+प्रस्तुति - कृष्ण मेहता:
🌞 ~ *आज का हिन्दू पंचांग* ~ 🌞
⛅ *दिनांक 03 सितम्बर 2020*
⛅ *दिन - गुरुवार*
⛅ *विक्रम संवत - 2077 (गुजरात - 2076)*
⛅ *शक संवत - 1942*
⛅ *अयन - दक्षिणायन*
⛅ *ऋतु - शरद*
⛅ *मास - अश्विन (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार - भाद्रपद*
⛅ *पक्ष - कृष्ण*
⛅ *तिथि - प्रतिपदा दोपहर 12:26 तक तत्पश्चात द्वितीया*
⛅ *नक्षत्र - पूर्व भाद्रपद रात्रि 08:51 तक तत्पश्चात उत्तर भाद्रपद*
⛅ *योग - धृति दोपहर 01:21 तक तत्पश्चात शूल*
⛅ *राहुकाल - दोपहर 01:59 से शाम 03:32 तक*
⛅ *सूर्योदय - 06:23*
⛅ *सूर्यास्त - 18:52*
⛅ *दिशाशूल - दक्षिण दिशा में*
⛅ *व्रत पर्व विवरण - द्वितीया का श्राद्ध*
💥 *विशेष - प्रतिपदा को कूष्माण्ड(कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
💥 *श्राद्ध और व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞
🌷 *जानिए पुराणों के अनुसार श्राद्ध का महत्व*🌷
🙏 *कुर्मपुराण : कुर्मपुराण में कहा गया है कि 'जो प्राणी जिस किसी भी विधि से एकाग्रचित होकर श्राद्ध करता है, वह समस्त पापों से रहित होकर मुक्त हो जाता है और पुनः संसार चक्र में नहीं आता।'*
🙏 *गरुड़ पुराण : इस पुराण के अनुसार 'पितृ पूजन (श्राद्धकर्म) से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते हैं।*
🙏 *मार्कण्डेय पुराण : इसके अनुसार 'श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, सन्तति, धन, विद्या सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं।*
🙏 *ब्रह्मपुराण : इसके अनुसार 'जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति से श्राद्ध करता है, उसके कुल में कोई भी दुःखी नहीं होता।' साथ ही ब्रह्मपुराण में वर्णन है कि 'श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक किए हुए श्राद्ध में पिण्डों पर गिरी हुई पानी की नन्हीं-नन्हीं बूंदों से पशु-पक्षियों की योनि में पड़े हुए पितरों का पोषण होता है। जिस कुल में जो बाल्यावस्था में ही मर गए हों, वे सम्मार्जन के जल से तृप्त हो जाते हैं।*
🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞
🌷 *श्राद्ध में क्या करें क्या ना करें* 🌷
🌷 *श्राद्ध एकान्त में ,गुप्तरुप से करना चाहिये, 😁पिण्डदान पर दुष्ट मनुष्यों की दृष्टि पडने पर वह पितरों को नहीं पहुचँता, दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिये, जंगल, पर्वत, पुण्यतीर्थ और देवमंदिर ये दूसरे की भूमि में नही आते, इन पर किसी का स्वामित्व नहीं होता, श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों के द्वारा ही होती है, श्राद्ध के अवसर पर ब्राह्मण को निमन्त्रित करना आवश्यक है, जो बिना ब्राह्मण के श्राद्ध करता है, उसके घर पितर भोजन नहीं करते तथा श्राप देकर लौट जाते हैं, ब्राह्मणहीन श्राद्ध करने से मनुष्य महापापी होता है | (पद्मपुराण, कूर्मपुराण, स्कन्दपुराण )*
🌷 *श्राद्ध के द्वारा प्रसन्न हुये पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष आदि प्रदान करते हैं , श्राद्ध के योग्य समय हो या न हो, तीर्थ में पहुचते ही मनुष्य को सर्वदा स्नान, तर्पण और श्राद्ध करना चाहिये,*
*शुक्ल पक्ष की अपेक्षा कृष्ण पक्ष और पूर्वाह्न की अपेक्षा अपराह्ण श्राद्ध के लिये श्रेष्ठ माना जाता है | (पद्मपुराण, मनुस्मृति)*
🌷 *सायंकाल में श्राद्ध नहीं करना चाहिये, सायंकाल का समय राक्षसी बेला नाम से प्रसिद्ध है, चतुर्दशी को श्राद्ध करने से कुप्रजा (निन्दित सन्तान) पैदा होती है, परन्तु जिसके पितर युद्ध में शस्त्र से मारे गये हो, वे चतुर्दशी को श्राद्ध करने से प्रसन्न होते हैं, जो चतुर्दशी को श्राद्ध करने वाला स्वयं भी युद्ध का भागी होता है | (स्कन्दपुराण, कूर्मपुराण, महाभारत)*
🌷 *रात्रि में श्राद्ध नहीं करना चाहिये, उसे राक्षसी कहा गया है, दोनो संध्याओं में भी श्राद्ध नहीं करना चाहिये, दिन के आठवें भाग (महूर्त) में जब सूर्य का ताप घटने लगता है उस समय का नाम 'कुतप' है, उसमें पितरों के लिये दिया हुआ दान अक्षय होता है, कुतप, खड्गपात्र, कम्बल, चाँदी , कुश, तिल, गौ और दौहित्र ये आठो कुतप नाम से प्रसिद्ध है, श्राद्ध में तीन वस्तुएँ अत्यन्त पवित्र हैं, दौहित्र, कुतपकाल, तथा तिल, श्राद्ध में तीन वस्तुएँ अत्यन्त प्रशंसनीय हैं, बाहर और भीतर की शुद्धि, क्रोध न करना तथा जल्दबाजी न करना (मनुस्मृति, मत्स्यपुराण, पद्मपुराण, विष्णुपुराण)*
🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞
🙏🍀🌷🌻🌺🌸🌹🍁🙏
🔱 *हर हर महादेव*🔱
*गोस्वामी तुलसीदास जी* ने रामचरित मानस के बालकांड में भगवान शंकर के द्वारा माता पार्वती को इस धरा पर श्री हरि के अवतार लेने के कारणों और श्री हरि की महिमा बताते हुए कहा है कि -
*सुनु गिरिजा हरिचरित सुहाए।*
*बिपुल बिसद निगमागम गाए॥*
*हरि अवतार हेतु जेहि होई।* *इदमित्थं कहि जाइ न सोई॥*
*भावार्थ:-* हे पार्वती! सुनो, वेद-शास्त्रों ने श्री हरि के सुंदर, विस्तृत और निर्मल चरित्रों का गान किया है। हरि का अवतार जिस कारण से होता है, वह कारण 'बस यही है' ऐसा नहीं कहा जा सकता (अनेकों कारण हो सकते हैं और ऐसे भी हो सकते हैं, जिन्हें कोई जान ही नहीं सकता)॥
*राम अतर्क्य बुद्धि मन बानी।*
*मत हमार अस सुनहि सयानी॥*
*तदपि संत मुनि बेद पुराना।*
*जस कछु कहहिं स्वमति अनुमाना॥*
*भावार्थ:-* हे सयानी! सुनो, हमारा मत तो यह है कि बुद्धि, मन और वाणी से श्री रामचन्द्रजी की तर्कना नहीं की जा सकती। तथापि संत, मुनि, वेद और पुराण अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार जैसा कुछ कहते हैं॥
*तस मैं सुमुखि सुनावउँ तोही।*
*समुझि परइ जस कारन मोही॥*
*जब जब होई धरम कै हानी।* *बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥*
*भावार्थ:-* और जैसा कुछ मेरी समझ में आता है, हे सुमुखि! वही कारण मैं तुमको सुनाता हूँ। जब-जब धर्म का ह्रास होता है और नीच अभिमानी राक्षस बढ़ जाते हैं॥
*करहिं अनीति जाइ नहिं बरनी*
*सीदहिं बिप्र धेनु सुर धरनी॥*
*तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा।*
*हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥*
*भावार्थ:-* और वे ऐसा अन्याय करते हैं कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता तथा ब्राह्मण, गो, देवता और पृथ्वी कष्ट पाते हैं, तब-तब वे कृपानिधान प्रभु भाँति-भाँति के (दिव्य) शरीर धारण कर सज्जनों की पीड़ा हरते हैं॥
*संदेश:-* श्री हरि की महिमा अपरंपार है। जब-जब धर्म का ह्रास होता है और नीच अभिमानी राक्षस बढ़ जाते है तब-तब वे कृपानिधान प्रभु भाँति-भाँति के (दिव्य) शरीर धारण कर सज्जनों की पीड़ा हरते हैं॥
*जय श्रीराम
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