Thursday, April 9, 2020

विनती / शकुंतला लखेरा



बार-बार करूं बंदगी ,विनय करूं हर बार।
विनती सुणज्यो सतगुरू ,मन से गया मैं हार ।।टेर।।थ्योरी म
घट अंतर में आय
 कर ,दरश करावो आय ।
विनती सुणज्यो सतगुरु ,मुझको पूरी आश (१)
दाता मेरे आप हो , करुणा भरी पुकार ।
जस तस मोहे दीन को , लेवो चरण लगाय (२)
लोभी कपटी लालची , मन चंचल चित चोर ।
तुम बिन दाता मैं कहीं , पाऊँ नहीं मैं  ठौर (३)
अवगुण कीने जनम में , नित नित करूँ विचार ।
कैसे अवगुण माफ हो मेरे , दाता दीन दयाल (४)
करम भरम में मैं फँसा , कैसे हो उद्धार ।
तुम बिन कोई है नहीं , जग से तारनहार (५)
दया करो मुझ दीन पर , लेवो मुझे सम्हार ।
चँचल मन को रोक कर ,तुम में लेवो लगाय (६)
घट में जोत जलाय कर , घट में करो परकाश ।
मन अंतर में आय कर , दीज्यो दरश कराय (७)
स्वामी तुम दाता मेरे , अवगुण करज्यो माफ ।
काल चक्र को काट कर , लेवो मुझे बचाय (८)
तारणहारे आप हो , सब कुछ तेरे हाथ ।
इतनी दया मुझपर करो , सदा रहो तुम साथ (९)
बारबार करूं बन्दगी , विनय करूँ हर बार ।
विनती सुण ज्यो सतगुरू ।मन से गया मैं हार ।।
                     
   *राधास्वामी*
बहन शकुन्तला लखेरा चावण्डिया

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