहे होगी। अतः इस प्रकार उनके सादा जीवन और मानव मात्र की सेवा के उदाहरण द्वारा राधास्वामी दयाल का संदेश प्रसारित होगा। समाज में सूक्ष्म रूपांतरित हो रहा है किंतु यह कोरे उपदेशों द्वारा नहीं बल्कि जो सत्संगी जीवन व्यतीत कर रहे हैं उनके जीवित प्रत्यक्ष मिसाल के द्वारा हो रहा है। मनुष्य ने अपनी उन्नति के निमित्त चुनौतियों का सामना करने के वास्ते मतभेदों, विवादों एवं संघर्षों का रास्ता अपनाया है । किंतु प्रगति का एक दूसरा मार्ग भी हो सकता है जो सहनशीलता और सहयोग के साथ परस्पर मिलकर रहने तथा मानव के बंधुत्व एवं मिलिक के पितृत्व के आदर्श के स्वीकार करता है। जीवन के प्रति यह दूसरा रवैय्या ही है जिसका दयालबाग  अनुसरण करता है। यही रास्ता आपसी मतभेदों को दूर करने एवं शांति की स्थापना के लिए कारगर सिद्ध होगा। जब कोई किसी युवक व युवती को "तमन्ना यही है कि जब तक जिऊँ"  प्रार्थना करते समय उनकी आंखों की चमक देखता है तब उसे विश्वास हो जाता है पवित्र मिशन को पूरा करने के निमित्त "प्रेम" व "भक्ति"  सहित  सेवा करने के लिए युवक-युवतियां तैयार हो रहे है। दयालबाग सतसंग हैडक्वार्टर व शहर का नाम है, जहां कि यह स्थित है, साथ ही उस भावना का प्रतीक है जो इसमें व्याप्त है तथा जिन आदर्शों का द्योतक है। आशा है कि भविष्य में संपूर्ण देशभर में असंख्य दयालबाग कायम हो जाएंगे।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

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