Monday, February 10, 2020

सत्संग समाज (जमात) में रहने का मतलब





*🔆💥 सुप्रभात 🔆💥*

*💐सत्संग- समूह में रहने का अभिप्राय*💐

*नियमित रूप से सत्संग में आने वाले एक सत्संगी ने सत्संग आना अचानक बंद कर दिया। जब कुछ दिन बीत गए तो  एक बुजुर्ग ने उसके घर जाने का सोचा। उस शाम बहुत सर्दी थी। बुजुर्ग को वह सत्संगी दहकती अँगीठी के सामने बैठा मिला, वह घर में अकेला था। उसने बुजुर्ग का स्वागत किया, अँगीठी के सामने रखी एक बड़ी सी कुर्सी पर बैठने का आग्रह किया, और उनके कुछ बोलने की प्रतीक्षा करने लगा बुजुर्ग कुर्सी पर आराम से बैठ तो गया पर बोला कुछ नहीं।कुछ देर बाद बुजुर्ग ने चिमटा उठाया और बड़ी सावधानी से एक बड़ा सा दहकता-चमकता अंगारा अँगीठी में से निकाला और उसे एक तरफ़ रख दिया। इसके बाद वह फिर कुर्सी पर आराम से बैठ गया, लेकिन बोला कुछ नहीं। वह बुजुर्ग यह सब बस देखता रहा। उस अकेले अंगारे की चमक-दमक धीरे-धीरे कम होती चली गई और जल्दी ही वह बुझा-बुझा और ठंडा सा हो गया। बुजुर्ग के आने के समय हुए अभिवादन के अलावा किसी ने भी एक शब्द तक नहीं बोला था।चलने से पहले बुजुर्ग ने वह ठंडा और बुझा-बुझा कोयला उठाया और वापस आग में फेंक दिया, जिससे वह तुरंत ही आस-पास के जलते कोयलों के कारण रोशनी और गर्मी से फिर चमकने-दहकने लगा।      बुजुर्ग चलने के लिए जैसे ही उठा तो वह मेज़बान सत्संगी बोला, “आपके आने का बहुत-बहुत धन्यवाद सर, विशेष रूप से इस अंगारे वाले उपदेश के लिए। मैं अगले रविवार से हर सत्संग में आया करूँगा, कभी मिस नहीं करूगा।” भौतिक तथा सत्संग परिवार से सदैव जुड़ा रहूंगा*🙏
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प्रस्तुति - ममता शरण / कृति शरण

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