Sunday, February 23, 2020

राधास्वामी दयालबाग / सूरत शब्द अभ्यास में रस क्यों नही+




प्रस्तुति - ममता शरण
**परम हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- कल का शेष:- जब तक कि मन और इंद्रियां किसी कदर काबू में नहीं आएंगे तब तक सुरत शब्द अभ्यास का रस जैसा कि चाहिए प्राप्त नहीं हो सकता। इस वास्ते जो नहीं चेतेगा और नहीं होशियार होगा वह बड़ी दिक्कतें उठावेगा। यानी जो कोई चेत कर इस तरह की होशियारी नहीं करेगा तो वह मन और इंद्रियों और काल और माया के हाथ से झटके खाता रहेगा। बड़ी पोथी सारबचन नज्म में लिखा है:- जगत जाल सब धोखा जानो।  मन मूरख संग किन्हीं यारी।।।                  इसका संग तजो तुम छिन छिन। नहीं यह लेगा जान तुम्हारी ।।।                           इस वास्ते मुनासिब है कि इस बचन की प्रतीति करके और जो वक्त कि हाथ में है उसको गनीमत समझकर जिस कदर कार्रवाई अपनी रूह यानी सूरत की चढ़ाई और मन से पीछा छुड़ाने की हो सके जरूर होशियारी के साथ करें।।                           यह जीव इस संसार में जन्मो जन्म से बराबर धोखा खाता चला आता है ।पर जिस जन्म की सतगुरु से मिला हुआ और भेद निज घर का मिला और असली हालत संसार के मालूम पड़ी, फिर धोखे के कामों में लिपटकर बरतना और अपनी सुरत और मन की सँभाल न रखना यह बड़ी भारी गफलत और बेपरवाही की बात है।  यह सही है कि मन का जोर बड़ा भारी है और उसका रोकना किसी कदर कठिन है और यह जीव बहुत निर्बल और कमजोर है, पर राधास्वामी दयाल की दया और सत्संग की मदद से जो काम कि यह करना चाहे तो आहिस्ता आहिस्ता उसका बन जाना और दुरुस्त होना मुश्किल नहीं है।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻।**

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