Sunday, February 23, 2020

राधास्वामी दयालबाग / परम गुरू साहबजी महाराज






प्रस्तुति - ममता शरण /
             कृति शरण

[23/02, 07:34]
+91 97830 60206:

**परम गुरु साहबजी महाराज रोजनामचा वाक्यात- 14 जुलाई 1932:-
 कोलकाता सेमेस्टर स्किप्सी रोजगार  व प्रमार्थ की खोज मे आए हुए हैं। यह साहब कोलकाता में पंचानन मित्रा बाबू की मार्फत मुझसे मिले थे । सियालदह स्टेशन पर वीरेंद्र बाबू से कहलया था कि मित्रा बाबू की मार्फत उनको कहला दें कि अव्वल अपनी आवश्यकताएं खत द्वारा लिखकर भेजें और सैक्रेटरी साहब सभा की तरफ से  उचित उत्तर पाने पर दयालबाग आवें । लेकिन बावजूद बिरेंद्र बाबू को इत्तिला दे देने पर वह यहां चले आये। खैर-अब मुश्किल यह है कि यहां सब कारखाने लंबे साँस ले रहे हैं। किसी महकमें में नया आदमी दाखिल करने की गुंजाइश नहीं है । आज सुबह उनको लिखकर दे दिया गया कि अफसोस है दयालबाग में कोई जगह खाली नहीं है और उनकी गरीबी पर ख्याल करके लगभग 30/- बतौर सफर के खर्चे के अदा कर दिया गया। तीसरे पहर यह मुझसे फिर मिले और बाद में काम करने के लिए अत्यधिक ख्वाहिश जाहिर की। निहायत मजबूर होकर यह पेश किया गया। अच्छा सौ रुपया महीना मिलेगा।  मकान का इंतजाम उनको खुद करना होगा और जब जो काम ख्याल में आवेगा दिया जाएगा उनको बखुशी करना होगा। यह तहरीर देकर उन्हे रवाना कर दिया गया और कहा गया कि सोच समझकर आज ही अपना जवाब दें। शाम को लॉन पर उन्होंने कहा कि इस मामले में अपनी स्त्री से मशवरा किया चाहता हूँ । जवाब में बतलाया गयि-इतनी गुंजाइश नही है। आज ही जवाब मिलना चाहिए। वरना नौकरी का कोई वादा न रहेगा। यह बाते सुनकर वह लॉन से उठकर चले गये।  खैर!   रात के सत्संग में झंग के जिज्ञासु ने अनेक सवालात दरयाफ्त किये।  उन्होंने उपनिषद वगैरह ग्रंथ खूब गौर से पढ़े हैं और उनका उपदेश खासा समझते हैं । उनको मुश्किल राधास्वामी नाम के मुताबिक हो रही है जो एक कुदरती विषय है। लेकिन ताज्जुब है कि लोग ओम् नाम तो बखूबी मान लेते हैं लेकिन राधास्वामी नाम के मुतालिक सैकड़ों शक पेश करते हैं। जिज्ञासु साहब का खास एतराज यह था कि था किसी पैगंबर ऋषि या साध संत ने यह नाम नहीं बतलाया फिर कैसे न समझे यह नाम यूं ही रख लिया गया है। जवाब में बतलाया गया कि मोहम्मद साहब ने जिस नाम का उपदेश किया है वह किस दूसरे मजहब में मौजूद है और किस ऋषि या संत ने उसकी पुष्टि की है ? अगर मोहम्मद साहब हिंदू शास्त्रों से अलग नाम बतलाने पर भी पैगम्बर हो सकते हैं और ऋषि एक खास नाम बतलाने पर ऋषि हो सकते हैं तो राधास्वामी दयाल भी एक खास नाम का उपदेश करने पर दर्जा रख सकते है। आखीर में स्पष्ट किया गया कि दुनिया का काम चलाने के लिए इंसान मालिक के लिए कोई भी नाम इस्तेमाल कर सकता है ।लेकिन साधन यानी रुहानी शग्ल करने के  लिए खास धुन्यात्मक नामों यानी बीजमंत्रों ही का इस्तेमाल करना पड़ता है । साधारण नाम इंसानों के दिल से पैदा होते हैं और जैसे पानी अपनी सतह ही तक चढता है ऐसे ही इन नामों का असर इंसान के दिल तक सीमित रहता है रूहानी शक्तियां के जागृत करने के लिए रूहानी मंडल के नामों का इस्तेमाल करना लाजमी है । यह बात जिज्ञासु साहब के समझ में आ गई।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[23/02, 07:34] +91 97830 60206: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सत्संग के उपदेश- भाग 2- कल का शेष:- "कहता हूँ कह जात हूँ कहा बजाऊं ढोल। स्वाँसा खाली जात है तीन लोख का मोल।।  कबीर सोता क्या करे जागन से कर चौंप। यह दम हीरि लाल है गिन गिन गुरु को सौंप।।" माना कि कोई शख्स ज्यादा धनवान या पूँजीदार नही है, माना कि वह मोटा झोटा कपडा पहनकर और रुखा सूखा टुकडा खाकर अपने दिन काटता है लेकिन वाजह हो कि मनुष्यशरीर के अंदरुनी फायदे उसे सबके सब भरपूर हासिल है इसलिये संतमत शिक्षा देता है कि ऐ गरीब व दीन अधीन प्रेमीजन! तू मत घबरा, तेरा मेहनत मुशक्कत करके चार पैसे कमाना और उसी कमाई में (जो हक व हलाल की है ) गुजर करना दुनिया की निगाह में ओछा हो सकता है लेकिन परमार्थी लक्ष्य में निहायत मुबारक है । जो शख्स हक हलाल की कमाई खाता है वही अपने मन को काबू में रखकर अपने जिस्म के अंदर छिपी हुई शक्तियों व चक्रों को जगा सकता है। संसार के भोग विलासों में जरूर खास किस्म की लज्जत है लेकिन तवज्जो के जरा अंतर्मुख होने पर जो रस व आनंद प्राप्त होता है उसके मुकाबले में उसकी कोई हकीकत नहीं है। तू जरा हिम्मत कर और सुमिरन ध्यान की दृष्टि को अंतर की जानिब फेर ! तेरे घट में दो रास्ते चलते हैं- एक नरक की जानिब और दूसरा सच्चखंड की जानिब ले जाने वाला है । तू लोक लाज और मूर्खों की तान का ख्याल छोड़ छोड़कर इन रास्तों का भेद दरिया कर। तू नाहक दूसरों की देखा देखी सुख के लिए सांसारिक पदार्थों की जानिब दौड़ता और परेशान होता है। तेरे घट में सुख के सब सामान रक्खे हैं। तू  जरा होश कर और दृष्टी को घट में उलट।।                                    "बड़ा जुल्म है मेरे यार यह, कि तू जाय सैर को बाग़ के।।                         तू कँवल से आप ही कम नहीं, हिये में उलट के चमन में आ।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[23/02, 07:34] +91 97830 60206: **परम हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- कल का शेष:- जब तक कि मन और इंद्रियां किसी कदर काबू में नहीं आएंगे तब तक सुरत शब्द अभ्यास का रस जैसा कि चाहिए प्राप्त नहीं हो सकता। इस वास्ते जो नहीं चेतेगा और नहीं होशियार होगा वह बड़ी दिक्कतें उठावेगा। यानी जो कोई चेत कर इस तरह की होशियारी नहीं करेगा तो वह मन और इंद्रियों और काल और माया के हाथ से झटके खाता रहेगा। बड़ी पोथी सारबचन नज्म में लिखा है:- जगत जाल सब धोखा जानो।  मन मूरख संग किन्हीं यारी।।।                  इसका संग तजो तुम छिन छिन। नहीं यह लेगा जान तुम्हारी ।।।                           इस वास्ते मुनासिब है कि इस बचन की प्रतीति करके और जो वक्त कि हाथ में है उसको गनीमत समझकर जिस कदर कार्रवाई अपनी रूह यानी सूरत की चढ़ाई और मन से पीछा छुड़ाने की हो सके जरूर होशियारी के साथ करें।।                           यह जीव इस संसार में जन्मो जन्म से बराबर धोखा खाता चला आता है ।पर जिस जन्म की सतगुरु से मिला हुआ और भेद निज घर का मिला और असली हालत संसार के मालूम पड़ी, फिर धोखे के कामों में लिपटकर बरतना और अपनी सुरत और मन की सँभाल न रखना यह बड़ी भारी गफलत और बेपरवाही की बात है।  यह सही है कि मन का जोर बड़ा भारी है और उसका रोकना किसी कदर कठिन है और यह जीव बहुत निर्बल और कमजोर है, पर राधास्वामी दयाल की दया और सत्संग की मदद से जो काम कि यह करना चाहे तो आहिस्ता आहिस्ता उसका बन जाना और दुरुस्त होना मुश्किल नहीं है।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻।**


No comments:

Post a Comment

बधाई है बधाई / स्वामी प्यारी कौड़ा

  बधाई है बधाई ,बधाई है बधाई।  परमपिता और रानी मां के   शुभ विवाह की है बधाई। सारी संगत नाच रही है,  सब मिलजुल कर दे रहे बधाई।  परम मंगलमय घ...