Thursday, April 9, 2020

सत्संग के मिश्रित प्रसंग बचन और उपदेश 10/04




प्रस्तुति - उषा रानी /
 राजेंद्र प्रसाद सिन्हा


: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-


रोजाना वाक्यात- 26 अगस्त 1932


-शुक्रवार:- सुबह के वक्त बाबा हरदयाल सिंह साहब मिलने के लिए आये। वह महज दयालबाग की तारीफ सुनकर आये थे। मगर मैंने उन्हें देखते ही पहचान लिया। मैं और वह एफ. ए.  में इकट्ठे पढ़ते थे। पहचानते ही यह शेर मुंह से निकला- ऐ जौक किसी मुश्फिके देरीना का मिलना (ए जौक किसी पुराने मित्र का मिलना) शुश्तर है मुलाकातें मसीहा व खिजर से ( मसीहा तथा खिज की भेंट से प्रियतर है) उनके दिल में भी प्रेम आ गया 34 बरस के बाद मिलना हुआ। आजकल वह दिल्ली में वकालत करते हैं । दोपहर को मिलकर खाना खाया और तबीयत निहायत खुश हुई। चलते वक्त उन्होंने वादा लिया कि आइंदा जब दिल्ली जाऊं तो उनका मेहमान बनूँ। मैने सूचित किया कि मेरे साथ बड़ा काफिला रहता है। उन्होंने निहायत मोहब्बत से जवाब दिया कि मेरी तीन कोठिया अपनी है इसके अलावा और भी मकानात ले सकता है। डेरी देखने के बाद उन्होंने कहा दयालबाग की हर चीज में आकर्षण है । ऐसा रचनात्मक काम शायद ही किसी और जगह देखने में आवे। मैंने जवाब दिया कि अपनी तरफ से हम लोग हाथ-पांव मार रहे हैं अभी कामयाबी की मंजिल दूर है।  इंसान का काम कोशिश करना है बनाना बिगड़ना दूसरे के हाथ है। दिल्ली के सत्संगी भाई वहां दयालबाग की निर्मित वस्तुओं की नुमाइश की फिक्र में है और मकानात की दिक्कत से परेशान हैं। परोक्ष से उनका सहायक निकल आया -             उसे फज्ल (दया)करते नहीं लगती बार(बोझ)     

 न हो उससे मायूस (निराश) उम्मीदवार।।         

  रात के सतसंग में एक स्त्री ने जो पहली मर्तबा दयालबाग आई है और स्वामीबाग में ठहरी है बड़ा उपद्रव पैदा किया। उसने जाहिर किया कि उसमें भूत घुसा हुआ है। खूब शोर मचाया और बड़ी मुश्किल से खामोश कराई गई। उस पर भूत का कतई असर नहीं है। उसके रिश्तेदारों को आगाह कर दिया गया। रात के सत्संग का कुल वक्त नष्ट हो गया । उसके रिश्तेदारों से कहा गया कि मरीजों को कल दिन में दयालबाग लावें।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**



परम गुरु हुजूर साहबजी

महाराज- भाग 2 -

कल से आगे

- स्वामी दयानंद जी ने पुस्तक ऋग्वेदादिमाध्यभूमिका (दूसरा एडिशन) से पृ.सं 292 पर लिखा है- "मंत्रभाग की चार संहिता कि जिनका नाम वेद है वे सब स्वतः प्रमाण कही जाती है और उनसे भिन्न ऐतरेय, शतपथ आदि प्राचीन सत्य ग्रंथ है वे परतः प्रमाण के योग्य हैं तथा 1127 चार वेदों की शाखा वेदों के व्याख्यान होने से परतः प्रमाण।" गालिबन स्वामी जी 1131 की मौजान में से चार इसलिए कम करते हैं कि 4 मूल ग्रंथ है और बकिया 1127 शाखाएं हैं। लेकिन मुश्किल यह है कि जो जो शाखाएं इन दिनों प्राप्त होती है उनके पढ़ने से मालूम होता है कि वह किसी मूल ग्रंथ के व्याख्यान नहीं है। इन शाखाओं में जहां-तहां पाठ में लफ्जी तब्दीलियों और कुछ मंत्रों की कमी बेशी के सिवा ज्यादा बाहम फर्क नहीं है । फिर किसको मूल कहें?  और मंत्र भाग की वे चार संहिता कौन है जिन्हें स्वतः ही प्रमाण माना जावे?  स्वतः प्रमाण ग्रंथ के दूसरे सब सत्य ग्रंथ आश्रित होते हैं और वह स्वतः प्रमाण वचनों के प्रकाश ही से वे प्रकाशवान होते हैं। इसलिए जब सभी प्रचलित संहिता शाखाएं हैं तो किसको स्वतः प्रमाण करें और किसको परतः प्रमाण माने ।अगर स्वामी दयानंद जी जैसे फाजिल शाखाओं की मूल ग्रंथों का व्याख्यान करने की गलती कर सकते हैं, हालांकि उन सब का पाठ करीब यकसाँ है और खुद भी जिस यजुर्वेद का उन्होंने माध्य किया है वह भी माध्यन्दिनी शाखा के नाम से मशहूर है कि मूल संहिता के नाम से, तो फिर दूसरों का क्या ठिकाना है ! क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हुजूर महाराज-

 प्रेम पत्र- भाग 1-
कल का शेष-( 22)-

ऊपर की लिखी हुई दलीलों से साफ साबित है कि सिवाय सुरत शब्द के अभ्यास के और कोई जुगत धुर पद में पहुंचने यानी सच्चे मालिक से मिलने की नहीं है। और जोकि शब्द की धार ही जान और सूरत या रूह की धार है और सुरत या जान से (जो कि कुल रचना की पैदा करने वाली और चैतन्य करने वाली और पालन करने वाली है) बढ़कर और कोई ध्यान नहीं है, तो इसे साबित हुआ कि शब्द योग से बढ़कर और कोई जुगत सच्चे मालिक से मिलने की रचना भर में नहीं है। अब जीवों को इख्तियार है, कि चाहे इस बात को मानें या ना मानें। पर जो कोई सच्चा खोजी और दर्दी परमार्थ का है, वह तो संतो के वचन के मुआफिक सुरत शब्द- योग का अभ्यास करेगा और जिनके मन में इस लोक या परलोक के भोगों और मान बढ़ाई की चाह है, वे लोग संतो के बचन को नहीं मानेंगे और उनके रास्ते और युक्तियां, जो पिंड के ऊंचे देश में अथवा ब्रह्मांड में पहुंचने की है, उन्ही में भरमते और भटकते रहेंगे । और उन्हीं देशों के आनंद और परम आनंद और वहां के मालिकों को सच्चा मालिक मानकर उसके आगे जो कि संतों का देश है जहां सच्चे मालिक का दर्शन प्राप्त हो सकता है चलने और पहुंचने की इच्छा नहीं करेंगे, बल्कि जो उनको सयझोती दी जावेगी तो बजाय मानने के वादविवाद करेंगे और  तकरार झूठी और बेफायदा उठाकर संत बचन की प्रतीति नहीं लावेंगे। और ऐसे जीवो के वास्ते संतमत का उपदेश भी नहीं है।।                         

  ( 23)  जबकि सत्संग में निर्णय करके सच्चे परमार्थी को इन तीन बातों का निश्चय हुआ कि

(१) राधास्वामी दयाल कुल और सच्चे मालिक और सर्व समरथ है  (२) और जीव उनकी अंश है

(३) और सुरत शब्द योग की कमाई से जीव काल और माया देश से न्यारा होकर अपने निज घर यानी दयाल देश में पहुंच सकता है, और किसी तरह नहीं, तब उसको चाहिए कि कुल मालिक राधास्वामी दयाल की सरन दृढ करके और संत मत के भेदी से जुगत  सुरत शब्द योग की दरियाफ्त करके इसी अभ्यास को जितना बन सके नेम से हर रोज करता रहे। और उनकी दया की अपने अंतर में परख करता हुआ चले और अपने मन और इंद्रियों की चाल की भी निरख करता रहे और जब तब चरणों में वास्ते प्राप्ति दया से प्रार्थना करता रहे, तो राधास्वामी दयाल की मेहर से दिन दिन उसका कारज बनता जावेगा और प्रीति और प्रतीति चरणों में बढ़ती जाएगी और उनकी दया से 1 दिन कार्य पूरा हो जाएगा। इस तरह हर एक सच्चा परमार्थी अपने जीव का कल्याण राधास्वामी दयाल की दया के बल से कर सकता है और जीते जी कोई दिन अभ्यास करके अपने सच्चे उद्धार का सबूत अंतर में देखकर उसका पूरा यकीन और विश्वास कर सकता है और जो जो ऐसी प्रतीति बढ़ती जाएगी, उसके साथ ही प्रेम भी बढ़ता जाएगा और 1 दिन प्रेम सिंध या सच्चे मालिक से मेला हो जाएगा और फिर जन्म मरण और काल प्रदेश से छुटकारा पूरा छुटकारा हो जाएगा।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


[09/04, 07:52] +91 6239 397 913:

**परम गुरु सरकार साहब के बचन-( 33)-


23 जनवरी, 1911-

 आज उन वकील साहब ने कल के बचन में से एक दो बातें फिर दरियाफ़्त कीं। एक तो यह कि मालिक कैसे नर शरीर में आ सकता है और जब से उसका अवतार होता है, आदि से अन्त तक क्या वही ताक़त उसको होती है। फ़रमाया कि जैसे कल बयान किया गया, मालिक लहर रूप होकर ख़ुद नर चोला धारण करके अवतार लेता है, क्योंकि नर शरीर सबसे उत्तम है। और सब मत वालों ने भी लिखा है, मसल्न लिखा है कि Man was made after the image of God (मनुष्य का रूप परमात्मा के रूप की नक़्ल है)। जब से मालिक गर्भ में जन्म लेता है, तब से सर्व समर्थ होता है। वह अपने बनाए हुए laws (क़ानून) का breaker (तोड़ने वाला) नहीं होता, बल्कि उनका ज़्यादा पालन करता है। इस वास्ते जैसे संसार में आम जीव पैदा होते हैं, उसी तरह वह भी जन्म धारण करता है। उसी तरह बचपन का ज़माना, फिर जवानी का ज़माना गुज़रता है। फिर वह अन्दर के सब भेद खोल कर और जीवों को उपदेश करके अभ्यास करवा कर उस रास्ते पर संग संग ले जाता है। ज़्यादा परख और सँभाल आख़िर वक्त़ पर मालूम होती है जो कि एक प्रत्यक्ष सबूत (ocular demonstration) है।
बाज़ मामूली सतसंगियों का हाल सुना गया है कि आख़ीर वक्त़ पर कैसे उनकी सँभाल होती है और वह बाहोश (होश में रहते हुए) बड़ी ख़ुशी के साथ मरते दिखाई देते हैं। और बाक़ी चाहे जितना आलिम फ़ाज़िल, ज्ञानी हो, बस सुना जाता है कि पन्द्रह दिन पहले से ही बेहोश हैं, कुछ पता या होश नहीं। तो गुरु अपना मिशन पूरा करने आते हैं। और जो सैकंड सैकंड पर terrible isolation (सख़्त बिछोहा) मौत के होने पर होता है, उसमें वही संगी होते हैं। उस वक्त़ का ख़्याल करना चाहिए कि किसके साथ वह रास्ता चलता है। बड़े बड़े जोधा, ऋषि, मुनि उस रास्ते पर चलने से काँपते हैं।
इतना समझाने के बाद उन वकील साहब ने पूछा तो क्या गुरु ईश्वर से बड़े होते हैं। इस पर सब हँस पड़े और सरकार साहब ने फ़रमाया कि बड़े क्या, बहुत बड़े। यह ईश्वर ही तो फ़िसाद की जड़ है। यह सब पसारा उसी का है। बड़ा भारी शैतान है। हर तरह के ऐब और पाप तो वही करवाता है। बग़ैर परम गुरु के और किसी को मालिक कहना कुफ़्र (नास्तिकता) का कलमा (बचन) है। अजी, गुरु की महिमा सबने कही है। गीता में भी लिखा है। मौलना रूम ने साफ़ लिखा है। ऐसे गुरु बड़े भाग से मिलते हैं।
स्वामीजी महाराज जब सिर्फ़ पाँच साल के थे,तो तुलसी साहब, जो कि संत थे और कभी कभी उनके घर आया करते थे, आए और स्वामीजी महाराज की माता को कहा कि माई, अब हमारा यहाँ आने का काम नहीं। तुम्हारे घर में परम संत अब आ गए हैं। इसके बाद वह चले गए और थोड़े ही दिनों के बाद चोला छोड़ दिया। तो जिनको पहचान होती है, वह परख लेते हैं। हम तुम तो सिर्फ़ उसूल ही पहले समझते हैं। फिर उनसे जुगती लेकर अभ्यास करें, तब कुछ पहचान होती है और वह भी अगर गुरू आप बख़्शें।
राधास्वामी**

राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
।।।।





No comments:

Post a Comment

बधाई है बधाई / स्वामी प्यारी कौड़ा

  बधाई है बधाई ,बधाई है बधाई।  परमपिता और रानी मां के   शुभ विवाह की है बधाई। सारी संगत नाच रही है,  सब मिलजुल कर दे रहे बधाई।  परम मंगलमय घ...