Monday, February 10, 2020

शाम के सत्संग का बचन




[10/02, 15:: **राधास्वामी!!
-आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे-(47):- यह दुरुस्त है कि भीड़भाड़ के मौकों पर हजारों सतसंगियों का मिलकर उठना बैठना व खाना-पीना एक खास लुत्फ रखता है लेकिन दूर फासले से चलकर आने दो रास्ते की मुश्किलें झेलने और भारी रकमें किराये वगैरह में खर्च करने का अगर इतना ही फल मिले तो नाकाफी है। मुनासिब यह है कि सत्संग से लौटते वक्त हर एक प्रेमी सतसंगी यह महसूस करें कि वह कोई खास चीज लेकर लौट रहा है। जिसके दिल में प्रेम की चिनगी न हो वह चिनगी हासिल करें, जिसके दिल में चिनगी हो लेकिन मंद हो वह उसे तेज करावे, जिसके अंदर तेज चिनगी वह उसे और भी तेज करवा कर लौटे। अगर इन बातों का लिहाज न रक्खा गया और महज कारखानों व कॉलेजो की रौनक और सत्संग की भीड़ भाड़ या रुपये  पैसे भेंट चढ़ाने ही पर संतोष कर लिया गया तो सख्त अफसोस होगा। मालूम होवे कि सत्संग के स्कूल, कॉलेज, कारखाने व अस्पताल वगैरह आध्यात्मिक संस्थाएं नहीं है। इनकी तरक्की व रौनक होने से लोगों को रुहानी तरक्की हासिल नहीं हो सकती। इनसे संगत की सिर्फ संसारी जरूरतें पूरी हो सकती हैं और संगत को आराम मिल सकता है । ये चीजें दरअसल सत्संग के पौधे के गिर्द बाढ़ के तौर पर लगाई गई है। मूर्ख बाड ही पर तवज्जुह रखते है लेकिन बुद्दिमान बाढ़ से गिरे हुए पौधे की तरफ तवज्जुह देते हैं।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻( सत्संग के उपदेश- भाग 3)**
[10/02, 15:23] Mamta Vodafone: *सतसंग के उपदेश*
भाग-1
*(परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज)*
मिश्रित बचन
(प्रेम प्रचारक दि. 4.3.2019 से आगे)
       *70- इस मन का कुछ एतबार नहीं है, जब उमंग में आता है तो तन, मन, धन सभी निछावर करने के लिये तैयार हो जाता है लेकिन ज्यों ही कोई बात मर्ज़ी के ख़िलाफ़ हुई, रूखा फीका हो जाता है। मन की यह हालत जंगली जानवर की सी है। अगर जीव कुछ दिन संतों के सतसंग में शामिल होकर सेवा में लगे तो मन की यह आदत छूटने में आवे।*
       *71- जब किसी जीव को दुनिया में दुख मिलता है तो घबरा कर सतसंग की जानिब दौड़ता है कि अगर सतसंग में ठिकाना मिल जावे तो रूखा सूखा खाकर और मोटा झोटा पहिन कर गुज़ारा कर लूँगा। लेकिन जब उसको सतसंग में ठिकाना और कोई काम ज़िम्मेवारी का मिल जाता है तो उस वक़्त उसके सब इरादे बदल जाते हैं और दूसरों के आराम और तरक़्क़ी को देख कर हर तरह के आराम व सहूलियत की चाह उठाने लगता है। और जब वह चाह पूरी नहीं होती तो रूखा फीका या उदास होकर सतसंग से भागने की सोचता है। जो लोग सतसंग में रहकर सेवा करने के ख़्वाहिशमंद हैं उनको मन की इस घात से ख़बरदार रहना चाहिये।*
       *72- छोटों के साथ बड़ों के प्यार करने को दया कहते हैं, और बड़ों के साथ छोटों के प्यार करने को भक्ति कहते हैं। गोया भक्ति व दया दोनों प्यार ही के नाम हैं। इसलिये जो शख़्स मालिक या सतगुरु से दया का उम्मीदवार है अगर वह मालिक के या सतगुरु के चरणों में भक्ति करता है, तो कौन एहसान करता है? एहसान तो मालिक या सतगुरु करते हैं जो बावजूद इतने बड़े होने के तुच्छ जीव के साथ प्यार करते हैं। लेकिन मूर्ख लोग उलटा ही ख़्याल करते हैं और सतगुरु या मालिक की भक्ति करने में अपनी बड़ाई समझते हैं।*
राधास्वामी
[10/02, 15:23] Mamta Vodafone: **राधास्वामी!! 05-02-2020- आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया भजन कल से आगे-(48)- बाज कौमें विवाह(शादी) की रस्म को एक पवित्र संस्कार की बडाई देती है और बाज उसे सिर्फ एक ठेका समझती है। दरअसल शादी एक ऐसा इन्तिजाम है जिसकी मार्फत इंसान की नसल दुनिया में कायम रहती है और नश्व पाती है और चूँकि हर सभ्य जाति का कर्त्तव्य है कि दुनिया से दुःख दूर करने और सुख का राज चलाने के लिये कोशिश करे- और यह बात सिर्फ संतान के लायक व काबिल होने ही से मुमकिन है- इसलिये हर माता पिता का कर्तव्य हो जाता है कि शादी को पाश्विक वासनाएँ पूरी करने का हीला या जरिया न समझें बल्कि यह ख्याल करें कि उनके इस कर्म से दुनिया के दुख सुख पर भारी असर पडता है; क्योंकि अगर उनकी संतान मूर्ख या निर्दय पैदा हुई तो दुनिया के दुख में और अगर लायक व नेक होगी तो दुनिया के सुख में वृद्धि करेगी। इसलिये मुनासिब है कि वह अपने को ऐसी पवित्र आत्माओं के संसार में जन्म लेने का जरिया बनावें जो संसार में सुख फैलावे, जो आप सुखी रहें और दूसरों को सुखी करें। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 **
 प्रस्तुति - ममता शरण / कृति शरण

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